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सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

आशीष -कहानी


चिराग गुरुदेव के आश्रम में उनके दर्शनार्थ आया तो उसके साथ उसका प्यारा डॉगी टुकटुक भी कार में उसके साथ आया .कार से निकलते ही चिराग ने उसे भी गोद में लिया और आश्रम में घुसते ही उसे नीचे उतार दिया और वो वही घूमती एक गिलहरी के पीछे उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़ा .गिलहरी तेजी से पेड़ पर चढ़ गयी और ऊपर से झांक-झांक कर टुकटुक को चिढ़ाने लगी .चिराग ने इधर-उधर नज़र दौड़ाई तो देखा गुरुदेव प्रातः की प्रार्थना पूर्ण कर आश्रम के उपवन में लगे पौधों में जल का सिंचन कर रहे थे .चिराग ने उनके समीप जाकर -झुककर उनके चरण स्पर्श किये .गुरुदेव उसे आशीष देते हुए बोले-'' सदैव प्रसन्न रहो ! सदाचारी बनो !'' गुरुदेव के इन आशीषों पर इस बार चिराग ने विनम्र होकर उनसे पूछ ही लिया -'' गुरुदेव आप सदैव ये ही आशीष देते हैं मुझे ..जबकि अन्य श्रद्धालुओं को भिन्न-भिन्न आशीष देते हैं .ऐसा क्यूँ गुरुदेव ?'' गुरुदेव चिराग के इस प्रश्न पर मंद-मंद मुस्कुराते बोले- '' देखो पुत्र ! तुम्हारी आयु अभी अठ्ठारह -उन्नीस वर्ष की है .इस आयु में व्यवसायिक सफलता के प्रति ह्रदय में असीम महत्वाकांक्षाएं हिलोरें लेती हैं ....जो तनाव का कारण बनती हैं और कई युवा इस तनाव के आगे नतमस्तक होकर आत्महत्या तक कर लेते हैं .इसीलिए प्रथम आशीष मैं तुम्हें देता हूँ -''प्रसन्न रहो '' क्योंकि प्रसन्न वही रह सकता है जो संतोषी है .प्रयास करो पर निराश मत हो .जो प्रसन्नचित्त रहता है वही सकारात्मक प्रयासों द्वारा इच्छित सफलता प्राप्त करने में सक्षम हो पाता है .क्योंकि उसका मनोबल प्रबल रहता है .अब दुसरे आशीष ''सदाचारी बनो '' के सन्दर्भ में मेरी बात ध्यान से सुनों ...देखो वो उछलता-कूदता ,सबका मन मोहता तुम्हारा श्वान कितनी शान से रहता है .तुम उसे गोद में उठाकर खिलाते हो ,उसको तनिक भी परेशानी नहीं होने देते ,तुम्हारे वहाँ में ये राजाओं की तरह घूमता है ..पर है तो श्वान ही ना ...ये योनि क्यूँ मिली इसे ?..कभी सोचा है तुमने ? ...मैं बताता हूँ -ये पूर्व-जन्म में एक महान साधू था पर एक बार इसने अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण न रखते हुए प्रवचन सुनने आयी एक सुन्दर स्त्री को कामुक दृष्टि से देख लिया .ये मात्र एक क्षणिक वासना थी पर एक साधू के लिए ऐसा मानसिक आचरण तक पाप की श्रेणी में आता है जिसके कारण इसे यह योनि मिली .इसीलिए कहता हूँ सदाचारी बनो ..किसी स्त्री को वासनामय दृष्टि से मत देखो ...हुई कुछ जिज्ञासा शांत !'' गुरुदेव ने चिराग से मुस्कुराते हुए पूछा तो चिराग भी मुस्कुरा दिया .

शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

''चल बबाल कटा !'' -लघु कथा

''और बता सरला क्या हाल-चाल हैं तेरे ? बहुत दिन में दिखाई दी .''घर की चौखट पर कड़ी विमला ने सामने सड़क से गुजरती सरला से ये पूछा तो वो ठिठक कर रुक गयी और बोली- ठीक हूँ जीजी ...आप बताओ बहुत दुबली लग रही हो !'' सरला के समीप आते ही विमला उसके कंधें पर हाथ रखते हुए बोली -'' मेरा क्या ..अब उम्र ही ऐसी है ..कोई न कोई रोग लगा ही रहता है ..अरे हाँ तेरी बहू तो पेट से थी ना ...कौन सा महीना चल रहा है अब ?'' विमला के इस सवाल पर सरला उसके और करीब आकर इधर-उधर नज़रे घुमाते हुए उसके कान के पास आकर हौले से बुदबुदाई - ''जीजी उसका गरभ तो गिर गया ..सीढ़ियों से रपट गयी थी ..छठा महीना चल रहा था ...अब जाकर सम्भली है उसकी तबियत ..मैंने तो उसे मायके भेज दिया था ..यहाँ कौन तीमारदारी करता ...दो दिन पहले ही आई है ..वो तो भगवान् का शुक्र रहा कि पेट में लौंडिया थी लौंडा होता तो जुलम ही हो जाता !'' विमला सरला की इस बात पर तपाक से बोली -'' यूँ ही तो कह हैं सब भगवान् जो करता है अच्छा ही करता है ...चल बबाल कटा !''
शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 16 फ़रवरी 2014

अंतर -लघु कथा

'अरे वाह सिम्मी तुम तो बिलकुल भैय्या की तरह साइकिल चलाने लगी हो ...शाबास बिटिया !'' छह वर्षीय बेटी सिम्मी की तारीफ करते हुए उसके पापा ने उसकी पीठ थपथपाई तभी सिम्मी से तीन साल बड़ा उसका भाई सन्नी वहीँ गॉर्डन में आ पहुंचा और वहाँ खिला एक गुलाब का फूल तोड़कर बालों में अटकाने का प्रयास करने लगा .उसे ऐसा करते देखकर उसके पापा गुस्से में बोले -'' व्हाट नॉनसेंस ..क्या कर रहे हो ..तुम सिम्मी की तरह लड़की हो क्या जो फूल सजाओगे बालों में ..!'' ये सुनते ही सन्नी के हाथ से फूल छूट कर नीचे गिर पड़ा और सिम्मी साइकिल छोड़कर पापा के पास आकर बोली -'' पप्पा जब मैं भैया जैसा काम करती हूँ तब आप मुझे शाबाशी देते हो पर जब भैय्या मुझ जैसा कोई काम करता है तब आप उसे डांट देते हो ..ऐसा क्यूँ पप्पा ?'' पापा उसकी नन्ही हथेलियों को अपनी हथेली में कसते हुए बोले -'' बेटा जी आप अभी छोटी हो जब बड़ी हो जाओगी तब सब समझ जाओगी !'' ये कहकर पापा ने नीचे गिरा गुलाब का फूल उठाया और सिम्मी की चुटिया में सजा दिया .
शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

जिम्मेदारी -लघु कथा

''दीदी शाम हो चुकी है ..आप रहने दो ..मैं ही बदल कर ले आउंगा माँ की साड़ी की फॉल.. ...माँ भी ना देखकर नहीं ला सकती हैं पहली बार में ..!'' वासु ने सड़क पर साइकिल थामे दो वर्ष बड़ी अपनी पंद्रह वर्षीय बहन गिन्नी से ये कहा तो उसने तुरंत साइकिल वासु को थमाते हुए कहा -'' अब तू सच में बड़ा हो गया है वरना कितनी भी शाम हो रही हो तुझे बस खेलने की चिंता रहती और साइकिल मुझे पकड़ाकर भाग जाता ...मैं कितना कहती ''भाई मेरे साथ चल'' पर तुझे तो बस खेलने की पड़ी रहती ..'' गिन्नी के उलाहने पर वासु मुस्कुरा दिया और घर की चौखट पर खड़ी माँ ने मन में सोचा -''चलो वासु को एक बड़ी बहन का भाई होने की जिम्मेदारी का अहसास तो हुआ .''
शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

