फ़ॉलोअर

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

ऐसा धोखा मत देना -लघु कथा

[दैनिक जनवाणी में 16-12-2012 को प्रकाशित ]


ऐसा धोखा मत देना -लघु कथा

'अम्मी ...मैं  ज़रा शबाना के घर होकर आ रही हूँ .''ये कहकर जूही ने अपनी जीभ हल्की सी काट  ली क्योंकि वो जानती थी कि  वो झूठ  बोल रही है .वो आज किसी और ही नशे में  झूम रही थी .शाहिद से उसका मेलजोल यूँ तो दो साल से था पर ...इश्क का  सिलसिला कैसे और कब शुरू हुआ जूही खुद भी न समझ  पाई थी .अब तो एक लम्हां  भी शाहिद से दूर रहना जूही को बर्दाश्त नहीं था .कल जब शाहिद का मैसेज उसे  अपने मोबाइल पर मिला तो वो ख़ुशी से झूम उठी .मैसेज में लिखा था -''जूही मैं  कल जुम्मे  के पाक दिन  तुम्हे प्रपोज़ करना चाहता हूँ .'' बस तब से जूही  शाहिद  से मिलने के लिए बेक़रार हो उठी थी .कब व् कहाँ मिलना है ? ये आज  सुबह मिले शाहिद के मैसेज से जूही जान चुकी थी .जूही ने पसंदीदा गुलाबी रंग  का सलवार -कुर्ता पहना और दुपट्टा सिर पर सलीके से ओढ़कर आईने में खुद का  दीदार कर खुद पर ही रीझ गयी .उसके गोरे  गालो पर गुलाबी दुपट्टे की धमक ने  उसे और भी खूबसूरत बना दिया था .जूही ठीक वक़्त पर शाहिद  की बताई जगह पर  पहुँच गयी .ये किसी इंटर कॉलेज की निर्माणाधीन बिल्डिंग थी .ऐसी सुनसान जगह  पर आकर जूही का दिल जोर जोर से डर के मारे धड़कने लगा ... पर सामने से  शाहिद को आते देख उसके दिल को सुकून आ गया .शाहिद ने जूही के करीब आते ही  उसे ऊपर से नीचे तक ऐसी वहशी नज़रों से निहारा कि जूही कि रूह तक कांप गयी  और उसके पूरे बदन में दहशत की लहर दौड़ गयी .जूही के दिल ने कहा -''ये तो  मेरा वो शाहिद नहीं जो जिस्मों से दूर रूहों के मिलन की बात करता  था .''  ...पर ....अब देर हो चुकी थी .जूही वहां से घर लौटने के लिए ज्यों ही पीछे  हटी उसके कन्धों को दो फौलादी हाथों ने जकड लिया .अगले ही पल उसके मुंह को  दबोचते हुए वो फौलादी शख्स जूही को अपने कंधे पर उठाकर एक कमरे  की ओर बढ़  लिया .पीछे से आते शाहिद ने उस शख्स   के कमरे में घुसते ही खुद भी अन्दर  आकर कमरे की चटकनी बंद कर दी .जूही को लगभग ज़मीन पर पटकते हुए उस  शख्स ने  जोर से  ठहाका लगाया .जूही ने आँखे उठाकर देखा 'ये आफ़ताब था ' शाहिद का  जिगरी दोस्त .जूही ने उन दोनों से दूर खिसकते हुए खड़े होकर ज्यों ही किवाड़  की ओर कदम बढ़ाये शाहिद झुंझलाते  हुए बोला  -''जूही इस  दिन के इंतजार में  मैं कब से था ...अब नखरे   मत  दिखा  यार ...'  शाहिद की इस घटिया बात पर  जूही का खून उबल पड़ा और उसका  दिल धधक उठा .अगले ही पल उसने दुपट्टा एक ओर  फेंकते   हुए अपने कुरते का गला पकड़ कर जोर से खीच   डाला . कपडे की रगड़ से  उसकी सारी  गर्दन की खाल  छिल गयी और उस पर  खून छलक आया .दर्द के कारण   जूही  तड़प उठी .अर्धनग्न खुले वक्षस्थल के साथ खड़ी  जूही जोर से  चीखती हुई  बोली -''नोंच लो ....दोनों मिलकर नोंच लो ...मेरे इस पाक बदन को नापाक कर  दो !!...पर आगे से किसी लड़की के साथ ऐसा धोखा मत करना .अल्लाह !तुम्हे कभी  माफ़ नहीं करेगा ...अल्लाह !  करे तुम्हारे घर कभी कोंई बेटी-बहन पैदा न हो  ...'' जूही ये कहते कहते ज़मीन पर घुटने   टेककर सिर झुकाकर बैठ गयी .दो कदम  उसकी ओर बढे और उसके सिर पर दुपट्टा डालकर कमरे की चटकनी खोल बाहर की ओर  बढ़ गए .जूही ने दुपट्टे से अपना जिस्म ढकते हुए सिर उठाकर कमरे में चारो ओर  नज़र दौड़ाई .शाहिद दीवार की ओर मुंह करे खड़ा था .बाहर की ओर गए कदम आफ़ताब  के थे .जूही की ओर पीठ किये हुए ही शाहिद बोला -''जूही ...मैं गुनाहगार हूँ  ...मुझे माफ़ कर दो ...मैं तुमसे निकाह करना चाहता हूँ !'जूही कांपते हुए  स्वर में बोली -''नहीं ... शाहिद ..अब मैं तुमसे निकाह नहीं कर सकती क्योंकि  अब मैं तुम्हे वो इज्ज़त ... कभी नहीं दे सकती जो एक शरीक-ए-हयात कोअपने  शौहर  को देनी  चाहिए  .खुदाहाफिज़ !!'' ये कहकर जूही तेज़ क़दमों से वहां से  चल दी .
  शिखा कौशिक 'नूतन'

2 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बेहतरीन,भावनात्मक प्रेरक कहानी,,,,

recent post: वजूद,

Ramakant Singh ने कहा…

BEAUTIFUL STORY