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मंगलवार, 18 मार्च 2014

''अजी बावली है बीजेपी''- short -story


  ''अजी सुनते हैं आजकल  एक नारा ''अबकी बार। मोदी सरकार '' दिन-रात दूरदर्शन पर सुनते -सुनते मैंने भी ये मन बना लिया है कि मैं इस बेचारे को ही वोट दे दूँगी। इसका चुनाव निशान क्या है जी ? श्रीमती जी के ये पूछते ही उनके पतिदेव भड़कते हुए बोले -''मुझे क्या पता ?इस बेचारे से ही पूछ  लो। मैं तो बीजेपी को वोट दूंगा और उसका चुनाव -निशान है 'कमल '। ''पतिदेव के जवाब पर श्रीमती जी मुंह बनाते हुए बोली -''  अजी छोडो भी बीजेपी का राग अलापना। देख लेना अपने मोदी की ही सरकार बनेगी और आपकी बीजेपी धूल का फूल बनकर रह जायेगी। बड़े आये कमल वाले !'' पतिदेव श्रीमती जी के ये कहते ही ठहाका लगाते हुए बोले -''अरी बावली मोदी बीजेपी के ही तो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं !'' श्रीमती जी उलाहना देती हुई बोली -''अजी बावली मैं नहीं आपकी बीजेपी है जो नारा ये देने के बजाय ''अबकी बार -बीजेपी सरकार '' ये दे रही है -''अबकी बार -मोदी सरकार '' ...... !''

शिखा कौशिक 'नूतन '

सोमवार, 17 मार्च 2014

ऑनर किलिंग रुके कैसे ?-कहानी




रणवीर  का गुस्सा सांतवे आसमान पर पहुँच  गया और कॉलेज की कैंटीन में उसने अपनी कुर्सी से खड़े होते हुए टेबिल की दूसरी तरफ  सामने की कुर्सी पर बैठे सूरज के गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया .सूरज भी तिलमिलाता हुआ अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया और टेबिल के ऊपर से झुककर रणवीर की कमीज़ का कॉलर पकड़ लिया .आसपास बैठे दोस्तों ने दोनों को पकड़कर अलग कराया .रणवीर सुलगता हुआ बोला '' ये ऑनर  किलिंग नहीं है ..ये सजा है बाप-भाई को धोखा देने की ..उन्हें समाज में बेइज्ज़त करने की , मर्यादाओं को ठेंगा दिखाने की और फिर तू बर्दाश्त कर लेगा अगर तेरी बहन ...!!!'' रणवीर  अपनी बात पूरी करता इससे पहले ही सूरज चीखता हुआ बोला -'' अपनी गन्दी जुबान बंद कर ..वरना !'' सूरज की ललकार पर रणवीर तपते लोहे की तरह उसे तपाता हुआ बोला - '' वरना..वरना क्या ?निकल गया सारा आधुनिकतावाद ..मानवतावाद ..भाई जिस पर पड़ती है वो ही जानता है .एक बाप ने बेटी पर विश्वास कर उसे पढ़ने भेजा और वो पढाई छोड़कर प्रेम -प्यार  के चक्कर में पड़ कर किसी के साथ भाग गयी .बाप ने जहर खा लिया .यदि बाप ऐसे में मर जाये तो क्या ऐसी विश्वासघातिनी बेटी पर बाप की हत्या का मुकदमा नहीं चलना चाहिए ? मैं भी किसी के क़त्ल का समर्थन नहीं करता पर जिस बाप की बेटी बाप को धोखा देकर किसी के साथ भाग जाये या जिस भाई की बहन ऐसा ज़लील काम कर जाये उसे ये मानवतावाद की बातें पल्ले नहीं पड़ती .वो या तो फांसी लगाकर खुद मर जाता है या बेटी-बहन और उसके प्रेमी को फांसी चढ़ा देता है .कारण वही एक  है-हर बाप और भाई अपने घर की लड़की पर विश्वास करते है कि वो ऐसा कोई काम नहीं करेगी जिससे इस समाज के सामने उन्हें शर्मिंदा होना पड़े पर जब वो विश्वासघात कर... घर की इज्जत नीलाम कर ..किसी अजनबी पर विश्वास कर भाग जाती है ..सब मर्यादाएं तोड़कर.. तब केवल बाप-भाई को दोष देना कहाँ तक उचित है ऐसे कत्लों में ..क्या लड़की का यही कर्तव्य है ?..समाज की जो भी निर्धारित  मान्यताएं हैं वो किसी एक बाप-भाई ने तो बनाई नहीं ..सदियों से चली आ रही है ..उनसे कैसे एकदम नाता तोड़ दें वे बाप-भाई  ?'' सूरज थोडा ठंडा होता हुआ बोला -'' मैं कब मर्यादाओं के उल्लंघन की बात कर रहा हूँ पर बाप-भाई को ये तो देखना चाहिए कि यदि लड़की द्वारा चुना गया जीवन -साथी योग्य है तब क्यूँ समाज की फ़िज़ूल बातों  पर खून गर्म कर दोनों को मौत के घाट उतारने पर उतारू हो जाते हैं ? तुम मानों या न मानों यदि संवाद का माध्यम खुला रहे बेटी व् बाप-भाई के बीच में तो घर से भागने वाले प्रेमी-युगलों की संख्या शून्य रह जायेगी और  एक बात अन्य भी  गौर करने योग्य है कि  पंचायतों के फरमान पर खुले-आम फांसी पर लटकाये गए प्रेमी-युगलों को देख कर  भी घर से भागने वाले प्रेमी-युगलों की कमी नहीं है बल्कि दिनोदिन बढ़ती ही जा रही है .इससे तो यही साबित होता है कि -भय से बढ़ती प्रीत '' सूरज की इस बात पर रणवीर व्यंग्यात्मक स्वर में बोला -'' ..''प्रेमी-युगल''  ...माय फुट..माँ-बाप ने भेजा पढ़ने को और ये रचाने लगे प्रेम-लीला .जो किसी और की लड़की को ले भागा यदि उसकी बहन किसी गैर लड़के से मुस्कुराकर बात भी कर ले तो उस लड़के को सबक सिखाकर ही घर लौटता  है उस बहन का भाई  और फिर सगोत्रीय विवाह ..कैसे स्वीकार कर लिया जायेगा ? प्रेम के नाम पर कल को यदि भाई-बहन के सम्बन्धों की मर्यादा  को कोई तार-तार करने लगे तो क्या हम  मानवतावाद ...मानव के अधिकार के नाम पर स्वीकार कर लेंगें  ?नहीं ऐसा न कभी हुआ है और न कभी होगा !!!'' सूरज सहमत होता हुआ बोला -''तुम्हारी बात ठीक है पर मर्यादित आचरण की नींव घर-परिवार  से ही पड़ेगी .जब परिवार में लड़कों को तो छूट दे दी जायेगी कि जाओ कुछ  भी करो और लड़कियों के ऊपर सख्ती रखी जायेगी तो लड़कियों की सोच यही तक सीमित रह जायेगी कि उनका सशक्तिकरण का रूप केवल उनके द्वारा स्वयं चयनित वर है ..शादी-विवाह ..इससे आगे वे अपने जीवन का उद्देशय ही नहीं जान पाती तब तक ऐसी घटनाएं घटती  ही रहेंगी ...इन्हें नहीं रोका जा सकता है .मर्यादा -पालन का सारा बोझ लड़की के कंधें पर रख देना भी उसके विद्रोह का एक कारण है .परिवार की इज्जत केवल लड़की का आचरण ही नहीं लड़के का चरित्र भी है .जब तक परिवारों में मर्यादा -पालन का पाठ दोनों को ही समान रूप से नहीं सिखाया जायेगा तब तक लड़कियों को इज्जत के नाम पर मौत के घाट उतारने से कुछ नहीं होने वाला !'' रणवीर गम्भीरता के साथ बोला -'' हाँ..हाँ बिलकुल लड़कियों को भी अपनी बात परिवार में बिना झिझक  रखने का पूरा अधिकार होना चाहिए .यदि वे सही हैं तो उनका समर्थन किया जाना चाहिए पर इसके लिए बहुत बड़े सामाजिक-परिवर्तन की आवश्यकता  है ...पितृ-सत्तात्मक समाज में तो ये असम्भव सा जान पड़ता है पर एक बात पर मुझे  अचरज  होता है कि बाप-भाई को दुश्मन मानकर घर से भागने वाली लड़की क्या कभी ये नहीं सोचती कि जिसके साथ तू भाग रही है यदि इसने  तुझे धोखा दे दिया तो तू कहाँ जायेगी ..वापस उन्ही दुश्मन बाप-भाई के पास !!!'' सूरज रणवीर के सुर में सुर मिलाता हुआ बोला -'' बिलकुल ठीक ...बल्कि अपनी पसंद से विवाह को नारी-सशक्तिकरण का नाम देती हैं जबकि सशक्त तो तब भी पुरुष ही हुआ ना कि लो अपनी मर्जी से जिसे चाहा ले भागा...निभेगी तो निभाऊंगा वरना पल्ला  झाड़ लूँगा ..क्या कहते हो ? रणवीर की नज़र तभी दीवार पर लगी घडी पर गयी और वो हड़बड़ाता हुआ बोला- ''अरे  इतना  टाइम  हो गया ..भाई सूरज इस बहस का निष्कर्ष बस यही निकलता है कि बाप-भाइयों को भी बेटी व् बहनों के दिल में ये विश्वास पैदा करना होगा कि हम तुम्हारे सही फैसले पर तुम्हारे साथ हैं और तुम्हे भी अपना पक्ष परिवार में रखने का पूरा हक़ है ..तभी कोई हल निकलेगा इस क़त्ल -ए-आम का ..ये भी सच है कि लड़कियों को भी ऐसा कदम उठाने  से पहले सौ बार सोच लेना चाहिए क्योंकि कोई भी माँ-बाप अपने बच्चे का क़त्ल यूँ ही नहीं कर डालता .लड़कियों को ये भी सोच लेना चाहिए कि कहीं अपने सशक्तिकरण की आड़ में अपने शोषण का हाथियार ही हम पुरुषों के हाथ में न दे बैठे ..चल यार अब माफ़ कर दे मुझे.. मैंने गुस्से में आकर तेरे तमाचा जो जड़ दिया था उसके लिए .'' सूरज अपना गाल सहलाता हुआ बोला -'' लगा तो बहुत जोरदार था पर आगे से ध्यान रखूंगा जब भी इस मुद्दे पर तेरे से बात करूंगा हेलमेट पहन कर किया करूंगा .'' सूरज की इस बात पर रणवीर के साथ-साथ वहाँ खड़े और मित्रगण भी ठहाका लगाकर हंस पड़े !
PUBLISHED IN JANVANI  [RAVIVANI] 27APRIL2014


शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 14 मार्च 2014

''पति-पत्नी ''-लघु-कथा



आज अमर जब ऑफिस से घर लौटा तो पाया रिया भी ऑफिस से आ चुकी थी . अमर ने घर में घुसते ही कहा -'' मैडम आज मेरे पास एक गुड न्यूज है .'' अमर की इस बात पर रिया चहकते हुए बोली -'' और मेरे पास भी ..!'' अमर ने अपना बैग और कोट उतार कर सोफे पर रखा और बोला -''दैट्स वंडरफुल ...चलो पहले तुम सुनाओ ..लेडीज़ फर्स्ट !'' रिया मुस्कुराते हुए बोली ''..नो ..पहले तुम सुनाओ ..हसबैंड फर्स्ट !'' अमर ने सहमति में गर्दन हिलाते हुए कहा -'' ओ.के. ..तो सुनिये  मैडम ..मेरा प्रमोशन हो गया है !'' रिया ये खुशखबरी सुनकर तपाक से बोली -'' आई न्यू दिस ...आखिर तुम हो ही इतने बुद्धिमान !'' अमर ने टाई की नॉट ढीले करते हुए कहा -'' थैंक्स मैडम ...अब आप भी अपनी गुड न्यूज सुना ही दीजिये .'' रिया ने उत्साही स्वर में कहा -'' जनाब मुझे भी प्रमोशन मिला है !'' अमर रिया की इस खुशखबरी पर तारीफ के रैपर में तानें की टॉफी खिलाते हुए बोला -'' हां..हाँ भाई ..क्यूँ न होता तुम्हारा प्रमोशन ..तुम खूबसूरत ही इतनी हो !!!''