विधायक की पत्नी -कहानी

नौ साल बाद नौकरानी की हत्या के आरोप से सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरी किये जाने पर गरिमा सिंह ने राहत की सांस ली .लगातार छठी बार विधायक चुने गए उसके पतिदेव स्वराज सिंह सौ से भी ज्यादा करों का काफिला लेकर गरिमा को जेल से सम्मान सहित लेने आये .स्वराज को देखते ही गरिमा ने हजारों की भीड़ के सामने झुककर उनके चरण छुए और पैरों की धूल अपनी मांग में सजा ली .सारे जनसमुदाय के सामने आदर्श दंपत्ति गरिमा व् स्वराज की चारों ओर जय-जयकार होने लगी .अट्ठारह वर्षीय बेटा वैभव भी कार से उतर कर आया और माँ के चरण-स्पर्श किये . गरिमा ने उसे गले लगा लिया और उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए नम आँखों के साथ बोली -'' जग-जग जियो मेरे लाल !'' इसके बाद गरिमा को लेकर स्वराज का काफिला गृहनगर के लिए रवाना हो लिया .गृहनगर पहुँचने पर गरिमा का जोरदार स्वागत किया गया .जगह-जगह महिलाओं ने गरिमा की कार रोककर उससे हाथ मिलाया और सिसकते हुए बोली -''दीदी आप के बिना तो सारा नगर ही सूना हो गया था ...आज न्याय हुआ है !'' गरिमा की आँखें भी भर आयी .रुद्ध गले से बोली-''तुम्हारी दुआओं का ही फल है जो आज सम्मान के साथ वापस आयी हूँ !'' गरिमा का ऐसा स्वागत क्यूँ न होता ? आखिर गरिमा ही थी जिसने कभी किसी गरीब-दलित को घर की चौखट से खली हाथ न जाने दिया .क्षेत्र में कभी भी कोई दुर्घटना हुई और गरिमा ने उसके घर जाकर सांत्वना न दी हो- ऐसा कभी न हुआ . दीदी ,देवी और भी न जाने कितने सम्मान सूचक शब्दों से क्षेत्र की जनता पूजती थी गरिमा को . इन्ही विचारों व् संस्मरणों में खोई गरिमा जब विधायक -निवास पर पहुंची तब पहले तो उसकी आँखों में नमी आई और फिर वे दहकने लगी . गरिमा ने खुद को सम्भाला .पूरा विधायक-निवास फूलों से सजाया गया था .वैभव ने पीछे से आकर गरिमा के कन्धों पर हाथ रखते हुए कहा -'' माँ ...देखो ...कैसा लग रहा है ? ...मैंने खुद खड़े रहकर सजवाया है .'' गरिमा ने उत्साहित स्वर में कहा -'' बहुत सुन्दर ...आखिर हो तो तुम मेरे ही बेटे ना ..ऐसी सजावट तुम्हारी हर बर्थ-डे पर करवाती थी मैं ....'' ये कहते-कहते गरिमा अतीत में खोने लगी तो वैभव ने उसके कंधें झकझोरते हुए कहा -'' माँ ! अब मैं बालिग हो चूका हूँ ...चलो अंदर चलो ...आपका रूम दिखाता हूँ ...मैंने कुछ नहीं बदलने दिया ..जो जैसा था वैसा ही है ..एक -एक चीज जहाँ आप रखती वहीं रखी हुई है .'' ये कहकर वैभव के साथ गरिमा ज्यों ही अंदर की ओर चली उसने एक बार थोड़ी दूर खड़े अपने किसी ख़ास आदमी से बतियाते स्वराज की ओर देखा और फिर अंदर की ओर कदम बढ़ा दिए .वैभव ने गलत नहीं कहा था पूरा घर वैसा ही था जैसा गरिमा को छोड़कर जाना पड़ा था .गरिमा को उसके बैडरूम में छोड़कर वैभव फ्रैश होने चला गया . गरिमा ने दीवार पर टंगी अपनी व् स्वराज की विवाह की फोटो देखी और उसकी आँखों में खून उतर आया पर तुरंत उसने अपने को संयमित किया .गरिमा ने वज्र ह्रदय कर सोचा -'' बस अब एक भी रात की मोहलत न दूँगी ...अब मेरा बेटा बालिग हो चूका है ..मुझे किसी चीज की चिंता नहीं ..अपनी जान की भी नहीं ..क्या कहा था तुमने स्वराज जब जेल में बंद मुझसे मिलने के बहाने मुझे धमकाने आये थे ..यही ना कि ''यदि अपने बेटे की खैरियत चाहती हो तो चुप रहो ..