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सोमवार, 27 जनवरी 2014

”..और आग बुझ गयी !”-लघु कथा

''लखन चला गोली ....इस औरत के मज़हब वालों ने ही तेरा घर जला डाला ...तेरे बापू ..तेरी माँ ....सबको जला डाला ....सोच क्या रहा है ....चला गोली ...मार डाल ....!!'' सूरज ने लखन का कन्धा झंझोरते हुए कहा . लखन होश में आते हुए बोला -'' ना सूरज ना ...मैं नहीं चलाऊंगा गोली ...इनमे मुझे मेरी माँ दिखाई दे रही है ...मैं नहीं कर सकता इनका क़त्ल ...!!'' लखन के ये कहते ही सूरज का खून खौल उठा और उसने लखन के हाथ से रिवाल्वर झपटते हुए कहा -'' बकवास मत कर ....कायर ...गद्दार ...तू भी ज़िंदा नहीं बचेगा ...तू ज़िंदा रहने के काबिल नहीं !!'' ये कहते -कहते सूरज ने लखन को निशाना बनाते हुए गोली चला दी पर तभी लखन को अपने पीछे खींचते हुए उस औरत ने गोली के निशाने पर खुद को लाकर खड़ा कर दिया .गोली उस औरत का दिल चीरते हुए आर-पार निकल गयी और वो औरत चीख के साथ ज़मीन पर गिर पड़ी . लखन ने ज़मीन पर बैठते हुए उस औरत का सिर अपनी गोद में रखा और रोते हुए बोला -'' माँ आपने ये क्या किया ?'' उस औरत ने अंतिम सांस के साथ हिचकी लेते हुए कहा -''माँ अपने सामने अपने बेटे को क़त्ल होते कैसे देख लेती भला !'' ये कहते कहते वो औरत हमेशा के लिए शांत हो गयी और शांत हो गयी सूरज के दिल में धधकती हुई साम्प्रदायिकता की आग !!
शिखा कौशिक 'नूतन'

4 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मार्मिक ... माँ धर्म सम्प्रदाय से ऊपर होती है हमेशा ...

Vaanbhatt ने कहा…

बहुत खूब...

बेनामी ने कहा…

NICE STORY

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार आपका।