शिखा कौशिक 'नूतन'  

गुरुवार, 13 मार्च 2014

''बदचलन कहीं की'' - लघु -कथा


सत्यनारायण की बहुत समय बाद अचानक अपने पुराने मित्र श्याम लाल से बस में मुलाकात हो गयी .दोनों ही गांव से शहर जा रहे थे . श्याम लाल ने औपचारिक बातचीत के बाद उत्सुकता वश  आखिरकार सत्यनारायण से  पूछ ही लिया -''अरे भाई एक बात तो बता ..तेरे उस भांजे का  क्या हुआ जो किसी लड़की को ले भागा था ? बहुत शोर मचा था तब ..तीन साल हो लिए होंगे इस घटना को !'' सत्यनारायण  गम्भीर होते हुआ बोला -''होना क्या था भाई ...पंचायत ने बीच में पड़कर छुट-छुटाव करवाया ...दो साल पहले उसका ब्याह कर दिया था ..तब से सुधर गया है .बस अब अपने बाल-बच्चों में रमा रहता है ..लड़का भोला था ....बहक गया था  .'' श्यामलाल दोगुनी  उत्सुकता के साथ बोला -..और उस लड़की का क्या हुआ ..जो उसके साथ भागी थी ?'' सत्यनारायण कड़वा सा मुंह बनाता हुआ बोला -'' उसका क्या होना था ......सुना है उसके बाप ने ही जहर देकर मार डाला उसे और चुपचाप मामला निपटा दिया ...बदचलन कहीं की ...ऐसी लड़की भी कभी सुधरा करती हैं क्या ..!!!

शिखा कौशिक 'नूतन' 

बुधवार, 12 मार्च 2014

हूँ तो औरत जात ही ना !''--लघु कथा




एक कच्ची कोठरी में गुजर-बसर करने वाले राधे ने अपनी पत्नी को बाल संवारते हुए देखा और उसकी नज़र पत्नी की सूनी कलाई पर जाकर टिक गयी .पास ही दीवार पर टंगे कैलेण्डर में लक्ष्मी जी को देखकर राधे अपनी पत्नी से बोला -''काश मैं भी तुझे लक्ष्मी मैय्या जितने गहनों से लाद पाता पर देख तेरे पास तो पहनने के लिए कांच की चूड़ियाँ तक नहीं हैं .'' राधे की पत्नी मुस्कुराती हुई बोली -''दिल क्यूँ छोटा करते हो जी .....ये तो सोचो अगर मैं लक्ष्मी मैय्या जितने गहने पहन कर इस कोठरी में रहूंगी  तो किसी दिन डकैत आ धमकेंगे !'' राधे पत्नी की बात पर ठहाका लगता हुआ बोला -'' बावली कहीं की ...जो तुझे इतने गहने पहनाने की मेरी औकात होगी तो क्या तुझे इस कोठरी में रखूंगा ?'' राधे की इस बात पर उसकी पत्नी अपने माथे पर हाथ मारते हुए बोली -'' हा!!! लो ..ये बात तो मेरे मगज में ही नहीं आई ...हूँ तो औरत जात ही ना !''

शिखा कौशिक 'नूतन' 