जानती हो ना अभी वो नाबालिग है .तुम्हारे डैडी की अरबों की जायदाद भले ही उसके नाम हो पर अभी मैं ही उसका अभिभावक होने के नाते जो चाहूं कर सकता हूँ ..मेरी इमेज जनता में बिगाड़ी तो मैं भूल जाउंगा कि वैभव मेरा भी बेटा है ....समझ रही हो ना ....'' समझ रही थी स्वराज मैं सब समझ रही थी .मेरी ममता को हथियार बनाकर तुम ये ही चाहते थे कि मैं ना खोलूं वे राज़ जिनके कारण मैं निर्दोष होते हुए भी जेल में रहूँ और तुम आजाद .नौकरानी से अवैध सम्बन्ध तुम्हारे ...मारपीट न करती उससे तो क्या करती ..तुम्हारी शह पर थप्पड़ मारा था उसने मेरे और तुम खड़े देखते रहे थे ..बल्कि मुस्कुराये भी थे अपनी पत्नी की इस बेइज्जती पर ..और जब इन सब तनावों को झेल पाने में मैं अक्षम होने लगी तब तुमने अपने खरीदे हुए डॉक्टर से नशीले इंजेक्शन लगवाने शुरू कर दिए ..मुझे पागल करने का पूरा इंतजाम कर डाला था तुमने तभी उस नौकरानी के गर्भवती हो जाने पर तुमने उसका क़त्ल कर डाला ....मैं कभी न जान पाती यदि मेरा बेटा न बताता मुझे ..हाँ उसने देखा था तुम्हे उस नौकरानी का गला दबाते हुए और सारा इल्जाम लगा डाला मुझ पर कि अर्द्ध-विक्षिप्त मनोअवस्था में मैंने यह काम कर डाला .मैं तो सब राज़ पहले दिन ही खोल देती पर तुम्हारी आँखों में मैंने वो वहशीपन देखा था जो मेरे बेटे के टुकड़े-टुकड़े करने में भी संकोच न करता ...बेटा तो तुम्हारा भी था पर तुमने उसको एक हथियार बना डाला मुझे इस्तेमाल करने के लिए अपनी स्वार्थ-सिद्धि हेतु . आज तुम इस बैडरूम में आओगे तो खुद चलकर पर जाओगे चार कन्धों पर ..मेरी पिस्टल तो मेरी अलमारी में ही होगी ..'' ये सोचते हुए गरिमा बैड से उतरने ही वाली थी कि वैभव वहाँ आ पहुंचा और किवाड़ बंद करता हुआ बोला -'' माँ ..क्या पिस्टल लेने के लिए उठ रही हो ...वो तो डैडी ने आपके जेल जाते ही गायब कर दी थी ..पर आप फ़िक्र न करो अब इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी ...फोन की घंटी बजते ही आप जो सुनेंगी उससे आपको राहत मिल जायेगी .'' तभी फोन की घंटी बजी .गरिमा ने वैभव के चेरे को ध्यान से देखते देखते रिसीवर उठा लिया .दूसरी ओर से आने वाले जो शब्द गरिमा के कानों में गूँज रहे थे वो वर्षा की ठंडी बूंदों की भांति सात साल से सुलग रही उसके दिल की आग को हौले-हौले ठंडा कर रहे थे -'' गरिमा जी ..मैं थानाध्यक्ष बोल रहा हूँ ..बड़े दुःख के साथ मुझे आपको ये सूचित करना पड़ रहा है कि विधायक स्वराज सिंह जी की गाड़ी अनियंत्रित होकर सामने से आ रहे ट्रक से टकरा गयी जिसके कारण उनकी गाड़ी के परखच्चे उड़ गए और मौके पर ही विधायक जी की मृत्यु हो गयी .'' गरिमा की आँखें वैभव के चेहरे पर ही चिपक गयी जो शांत भाव से युक्त था .वैभव ने आगे बढ़कर गरिमा की मांग का सिन्दूर पोंछ दिया और उसकी कलाई थामते हुए बोला -'' अब इन सब की कोई जरूरत नहीं ..ये चूड़ी भी तोड़ डालो माँ !...आपने नौ साल का वनवास केवल मेरे लिए झेला तब क्या मैं आपके लिए इतना भी न करता माँ ..... आप का नया जीवन आज और अभी से शुरू हो गया है  ..... आप चुनाव लड़ोगी क्योंकि अब आप दिवंगत विधायक की पतिव्रता पत्नी हो ..'' ये कहकर वैभव अपने डैडी की डैडबॉडी लाने के लिए वहाँ से चल दिया .
शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

