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रविवार, 26 जून 2011

''धोखा ''-एक लघु कथा

''धोखा ''-एक लघु कथा 
''चलो घर से भागकर शादी कर लेते हैं !'' रोहित के यह कहते ही ज्योति का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा.भावनाओं और क्रोध दोनों को संयमित करते हुए ज्योति कड़े शब्दों में बोली ''वाह !रोहित क्या यही तरीका है अपने सपनों को पूरा करने का ?अगर मेरे माता-पिता समाज के उलाहने सह भी लेंगे तो क्या मैं खुद को कभी माफ़ कर पाऊँगी उन्हें धोखा देने के लिए और ....मेरा भाई ...वो तो जहर ही खा लेगा .''    ......''तो फिर वे मेरे और तुम्हारे विवाह को राजी क्यों नहीं होते ?रोहित झुंझलाते हुए बोला ....''ये प्रश्न तो मैं भी तुम से कर सकती हूँ ...आखिर तुम्हारे माता-पिता क्यों तैयार नहीं हैं और ..........फिर तुम कैसे उनकी खिलाफत करकर ये विवाह करना चाहते हो?आखिर एक ऐसी लड़की को वे कभी ''बहु'' का सम्मान कैसे दे पाएंगे जो अपने माता-पिता की इज्जत को मिटटी में मिलाकर   घर से भागी हो .'' ज्योति के प्रश्न के उत्तर में रोहित उदास होता हुआ बोला ''तो क्या अपनी प्रेम-कहानी का अंत समझूं ?''.....''नहीं अब तो यह कहानी शुरू हुई है .हमें न घर से भागना है और न घुटने टेकने हैं .हमें बस अपने परिवार से धोखा नहीं करना है .''आँखों से आश्वस्त करती ज्योति ने अपना पर्स उठाया और रोहित से विदा ली .अभी ज्योति को गए एक घंटा ही हुआ था की रोहित के मोबाईल पर उसकी कॉल आई .सुनकर रोहित हक्का-बक्का रह गया .उसने पास खड़ी अपनी बाइक स्टार्ट की और ज्योति के घर की ओर दौड़ा दी .ज्योति के घर पहुँचते ही बाहर खड़ी   एम्बुलेंस देखकर उसके हाथ-पैर सुन्न पड़ने लगे .ज्योति को घर के अन्दर से उसके पिता व् भाई किसी तरह सहारा देकर एम्बुलेंस तक ला रहे थे .रोहित ने बाइक वहीँ छोड़ी और उसी ओर बढ़ लिया .ज्योति के करीब पहुँचते ही वो सबकी परवाह छोड़ कर उसे झंकझोरते हुए बोला ''ज्योति ये तुमने क्या किया ?तुम तो किसी को धोखा नहीं देना चाहती थी फिर जहर खाकर मुझे क्यों धोखा दिया ?...ज्योति थोडा होश में आते हुए बोली ....''रोहित मैंने तो सबका मान रखना चाहा था ......पर...मेरे माता-पिता ने ही मुझे धोखा दे दिया ...ये मेरे मना करने पर भी मेरा रिश्ता कहीं ओर तय कर आये .....मैं उस नए बंधन को भी धोखे में नहीं रखना चाहती थी ...और ..इसीलिए ये जहर ......'''यह कहते -कहते ज्योति निष्प्राण हो बुझ गयी .
                                                                                                शिखा कौशिक 
                                                          http://shikhapkaushik.blogspot.com

13 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

शिखा अच्छी कहानी है, पर मेरा सुझाव है कि कहानी का अंत मर्माहक होने के बजाए, इसे सही दिशा देकर खत्म करना चाहिए था। जहर खाई ज्योति को अस्पताल से वापस घर लाना चाहिए था, और माता - पिता इस प्यार को समझते.. और शादी को राजी होते। इससे युवाओं में एक सकारात्मक संदेश भी जाता। खैर ये सिर्फ मेरा सुझाव है, अन्यथा मत लीजिएगा।

Shalini kaushik ने कहा…

bachche maa-baap ki baton ko mahtava den aur unki aagya ka palan karen iske liye thoda lacheelapan to unhe bhi apne me lana hoga.aaj ke samay me apni bat ko hi upar rakhna sirf bachchon ko galat sabit karna hai jabki hamesha bachche galat nahi hote aur yadi aisa hota to sabhi ve vivah jo maa-baap karte hai safal hote jabki aisa nahi hai.marmik laghu katha.