सोमवार, 10 मार्च 2014

पाक मोहब्बत -कहानी


Interfaith wallpaper

कृष्णपाल ने अपने घर के निचले हिस्से में एक मुस्लिम परिवार को किराये पर रख छोड़ा था .दो वर्ष पूर्व पत्नी की मृत्यु के बाद से कृष्णपाल के परिवार में केवल एक बेटा अमर व् बेटी रूपा थे .कृष्णपाल पास के ही कस्बे के एक इंटर कॉलेज में टीचर थे . किरायेदार मुस्लिम परिवार के मुखिया युसूफ थे .उनके परिवार में पत्नी ज़ाहिदा के अलावा बड़ा बेटा आलम ,बेटी ज़ेबा और उससे छोटा आरिफ थे . रूपा और ज़ेबा हमउम्र किशोरी थी और अमर आलम से चार-पांच साल छोटा था .सब बच्चों में सबसे छोटा था आरिफ जो ग्यारह वर्ष का था .रूपा की सबसे ज्यादा छनती थी आरिफ के साथ जो रूपा को रुपी आपी कहता और अमर को सबसे अच्छा लगता था ज़ेबा से बतियाना .आलम का मिज़ाज़ अलग था .वो न तो अपने अब्बा के इस फैसले से खुश था कि किसी हिन्दू के घर में किराये पर रहा जाये और न ही उसे ज़ेबा और आरिफ का -रूपा व् ज़ेबा से मेलजोल अच्छा लगता था .घर के पास के ही स्कूल में अमर बारहवीं का छात्र था और रूपा व् ज़ेबा ग्यारहवीं की छात्रा थी .आरिफ छठी कक्षा का छात्र था ..आलम ने पांचवी में फेल होने के बाद से ही पढाई छोड़ दी थी और अपने अब्बा के साथ उनकी लुहार की दुकान पर ही काम करता था . कॉलेज आते-जाते अमर का ज़ेबा के प्रति बढ़ता आकर्षण रूपा ने उसकी बातों से जान लिया था .रूपा ने अमर को समझाया भी था -'' भाई तू समझता क्यूँ नहीं !!!पिता जी को पता चलेगा तो तेरी हड्डी-पसली तोड़ देंगें ... . हम दोनों परिवारों के धर्म अलग -अलग हैं ...ये ठीक है हम ये नहीं मानते पर ज़ेबा के बड़े भाई आलम को तो देख ..दिल में आग लिए फिरता है हमारे लिए ...वो तो युसूफ चचाजान पिता जी के अच्छे दोस्त हैं जो उसे दबाये रखते हैं पर तू अगर ज़ेबा के साथ दोस्ती बढ़ाएगा तो ये युसूफ चचाजान को भी पसंद न आएगा ....ज़ेबा की अम्मी भी हम से थोडा परहेज़ रखती हैं ....मान जा ..पढाई पर ध्यान दे ..वरना सत्यानाश हो जायेगा ...'' पर अमर के ऊपर मोहब्बत का जूनून चढा था .उसे न तो समझना था और न वो समझा उधर ज़ेबा ने भी नासमझी का परिचय दिया और एक दिन दोनों चुपचाप घर से भाग गए .ये खबर पता चलते ही कृष्णपाल और युसूफ के पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी .दोनों उन्हें ढूढ़ने निकल पड़े और इधर आलम ने अपने आवारा दोस्तों को फोन कर घर पर बुला लिया ..आलम के बुरे इरादे जिसने छिपकर सुने थे वो था रुपी आपी का लाड़ला आरिफ .आरिफ बिना वक्त गवाए सीढ़ियां चढ़ता हुआ ऊपर भागा .उसकी रुपी आपी कमरे में बने छोटे से मंदिर के आगे हाथ जोड़े बैठे थी .बदहवास आरिफ ने कमरे में पहुँचते ही उसके किवाड़ अंदर से बंद कर लिए .रूपा घबरा गयी .आरिफ का सफ़ेद पड़ा चेहरा देखकर उसने आरिफ के कंधें पकड़कर झँझोरते हुए पूछा -'' क्या हुआ आरिफ ..इतना घबराया हुआ क्यूँ है ?'' आरिफ हांफता हुआ बोला -'' रुपी आपी ..आपी ..आप कहीं छिप जाइये ..आलम भाईजान ने अपने दोस्तों को फोन कर यहाँ बुलाया है ..वो फोन पर कह रहे थे कि आपको बर्बाद कर देंगें ....वो ऊपर आते ही होंगें ..उनके सिर पर शैतान चढ़ा हुआ है ..वो आपको नहीं छोड़ेगें ...आपी छिप जाओ ...मैं कह दूंगा आप यहाँ हो ही नहीं .'' आरिफ की बात सुनकर रूपा का सिर चकरा गया और सारा बदब पसीनों से भींग गया .उसके हाथ-पैर सुन्न पड़ गए थे .उसने सूखे गले से पूछा -'' चचीजान कहाँ हैं आरिफ ..तेरी अम्मी कहाँ हैं ?'' आरिफ अपनी रुपी आपी को डर से थरथराते देखकर उसकी हथेली कसकर पकड़ते हुए फुसफुसाया -'' आपी अम्मी तो बेहोश पड़ी है ..उसे कोई सुध नहीं ...आप जल्दी से छिप जाइये !'' आरिफ के ये कहते ही रूपा के मुंह से निकला ''कहाँ छिप जाऊं ?''तभी उसका चेहरा सख्त हो गया मानों कोई कठोर निर्णय ले लिया हो दिल ही दिल में .उसने आरिफ को गले लगाते हुए कहा -'' मेरे भाई ..शुक्रिया तूने मेरी लाज बचाई ..जा जाकर कमरे के बाहर खड़ा हो जा ..मैं कहीं छिप जाती हूँ .'' ये कहकर रूपा ने कमरे के किवाड़ खोल दिए और आरिफ के बाहर निकलते ही किवाड़ अंदर से बंद कर लिए .उधर आवारा दोस्तों के आते ही उबलते खून को ठंडा करने के लिए हैवानियत के इशारे पर नाचता हुआ आलम ऊपर आ पहुंचा .उसके हाथ में तलवार थी और दिल में खूंखार इरादे .आरिफ को कमरे के बाहर किवाड़ों से सटा खड़ा देखकर उसने आरिफ का हाथ खींचकर एक ओर गिराते हुए कहा -पहरेदार बनकर खड़ा है ..पता भी है ज़ेबा को लेकर नहीं भागा तेरा वो अमर भाई ..हमारी इज्जत को लेकर भागा है ..सारी बिरादरी में नंगा कर दिया हमें ..अब उस अमर की बहन का क्या हश्र करते हैं हम.. देख ..!'' ये कहकर आलम और उसके दोस्त किवाड़ों पर लातें मारने लगे .आरिफ तेजी से उठा और आलम की टांग पकड़कर खींचते हुए बोला -''अल्लाह की कसम मेरे ज़िंदा रहते मेरी रुपी आपी का कोई कुछ नहीं बिगड़ सकता.'' .ये सुनते ही आलम ने आव देखा न ताव और तलवार आरिफ के पेट में घुसेड़ डाली .आरिफ के चीत्कार से सारा मौहल्ला ठर्रा उठा और दूसरी ओर कमरे के किवाड़ खुलते ही आलम के दोस्तों के मुंह से चीख निकल पड़ी .रूपा की लाश छत के पंखें से लटक रही थी . मौत का ऐसा तांडव देखकर आलम के दोस्त भाग खड़े हुए और मौहल्ले वालों की सूचना पर पुलिस वहाँ आ पहुंची .कृष्णपाल व् युसूफ भी सूचना पाकर वहाँ आ पहुंचे .जेल जाते समय युसूफ ने अपने अब्बा और कृष्णपाल से बस इतना कहा -यदि किसी दिन ज़ेबा और अमर मिल जाएँ तो तो ठंडे दिमाग से कोई फैसला लीजियेगा .अमर व ज़ेबा ने नादानी में जो किया वो किया पर आप भूल जाइयेगा कि आप हिन्दू हैं या मुस्लिम ..तब केवल इंसान बनकर सोचियेगा बिलकुल मेरे आरिफ और उसकी रुपी आपी के तरह .आरिफ ने मुसलमान होते हुए भी अपनी हिन्दू बहन के लिए जान कुर्बान कर दी क्योंकि वे दोनों केवल इंसान थे हिन्दू या मुसलमान नहीं ..मेरे भाई आरिफ मैं हत्यारा हूँ तेरा और तेरी रुपी आपी का ..लेकिन तुम दोनों भाई-बहन की पाक मोहब्बत की हत्या कोई नहीं कर सकता .'' ये कहकर आलम पुलिस की जीप में बैठ कर चला गया और कृष्णपाल और युसूफ गले लगकर रो पड़े .
शिखा कौशिक 'नूतन '

आँखें -लघु कथा



''दादी माँ रुकिए !...उस कुर्सी पर मत बैठिये .. ..उस पर मधु मक्खी बैठी हुई है .'' ये कहकर किशोर शोभित ने कुर्सी पर से मधुमक्खी को उड़ा दिया और दादी माँ को उस पर सहारा देकर बैठाते हुए बोला -'' दादी माँ ..आज तो आपके मधु मक्खी काट ही लेती ..जरा ध्यान से देखकर बैठा कीजिये ..अब आपकी नज़र कमजोर हो गयी हैं !'' दादी माँ शोभित के सिर पर स्नेह से हाथ रखते हुए बोली -'' तू हैं ना ..फिर मुझे किस बात की चिंता !..पर एक बात बता तू तम्बाकू कब से खाने लगा ?...खबरदार जो आज के बाद तम्बाकू खाया .'' दादी ने शोभित का एक कान ये कहते हुए हल्के से खींच दिया .शोभित दंग होता हुआ बोला -'' आपको कैसे पता कि मैं तम्बाकू खाता हूँ ? ''दादी माँ मुस्कुराते हुए बोली -'' दिखाई देने वाली आँखें भले ही उम्र के साथ कमजोर हो जाएँ पर मन की आँखें उम्र बढ़ने के साथ तेज होती जाती हैं .....तेरी सांसों से तम्बाकू की बदबू आ रही है दुष्ट !'' शोभित अपने दोनों कान पकड़ते हुए बोला -'' आई स्वैर दादी माँ ! आगे से कभी तम्बाकू नहीं खाऊंगा .'' ये कहकर शोभित ने झुककर दादी माँ के चरण-स्पर्श कर लिए .

शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 6 मार्च 2014

''सीता ''-कहानी

''आपने सीता के विवाह हेतु स्वयंवर का मार्ग क्यूँ चुना ? क्या यह उचित न होता कि आप स्वयं सीता के लिए सर्वश्रेष्ठ वर का चयन करते ?मैं इस तथ्य से भी भली-भांति परिचित हूँ कि सीता को जन्म मैंने नहीं दिया पर पालन-पोषण तो हम दोनों ने ही किया है .आपने सीता को इतना स्नेह दिया है कि अगर उसके स्वयं के पिता भी उसका पालन-पोषण करते तो उतना स्नेह न दे पाते . सीता भी तो स्वयं को जानकी ,जनकनंदनी कहे जाने पर हर्षित हो उठती है . आपने स्वयंवर के साथ ''वीर्य-शुल्क'' के रूप में 'शिव-धनुष'' पर प्रत्यञ्चा चढाने की शर्त रखते समय किंचित भी न सोचा यदि अखिल-विश्व का कोई भी वीर इस शुल्क को न चुका पाया तो क्या हमारी पुत्री जीवन भर कुँवारी ही रहेगी ? स्वामी ! प्रथम निर्दयी तो वे माता-पिता हैं जिन्होंने एक कन्या के जन्म लेते ही उसे हमारे राज्य की धरती में दबाकर मार डालने का कुत्सित प्रयास किया और द्वितीय निर्दयी माता-पिता हम कहलायेंगे जिन्होंने सर्वगुण-संपन्न पुत्री के सौभाग्य पर अपनी शर्तों के कारण प्रश्न-चिन्ह लगा दिया !पुत्री सीता मुख से कुछ कहे या न कहे पर निश्चित रूप से अपने भविष्य को लेकर वो अवश्य ही सशंकित होगी .'' ये कहते-कहते महारानी सुनयना का गला भर आया .राजा जनक ने मंद मुस्कान के साथ महारानी सुनयना की ओर देखते हुए कहा -'' महारानी आप व्यर्थ चिंतित हो रही हैं .यदि आज से पूर्व आप ये चिंताएं मेरे समक्ष प्रस्तुत करती तो हो सकता था मैं अपने निर्णय की वैधता पर विचार करता किन्तु आज मिथिला में महर्षि विश्वामित्र के शुभागमन के साथ मेरी समस्त चिंताओं पर विराम लग गया है क्योंकि उनके साथ अयोध्या के नरेश महाराज दशरथ के दो सुपुत्र भी पधारे हैं .उन वीर धनुर्धारियों ने दण्डक-वन को राक्षसों के आतंक से मुक्त कराकर यह प्रमाणित कर दिया है कि पृथ्वी अभी वीरों से खाली नहीं है .दोनों में ज्येष्ठ भ्राता ; जिनका नाम श्री राम है ,ने हमारे कुलगुरु शतानंद जी की माता देवी अहिल्या के चरणों में निज शीश धरकर भाव-शून्य हुई देवी अहिल्या की देह में नव-जीवन-रस का संचार किया है .सुनयना तुम्ही बताओं क्या किसी अन्य पुरुष ने ये साहस किया कि बलात्कार की शिकार महिला को इतना सम्मान प्रदान करे जिससे उस पीड़ित नारी को ये विश्वास दिलाया जा सके कि तुम पहले के समान ही गरिमामयी हो ,तुम पवित्र हो ,तुमने कोई अपराध नहीं किया ..अपराधी तो इंद्र जैसा कापुरुष है जिसने छल-कपट का सहारा लेकर गुरु-पत्नी पर अत्याचार किया .निश्चित रूप से श्री राम से बढ़कर कोई भी नारी-सम्मान का ऐसा उदहारण प्रस्तुत नहीं कर सकता है .मुझे विश्वास है कि श्री राम जैसा धीर-वीर-गम्भीर ही ''शिव-धनुष'' पर प्रत्यञ्चा चढ़ाकर हमारी सुपुत्री सीता की जयमाला का सच्चा अधिकारी होगा .रही बात मेरे द्वारा स्वयं सीता के वर-चयन का तो मत भूलो हम उसी समाज का हिस्सा हैं जो सर्वप्रथम सीता के जन्म के सम्बन्ध में प्रश्न उठाता.अपनी पुत्री के सम्बन्ध में कुछ भी अप्रिय न तो मैं सुन सकता हूँ और न ही तुम . आज जब स्वयंवर में राजागण स्वयं अपना बल दिखाकर वीर्य-शुल्क चुकाने का प्रयास करेंगें तब वे केवल जनक की पुत्री सीता को पाकर सम्मान की अनुभूति करेंगें न कि सीता को अज्ञात कुल की पुत्री दिखाकर नीचा दिखाने का प्रयास '' राजा जनक के इन अमृत-वचनों ने सुनयना के पुत्री-स्नेह में तपते प्राणों को ठंडक प्रदान की .
महारानी सुनयना ने सीता की सखियों को बुलाकर सीता को गौरी-पूजन हेतु ले जाने का आदेश दिया .सीता भी नगर में हो रही दोनों राजकुमारों की चर्चा से अनभिज्ञ न थी .सुंदरता के साथ साथ दोनों राजकुमारों के गुणों की भी खूब चर्चा हो रही थी पर सीता को जिस बात ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया था वह थी ''श्री राम द्वारा देवी अहिल्या का उद्धार ''.सीता ने माता गौरी से हाथ जोड़कर यही वर माँगा कि -'' नारी ह्रदय की व्यथा को मिटाने वाले , नारी -प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने वाले महापुरुष ही मेरे स्वामी हो .ऐसा वर दीजिये हे माता गौरी कि पिता का प्रण भी पूरा हो जाये और मेरा मनोरथ भी !'' .सीता की गौरी-पूजा पूर्ण होते ही सखियाँ और अनुजा -उर्मिला ,मांडवी ,श्रुतिकीर्ति उन्हें दोनों राजकुमारों की एक झलक दिखाने हेतु पास की ही एक पुष्प-वाटिका में ले गयी . लता की ओट से श्री राम को निहारती सीता ने जब श्री राम के दर्शन किये तब अनायास ही श्री राम की दृष्टि भी सौंदर्य-मूर्ति सीता पर जाकर टिक गयी .सीता के उर में भावों की तरंगें उमड़ने लगी .उन्होंने सोचा -'' माता अहिल्या जैसी छली गयी -शोषित नारी को उसके निर्दोष होने का अहसास कराने वाले महामानव के दर्शन कर आज मैं धन्य हो गयी !'' दूसरी ओर श्री राम के ह्रदय में भी भावों की सुन्दर झांकियां सजने लगी .सीता के प्रथम दर्शन से पूर्व ही महर्षि विश्वामित्र द्वारा बताये जाने के कारण राजकुमारी सीता के विषय में श्री राम सब कुछ जान चुके थे .उनके मन में विचार आया -'' फूल सी प्यारी कन्या को कैसे निर्दयी माता-पिता धरती में दबाकर अपने हाथ से कन्या-हत्या जैसा पाप कर डालते हैं .आज राजा जनक द्वारा पालित -पोषित ,कुल का गौरव इस देवी के दर्शन यदि इसे जन्म देने वाले माता-पिता करें तब उन्हें यह अहसास होगा कि उन्होंने कितना बड़ा दुष्कर्म किया था पुत्री को त्यागकर ..'' ऐसे ही विचारों में खोये , एकटक एक-दूसरे को लखाते राम को लक्ष्मण व् सीता को उनकी सखियाँ वापस गंतव्य को ले गए .