कवयित्री पत्नी -लघु-कथा

सारिका के पतिदेव चतुर बनते हुए बोले -'' तुम एक कवयित्री हो , मुझसे ज्यादा प्रेम काव्य से है तुम्हें, काव्य ही तुम्हारा श्रृंगार है फिर क्यूँ न मैं तुम्हें विवाह की वर्षगांठ पर इस बार सोने के किसी आभूषण की जगह काव्य की कोई उत्तम पुस्तक भेंट में दूं ?'' सारिका अपने कंजूस पतिदेव की मंशा को समझते हुए बोली -'' जैसी आपकी इच्छा पर एक कवयित्री होने के नाते मुझे भी अपने कर्तव्य का निर्वाह करना चाहिए ....कल से सुबह की चाय की जगह लेगी मेरी लिखी कोई क्षणिका !....और नाश्ते में मिलेगी चटपटी हास्यपूर्ण कविता !......दिन व् रात के भोजन में हाइकू ,हाइगा और मात्रिक-शाब्दिक छंदों की रोटी ,चटनी ,दाल ,पापड़ ,सब्जी ,अचार ....एक कवयित्री पत्नी के इस परिश्रम से आपको कोई कष्ट तो नहीं होगा पतिदेव ?'' पत्नी श्री के इस ब्रह्मास्त्र से पतिदेव हड़बड़ाते हुए बोले -'' पत्नी श्री आप केवल अन्नपूर्णा बनकर ही रहे मैं सोने की जगह हीरे का आभूषण लाकर दूंगा भेंट में ...बस काम से जब मैं घर लौटूं तब मुझे यही लगे कि मैं अपने घर आया न कि किसी कवि-सम्मलेन में .'' पतिदेव की इस बात को सुनकर सारिका मुस्कुराने लगी और पतिदेव अपनी योजना विफल होने के कारण खिसियाया हुआ मुख लेकर वहाँ से खिसक लिए .
शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

