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शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

''अच्छा फिर फोन मत करना ...!'-एक लघु कथा

''अच्छा फिर फोन मत करना ...!'-एक लघु कथा 

[फोटो सर्च से साभार ]
''हैलो.....हैलो .....बेटा कब आ रहे हो इण्डिया ?...बहुत मन कर था तुमसे,बहू व् पोते से मिलने का .''...''माँ अभी तो टाइम नहीं मिल पायेगा ...यूं नो आई एम् वैरी  बिजी .......आप करती क्या हो सारे दिन वहां ?डैड की डैथ के  बाद से आप हो भी बिलकुल अकेली गयी हो ........आप किसी ओल्ड एज होम में शिफ्ट कर जाइये ....मन भी लग  जायेगा आपका .हमारे आने  का कोई प्रोग्राम नहीं है ..शायद ही समय मिले .आपके पोते की जिद पर  नेक्स्ट   वीक यूरोप भ्रमण की योजना है .अपना ध्यान रखना .....कोई परेशानी हो तो फोन कर देना  .माँ प्रणाम !'' 


दो  महीने बाद -


''हैलो ...हैलो ....माँ...प्रणाम! क्या बात है दो महीने से कोई फोन नहीं आया .मैंने अगले वीक इण्डिया आने का प्रोग्राम बनाया है .आपकी बहू और पोता भी आ रहे हैं .''...... माँ गंभीर स्वर में बोली  ''अरे बेटा खुद  ही बोलते जाओगे या मेरी भी सुनोगे...यहाँ आने का प्रोग्राम बनाने से पहले मुझसे पूछ तो लेते .अभी मेरे पास टाइम नहीं है ......बहुत बिजी हूँ .ओल्ड एज होम में शिफ्ट कर गयी हूँ .रोज नए  काम  ....नए परिचय  .....अब तो ये ही मेरा परिवार है .मेरी मृत्यु पर भी आने की जरूरत नहीं .यहाँ मैंने सब  इंतजाम कर लिया है .अच्छा फिर फोन मत करना ...!'

                                                                           शिखा कौशिक 
                                                           [मेरी कहानियां ]

12 टिप्‍पणियां:

Arun sathi ने कहा…

खामोश दर्द.. दिल को छू गया...सच का सामना

Vaanbhatt ने कहा…

जब आदमी अपने पे भरोसा कर लेता है...तो उसे किसी की जरुरत नहीं रह जाती...

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

अच्छा हुआ कि जल्दी पहचान हो गई !

monali ने कहा…

Hmm buzurgo ki bebasi ki jegeh ek samartha rup dekh kar achha laga.. :)

Smart Indian ने कहा…

जैसे को तैसा!

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

https://worldisahome.blogspot.com ने कहा…

माना मैंने मनमोहन जी का कार्टून कोपी नहीं करना चाहिए था .

पर राजेंद्र जी की बात से सहमात हूँ की यदि हम पर्लिअमेंट में फ डी आई ले आयें तो सब खट पट से मुक्ति मिल जाये और हमें सुशाशन मिल जाये , जब माल अमरीका की जेब में ही जाना है तो दिरेक्ट ही जाये , दलालों के द्वारा क्यों.

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

Vah Kaushik ji behad sundar prvishti..... abhar.

निर्झर'नीर ने कहा…

great exceelent bahut hi saargarbhit laghu katha mujhe bahut pasand aayi man khush ho gaya

https://worldisahome.blogspot.com ने कहा…

कहानी के लिए अच्छी कल्पना है ,

काश मोह माया में फंसा व्यक्ति ऐसा कर पाता .

सारे टिपण्णी लिखने वाले बताएं कि क्या वे कभी भी अपने किसी से भी ऐसा कह पायेंगे.

अशोक गुप्ता ,
दिल्ली
9810890743
ashok.gupta@gmail.com

Crazy Codes ने कहा…

kya kahun samajh mein nahi aa raha... sirf achha likh kar jana nahi chahta aur usse jyada likhne ko shabd nahi mil rahe....

Ragini ने कहा…

dil main utar gayi aapki kahani....