अगले दिवस राजा जनक के दरबार में जब सीता -स्वयंवर की घोषणा हुई तब वीर्य-शुल्क को जानकर अनेक बलशाली राजाओं ने प्रयास किया पर वे 'शिव-धनुष '' को हिला तक नहीं पाये . महर्षि विश्वामित्र के आदेश पर श्री राम ने ''शिव-धनुष '' के समीप जाकर उसे प्रणाम किया और फिर खेल ही खेल में उसे उठाकर उसपर प्रत्यञ्चा चढाने का प्रयास करने लगे पर वह धनुष दो टुकड़ों में टूट गया .धनुष-भंग होते ही स्वयंवर की शर्त पूर्ण हो गयी और सीता ने श्री राम को वरमाला पहना दी .
विधि-विधान से विवाह के पश्चात् जब सीता ने अयोध्या में प्रवेश किया तब चहुँ ओर आनंद ही आनंद छा गया किन्तु वह समय भी आया जब पिता द्वारा दिए गए वचन के पालन हेतु श्री राम चौदह-वर्ष के लिए वनवास हेतु चल दिए . सिया व् लक्ष्मण भी आग्रह कर उनका अनुसरण करते हुए वनवास को गए .वनवास के अंतिम चरण में राक्षस रावण ने श्री राम से बदला लेने हेतु उनकी भार्या सीता को छल से पंचवटी से हर लिया और राम-रावण युद्ध की नींव रख दी .एक पतिव्रता नारी के सम्मान को वापस दिलाने के लिए इससे ज्यादा घनघोर युद्ध किसी पति ने नहीं लड़ा होगा .रावण-वध के पश्चात् श्री राम द्वारा अग्नि-परीक्षा देने की आज्ञा को सीता ने इसीलिए स्वीकार किया क्योंकि वे जानती थी कि ऐसा श्रीराम मात्र जनसमुदाय को संतुष्ट करने के लिए कर रहे हैं अन्यथा अपहृत स्त्री के लिए वे अपने प्राणों व् अनुज के प्राणों को घोर-संकट में कदापि न डालते ..अग्नि-परीक्षा में सफल सीता को श्री राम ने वाम-भाग में पूर्व की ही भांति स्थान दिया और अयोध्या लौटने पर महारानी-पद पर आसीन किया किन्तु पितृ-सत्ता का खेल बाकी था .महारानी सीता के विरुद्ध अयोध्या की प्रजा में अनर्गल प्रलाप शुरू हो चुका था .श्री राम ने गुप्त-भ्रमण के द्वारा यथार्थ स्थिति को जाना .श्री राम का ह्रदय क्षोभ से फटने लगा .उनके मन में आया - ''यदि अग्नि-परीक्षा के पश्चात् भी सीता की पवित्रता पर विश्वास न किया जाये तब मेरे जैसा नारी-सम्मान का हितैषी क्या कर सकता है .मैं आज तक अग्नि-परीक्षा को ह्रदय से न्यायोचित नहीं ठहरा पाया हूँ .सीता की सच्चरित्रता ने ही मुझे एकपत्नीव्रत हेतु प्रेरित किया था पर प्रजा ..प्रजा तो पितृ-सत्ता के ढोल पर नृत्य करने में मग्न है .डराकर-धमकाकर सीता के प्रति मैं प्रजा के ह्रदय में विश्वास ,श्रृद्धा ,आस्था पैदा नहीं कर सकता किन्तु सीता को कोई दुर्वचन कहे ये भी मेरे लिए असहनीय है ..तो क्या राम पितृ-सत्ता के सामने घुटने टेक दे !'' विचारों के जंगल में भटकते श्री राम की दुविधा का कारण सीता ने अपनी एक गुप्तचरी प्रजा में भेजकर जब जाना तब अवध-त्याग का निर्णय लेने में उन्हें एक क्षण का समय न लगा .श्री राम से वनवास पर जाने की आज्ञा लेते समय सीता ने दृढ स्वर में कहा -'' सीता कभी भी अपने स्वामी को हारते हुए नहीं देख सकती .आप एक नारी के सम्मान के लिए ह्रदय में महायुद्ध से जूझ रहें हैं और प्रजा इसे आपकी एक नारी के प्रति आसक्ति का नाम दे रही है ..ये सह पाना मेरे लिए असम्भव है फिर आज मैं केवल एक पत्नी ही नहीं एक भावी-माता के कर्तव्यों से भी बंध गयी हूँ .आप जानते ही हैं मेरे गर्भ में आपका अंश पल रहा है .मैं नहीं चाहती कोई हमारी संतान पर किसी भी प्रकार का कोई आक्षेप लगाये ..मुझे आज्ञा दें स्वामी !'' सीता के तेवर देखकर श्रीराम ने बस इतना कहा -आज मुझसे मेरी आत्मा विदा ले रही है ..अब अवध में केवल मेरा शरीर ही रह जायेगा !'' सीता के वनवास के वर्षों बाद प्रजा के कुछ नागरिकों को अपनी भूल का अहसास हुआ और श्री राम पर सीता को वापस लाकर महारानी पद पर पुनर्प्रतिष्ठित करने का दबाव प्रजा ने बनाया ..महर्षि वाल्मीकि के साथ पधारी सीता ने श्रीराम द्वारा शुद्धि की शपथ लेने की आज्ञा दिए जाने पर हाथ जोड़ते हुए निवेदन किया -'' श्री राम की अर्द्धांगिनी सीता ने कभी अपनी पवित्रता को प्रमाणित करने हेतु परीक्षा नहीं दी क्योंकि ये नारी के नारीत्व को अपमानित करने जैसा है .अग्नि-परीक्षा देने का उद्देश्य मात्र इतना था कि संसार देख ले कि एक स्त्री यदि अग्नि में प्रवेश करके भी अपनी पवित्रता को प्रमाणित कर दे तब भी पुरुषप्रधान समाज पुनः-पुनः उसकी परीक्षा लेने के लिए षड्यंत्र रचता रहता है ...जब तक स्त्री है तब तक उसकी पवित्रता के प्रति संदेह भी होता रहेगा ..'' ये कहते -कहते रामप्रिया की ह्रदय-भूमि फट पड़ी और समस्त नारी-जाति की भावनाओं -पीड़ाओं के साथ सीता उसमे समां गयी !
शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 2 मार्च 2014