वे खास लड़कियां-कहानी

यूँ वे भी लड़कियां थी पर खास थी .खास यूँ क्योंकि वे शहर से कस्बे में आयी थी .कस्बे के महिला डिग्री कॉलेज में एक ऐसे विषय में एम्. ए. खुल गया था .इसलिए कस्बे में आना उन शहरी लड़कियों की मजबूरी थी .कॉलेज में तीन संस्कृतियों की लड़कियों का संगम हो रहा था .आस-पास के गांवों की ठेठ ,अक्खड़ ,जुझारू लड़कियां +कस्बे की 'शहर की ओर देखो' संस्कृति वाली लड़कियां+''वी आर दी बेस्ट ' सोच वाली शहरी लड़कियां .ये संगम गंगा+जमुना+सरस्वती वाला कतई न था . चूंकि शहरी लड़कियां संख्या में कॉलेज में काफी कम थी या दूसरे शब्दों में कहें अल्पसंख्यक वर्ग से थे इसलिए कस्बे की लड़कियों से मित्रता करना उनकी मजबूरी थी पर इसका तात्पर्य यह नहीं था कि शहर का होने का अभिमान वे किराये के कमरे में रख आयेंगी .वो अहंकार अपनी पूरी गंध के साथ उन लड़कियों द्वारा लगाये जाने वाले इत्र में मिलकर उन शहरी लड़कियों को महकाता रहता . वे खास लड़कियां कहती- ''हम जिधर से भी गुजरते हैं कस्बे के लोग हमें घूर-घूर कर देखते हैं .'' कहते हुए हिचक होती पर सड़क से गुजरते पिल्ले तक को कस्बे के लोग घूर-घूर कर ही देखते हैं ..समय है उनके पास और रही बात शहर की तो वहाँ इतनी आबादी है कि कौन किसे देखेगा ..पर शहर की लड़कियों ने इसे भी अपनी खासियत माना . शहरी लड़कियों का दम्भ उस समय सातवे आसमान पर जा पहुंचा जब कस्बे की एक दूकान से सामान लेते समय दूकानदार ने उनसे यह कह दिया -'' आप यहाँ की तो नहीं लगती !''एकाएक उन्हें अपने रहन-सहन ,भाषा ,हाव-भाव पर गर्व हो आया .मन ही मन आश्वस्त हो उठी वे ''हो न हो हममें कुछ न कुछ विशिष्ट है तभी तो एक कस्बाई दूकानदार को हम कस्बे के न लगकर बाहर के लगे ..हम हर प्रकार से कस्बे की लड़कियों से ज्यादा काबिल हैं ..सभ्य हैं और स्मार्ट हैं .'' तुरंत अभिमानी स्वर में उन शहरी लड़कियों ने जवाब दिया -'' हाँ हम शहर से हैं .'' बेचारी स्मार्ट बनने के चक्कर में ये तक नहीं समझ पाई कि दूकानदार तो मनमाने दाम वसूलने के लिए कंफर्म कर रहा था कि कहीं ये कस्बे के ही किसी जानकार के घर से न हो .खैर ये शहरीपन का घमंड गांव की उस लड़की के सामने भी कम हो जाता जो अपनी कार से कॉलेज आती .''गांव की है तो क्या अमीर है ..इस लड़की से मित्रता की जा सकती है !'' शहरी लड़कियों ने अपने सिद्धांतों में थोड़ी ढील दे दी .इसे कहते हैं दर्शन ...दूरदर्शन .गांव की लड़की से ज्यादा उसकी कार के आकर्षण में बंध गयी शहर की लड़कियां . ''कार में बैठकर गांव घूम आते हैं''-.शहर की लड़कियां गांव घूमने गयी .गांववालों का सौभाग्य ...गन्ना खाएंगी ..पर कैसे ..हम तो शहर की लड़कियां हैं ..गन्ना कभी खाया ही नहीं ..हमें नहीं आता !'' नहीं आने में भी गर्व का अनुभव . ''बिजली कितनी आती है यहाँ ...शहर में तो चौबीस घंटे आती है ..शाम होते ही अँधेरा हो जाता है यहाँ ..शहर में तो देर रात तक घुमते -फिरते हैं सब .'' शहरी होने के लाभ गिनाती हैं गांवों के घर में बैठकर . ''कितना तेल लगाती हैं गांव की लड़कियां बालों में ...छिः और आँखों में कितना काजल ..उफ्फ ! ''एक दुसरे के कान में कहकर मुंह बिचकाती हैं .शहर की लड़कियां यूँ ही ख़ास नहीं हैं ...वे शैम्पू से धोकर रखती हैं बाल ..एकदम हल्के-हल्के .......कंडीशनर ,फेसपैक ,थ्रेडिंग और भी बहुत कुछ है उनके पास ख़ास जो गांव की गंवार लड़कियों को नहीं पता पर इन शहरी लड़कियों के कसबे में आने से चल निकला है ''ब्यूटी पार्लर ''का धंधा .गांव-गांव खुलेंगें ब्यूटी पार्लर .अब हाथ के नल से पानी भरकर लती गांव की लड़की मुल्तानी मिटटी मुंह पर लगाये न दिखेगी ..वो भी जायेगी ब्यूटी पार्लर .फेसपैक लगवाएगी .शहरी लड़कियों जैसा दिखने की चाह कसबे की लड़कियों से गांव की लड़कियों तक पहुँच गयी मानों कोई संक्रामक बीमारी हो .मासूम गांव की लड़कियां नहीं जानती वे खास शहरी लड़कियां तब भी गांव की लड़कियों को उपेक्षा के भाव से ही देखेंगी क्योंकि सर्व विदित तथ्य ये है कि वे शहर की हैं और इसी बात का गुरूर है .मगर एक पेंच फंस ही गया जब शहर की लड़कियों को दिखा कि कुछ कस्बे की लड़कियां तो उनसे भी ज्यादा स्मार्ट है पर फिर उनके शहरी होने के दम्भ ने चेताया -'' होने do हैं तो कस्बे की ही ..हम तो शहर के हैं .'' किसी दिन कस्बे के किसी घर में चाय पी रही हैं शहरी खास लड़कियां और चाय पर कमेंट -'' यहाँ की चाय पीकर तो हमारे होंठ चिपक जाते हैं .'' अब कौन यकीन करे इस बात पर जिन शहरी लड़कियों के होंठ अपने द्वारा बनाई गयी कॉफी की हाई शुगर से नहीं चिपकते वे कस्बे की चाय से चिपक जाते है ...घोर आश्चर्य .यहाँ भी एक वर्गीकरण कर दिया है खास लड़कियों ने ''चाय को कस्बाई '' और कॉफी को शहरी'' के वर्ग में रखा है .ऐसी खास लड़कियों के दिमाग में एम्.ए. की पढ़ाई घुसी या नहीं पर उनका शहरीपन पूरे सत्र के दौरान उनके दिमाग में छाया रहा .इन खास लड़कियों की खास सोच इन्हें खास बनाये रही और वे एम्.ए. में औसत अंक लेकर कस्बे से विदा हो गयी अपने उसी खास......... पन के साथ .
शिखा कौशिक 'नूतन'