निर्मला कपिला ने कहा…

शिखा महेन्द्र जी ने सही कहा। साहित्य के माध्यम से हमेशा अच्छा सन्देश जाना चाहिये दूसरा मै नही मानती कि हमेशा बच्चे ही सही होते हैं बहुत से उदाहरण हैं लेकिन समय नही आअज। कभी इस पर बहस करवाओ। शुभकामनायें।

अभिषेक मिश्र ने कहा…

आपकी कहानियों में सामायिक प्रश्नों के गैरपरंपरागत हल की झलक मिलती है. मैं आज के दौर में इस अंत की वास्तविकता से सहमत हूँ; मगर यहाँ वाकई एक और सौल्यूशन निकलना चाहिए था.

शिखा कौशिक ने कहा…

महेंद्र जी .निर्मला जी व् अभिषेक जी -मैं आप सभी की बात से पूर्ण रूप से सहमत हूँ किन्तु कभी कभी लेखक को कडवी सच्चाई भी लिखनी होती है जिससे पाठक स्वयं यह निर्णय ले कि आज समाज में जो हो रहा है वह सही है या गलत .आप सभी का बहुत बहुत आभार .

virendra sharma ने कहा…

गंभीर त्रासद अंत .तीसरी कसम ,एक दूजे के लिए ,और न जाने क्या -क्या याद आ गया .वियोग ही श्रृंगार का परबल पक्ष है संयोग नहीं .माँ -बाप को सीख देता अंत है कहानी का .किसी न किसी को ये कुर्बानी देनी होगी तभी ये आनर किलिंग पीढ़ी युवाओं का पीछा छोड़ेगी .विचलित करती है कहानी .नायिका का भाव जगत कितना सुकुमार ममत्व लिए .

A.G.Krishnan ने कहा…

This girl "Jyoti" is foolish; on one hand she is bold enough not to cheat her parents and on the other, consumed poison. She is totally confused as what to do.

Anyway, in present days one has to be sound enough, financially then only other part of life should be thought of to start.

Nice piece.

amrendra "amar" ने कहा…

"''ज्योति ये तुमने क्या किया ?तुम तो किसी को धोखा नहीं देना चाहती थी फिर जहर खाकर मुझे क्यों धोखा दिया ?...ज्योति थोडा होश में आते हुए बोली ....''रोहित मैंने तो सबका मान रखना चाहा था ......पर...मेरे माता-पिता ने ही मुझे धोखा दे दिया ...ये मेरे मना करने पर भी मेरा रिश्ता कहीं ओर तय कर आये .....मैं उस नए बंधन को भी धोखे में नहीं रखना चाहती थी ...और ..इसीलिए ये जहर ......'''यह कहते -कहते ज्योति निष्प्राण हो बुझ गयी ."

Shikha ji ant to bus nam hi ker gaya......gehri anubhuti hai aapko ...........badhai

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

आपकी कहानी पढ़ी,मार्मिक लगी,

Rachana ने कहा…

bahut sunder kahani hai .man bhar aaya
badhai
rachana

Vivek Mishrs ने कहा…

kahani ka ant marmik hai par
jo sach hai wo sach hai... aajkal na jane kitane log apane jeevan ka ant isi tarh se kar rahe hai..

sundar rachana hai dhanyavad

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

शिखा जी सार्थक -दिल को छू लेने वाली कहानी लेकिन कहानी का अंत दुखांत हो गया -काश वो बच जाती और फिर सब मान जाते ..
खैर ऐसा भी बहुत जगह हो रहा है अतः सटीक ही है -बधाई
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
.पर...मेरे माता-पिता ने ही मुझे धोखा दे दिया ...ये मेरे मना करने पर भी मेरा रिश्ता कहीं ओर तय कर आये .....मैं उस नए बंधन को भी धोखे में नहीं रखना चाहती थी ...और ..इसीलिए ये जहर ......'''यह कहते -कहते ज्योति निष्प्राण हो बुझ गयी .


सम्माननीया शिखा कौशिक जी हादिक अभिनन्दन आप का यहाँ पर -आप का समर्थन मिला हर्ष हुआ -कुल्लू शिमला घूमूँगा -बाल रचना अच्छी लगी आप को सुन हर्ष हुआ -
आभार आप का -आइये बच्चों को यों ही मुस्कुराते हुए देखते बढ़ते चलें
शुक्ल भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

Unknown ने कहा…

आपकी कहानी पढ़ी काफी कुछ सोचने पर बाध्य कर दिया