एक विवाह ऐसा भी -कहानी




पड़ोस की नीरू दीदी का विवाह -उत्सव आज होने जा रहा था . पूर्व-निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लड़के वालों के शहर जाकर ही विवाह का आयोजन होना था क्योंकि लड़के वालों की यही इच्छा थी .पुरानी सोच की महिलाएं व् पुरुष इस तरह अपना घर सूना कर लड़केवालों के यहाँ जाकर विवाह करने की पद्धति से असहमत थे .उनका मत था कि ''देहरी तो कुवारी ही रह जायेगी और लड़की की विदाई उसके घर से ही होनी चाहिए '' पर कुछ आधुनिक सोच के प्रगतिशील प्रौढ़ उनकी सोच को दकियानूसी कहकर इन सब बातों को ढकोसला करार दे रहे थे .उनका तर्क था -'' अजी छोड़िये ..काम निपटाना है ..यहाँ कर दो वहाँ कर दो ..क्या फर्क पड़ता है !'' एक दुकानदार साहब ने लड़केवालों के यहाँ जाकर ही विवाह करने के पक्ष में जबर्दस्त तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा -'' भाई अब तो इसी में फायदा है ..दुकान का हर्ज़ा भी नहीं और बस नोट पकड़ाओ ...लड़के वाले अपनी पसंद का इतजाम कर लेते हैं ..यही अच्छा वरना लड़की वाले कर-कर के मर ले तब भी मीन-मेख निकालने से लड़के वाले बाज नहीं आते .''
नीरू दीदी को लेकर एक कार ;जिसमे उनके साथ उनकी दादी-दादा जी और मम्मी व छोटा भाई भी थे , रवाना होते ही भिन्न भिन्न मत वाले इन तमाम घरातियों से भरकर दोपहर के ढाई बजे जब नीरू दीदी की बारात की बस चली तब किसी धार्मिक शख्स ने जोर से जयकारा लगवाया -'' बोलो जय माता दी !'' सबने एक स्वर में जयकारा लगाया तो एक बार को लगा जैसे हम विवाह करने नहीं बल्कि ''माँ शाकुंभरीदेवी '' के दर्शन को जा रहे हैं . बस ने रफ़्तार पकड़ी .पिछली सीट से किसी ने मेरे कंधें पर हाथ रखते हुए पूछा '' बीनू सुप्रिया नहीं जा रही ?'' ये नीरू दीदी की चाची जी थी .मैंने पीछे मुड़कर कहा -'' नहीं आंटी उनकी तबियत ठीक नहीं है ..इसी कारण माँ भी नहीं जा रही ..बस मैं और पिता जी ही जा रहे हैं .'' चाची जी थोडा उदास हुई क्योंकि उनकी मेरी सुप्रिया दीदी से अच्छी छनती है .छनेगी क्यों नहीं ..मेकअप -एक्सपर्ट जो हैं सुप्रिया दीदी .सबसे अच्छी तरह साड़ी पहनना और पहनाना भी जानती हैं वे .पूरे मौहल्ले में विवाह के सीजन में उनकी डिमांड उतनी ही रहती है जैसी दिल्ली में प्याज की .नीरू दीदी की मेहँदी के दिन से ही सुप्रिया दीदी की तबियत गड़बड़ा गयी थी और आज ..आज तो उनके बस का बिस्तर तक से उठना न था .
इधर बस में बैठे पुरुषों की चुहलबाजी जोरों पर थी .फलाना की बीवी तो अब बूढी हो गयी और वो ..वो तो बूढी घोड़ी लाल लगाम है है .बस में बैठ महिलाएं पुरुषों के कटाक्ष सुन-सुनकर एक-दुसरे से नज़रे मिलकर मंद-मंद मुस्कुरा थी . तभी पड़ोस के छोटू चाचा से किसी ने पूछा -भाई तेरा सन्नी कहाँ है ?'' छोटू चाचा उखड़े स्वर में बोले -'' साला अलग कार से आ रहा है अपने दोस्तों के साथ ..शराबी पार्टी है सालों की !'' तभी नीरू दीदी के पिता जी का मोबाइल बजा .बाएं हाथ से उन्होंने मुश्किल से मोबाइल जेब से निकाला क्योंकि दायें हाथ में उनके एक छोटा सा बैग था जो ''टीके '' के रूप में प्राप्त हो रहे रुपयों के रखने के काम का था .ये कॉल नीरू दीदी की मम्मी का ही था .वे उन्हें कुछ निर्देश दे रही थी .बस में आगे मिठाई के डिब्बे भरे पड़े थे जो विवाह के पश्चात् बारातियों व घरातियों को '' भाजी'' के रूप में हाथ के हाथ पकड़ा दिए जाने थे .
बस में सबसे पीछे बैठी नीरू दीदी की बुआ जी धड़ाके के साथ एलान कर रही थी -'' म्हारी नीरू तो खुद ब्याहने जा रही है दुल्हे को ...घोड़ी न सही बस ही सही !'' ये कहकर उन्होंने जो ठहाका लगाया उससे सारी बस ऐसे झनझना गयी जैसे हाई वॉल्यूम में डी.जे . बजा दिया गया हो .
चार घंटे का सफ़र पूरा कर जब विवाह के लिए निर्धारित ''बारात घर '' पर हमारी बस पहुंची तो लड़के वाले हमारा स्वागत ऐसे करने लगे जैसे वास्तव में हम ही बाराती हो .तीन मंजिला इस बारात घर की हर मंजिल पर विवाह आयोजित हो रहे थे .हमें ग्राउंड फलोर आवंटित था .एक विवाह जो दिन का था अब पूर्णता की ओर था .नीरू दीदी की कार पहले ही पहुँच चुकी थी और वे एक कमरे में तैयार हो रही थी .बारातियों से पहले ही घराती नाश्ते पर टूट पड़े .सुषमा आंटी ने कोहनी मार कर मेरे कान में कहा -'' पहले नीच जात में होता था ये ..ऊँची जाति में तो बाराती ही पहले खाते थे ..घराती तो लड़की की शादी में केवल काम करते थे ..खाते नहीं थे...अब सब ढंग बिगड़ गए बीनू !'' सुषमा आंटी ने ये कहकर अजीब सा मुंह बनाया और जयमाल के स्टेज के सामने पड़ी कुर्सियों में से एक कुर्सी पर जाकर धम्म से बैठ गयी .मैंने पिता जी के साथ नाश्ते में कुछ लिया और सुषमा आंटी के पास ही जाकर मैं भी बैठ गयी .
हम घरातियों के साथ गए कुछ नए नए जवान लड़कों की रुचि नाश्ते में न होकर बारातियों की ओर से आई लड़कियों में ज्यादा थी .उनके लिए वे ही आइसक्रीम थी और वे ही पेप्सी-कोला थी .बिना किसी बैड-बाजे के जब दूल्हे -राजा ने बारातियों के साथ वेंकेट हॉल में प्रवेश किया तब वहीं सेवल के रस्म अदायगी कर दी गयी .कुछ बारातियों ने मोबाइल पर गाने बजाकर डांस कर लिया क्योंकि वेंकेट हॉल में संगीत के नाम पर डी.जे.जैसे विध्वंसक इंस्ट्रूमेंट्स पर रोक थी .दूल्हे राजा के जयमाल के लिए स्टेज पर आते ही नीरू दीदी को भी उनकी चाची जी व् अन्य कई युवतियां स्टेज पर ले आयी . नीरू दीदी को ब्यूटीशियन ने ऐसा तैयार किया था कि वे पहचान में भी नहीं आ रही थी .सच कहूं तो रामलीला में नाचने वाले नचनिये की तरह उनका चेहरा पोत डाला था ब्यूटीशियन ने .मेरे बराबर में आकर बैठी हमारी किरायेदार सुभद्रा भाभी मुंह बिचकाते हुए बोली -'' लो कर लो बात ...पांच हज़ार लिए हैं ब्यूटीशियन ने और ये नास पीटा है ..इससे अच्छा तो नीरू खुद तैयार हो लेती .गोद-भराई पर सुप्रिया के साथ मिलकर खुद तैयार हुई थी ..क्या रूप उतरा था नीरू पर ...अब देखो कठपुतली थी बनी बैठी है .'' मैंने भी सहमति में सिर हिला दिया .जयमाल शुरू हुआ ही था कि दूल्हे के कुछ शराबी दोस्त स्टेज पर चढ़ आये और उनमे से एक ने नीरू दीदी को गोद में उठा लिया .कुछ जिम्मेदार लोगो ने आकर स्थिति को सम्भाला और नीरू दीदी बेहोश होते होते बच गयी .इस घटना के बाद जयमाल जल्दी से निपटा दी गयी पर पैसा दिखाने का मौका नहीं छोड़ा गया .लड़के वालों के पास फूलों के हार थे पर नीरू दीदी के चाचा जी महंगे हार लेकर आये जो काफी भारी थे .नीरू दीदी की गर्दन उस हार के बोझ से टेढ़ी ही हुई रही .
प्रीती-भोज शुरू हो चूका था तभी दूल्हे के फूफा जी का शराब पीकर हंगामा करना आरम्भ हो गया था . वे शराब की हर घूँट के साथ अपने सालों को गाली दे रहे थे .दूल्हे के पिताजी हर पांच भाई व् एक बहन थे इसीलिए ये एकलौते दूल्हे के फूफा जी अपनी अहमियत का अहसास करा रहे थे .आपसी बातचीत से पता चला कि फूफा जी घर के हर विवाह में इसी तरह अपने सालों का बैंड बजाते रहते हैं . दूल्हे के एक चाचा जी इस हंगामे के कारण अपना दिल पकड़ कर बैठ गए जिन्हें कुछ नवयुवक डॉक्टर के यहाँ ले गए . इधर दूल्हे की माता जी को भी इस हंगामे के कारण चक्कर आ गए .सुषमा आंटी ने इशारा कर मुझे अपने पास बुलाया और बोली - लो जी दूल्हे की माँ भी घर पर ताला ठोक कर यहाँ चली आई ..घर पर खोड़ की रस्म कौन करेगा ...इनका रहना तो वही जरूरी था !'' इन सब तमाशों के कारण मेरा एक पवित्र-संस्कार का साक्षी होने का आनंद छू-मंतर हो चुका था .हर ओर कपड़ों-जेवरों को दिखाने की होड़ मची हुई थी .
फेरे शुरू हुए तो ज्यादातर बाराती अपने गंतव्यों के लिए रवाना हो लिए . अब कुछ ही बाराती व् घराती जाग रहे थे दूल्हे-दुल्हन के घरवालों के अलावा . पंडित जी हर फेरे का भावार्थ बताते जा रहे थे पर इसमें किसी की कोई रुचि नहीं थी .एक आश्चर्य अब भी घट ही गया .दूल्हे के जो चाचा जी दिल के दर्द के कारण डॉक्टर के यहाँ गए थे अब वे पूर्ण स्वस्थ होकर यही मंडप में बैठे थे .
अन्य रस्में पूरी होते होते विदाई की बेला भी आ पहुंची . विदाई गीत गाते हुए नीरू दीदी के माता-पिता जी की आँखें भर आयी थी पर मेरे मन में कोई भाव ऐसा पैदा नहीं हो पाया जो घर से विदा होती बिटियाँ को देखकर होना चाहिए था .होता भी कैसे ये वेंकेट हॉल था ..हमारी गली नहीं जहाँ हम नीरू दीदी के साथ खेलते थे .उनकी साइकिल पर घुमते थे और खूब धूम मचाते थे .
नीरू दीदी के विदा होते ही वेंकेट हॉल के कर्मचारी वहाँ की सफाई में जुट गए .टैंट वाले अपना सामान समेटने लगे .मंडप में झिलमिला रहे दीपों को उन्होंने निर्ममता से एक ओर खिसका दिया .उनके लिए इसमें कोई शुभ-अशुभ नहीं था .
सूरज की पहली किरण के साथ ही हम सब बस से वापस अपने घर को लौट चले .ऐसा लग रहा था जैसे हम विवाह-संस्कार का नहीं बल्कि एक तमाशे का हिस्सा होकर लौट रहे हैं .तभी किसी ने धीरे से कहा -अपना घर सूना कर लड़के वालों के यहाँ आकर विवाह करना तो ऐसा लगता है जैसे हम खुद अपनी बिटियाँ को धक्का देने आये थे !!''

शिखा कौशिक 'नूतन