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सोमवार, 10 मार्च 2014

पाक मोहब्बत -कहानी


Interfaith wallpaper

कृष्णपाल ने अपने घर के निचले हिस्से में एक मुस्लिम परिवार को किराये पर रख छोड़ा था .दो वर्ष पूर्व पत्नी की मृत्यु के बाद से कृष्णपाल के परिवार में केवल एक बेटा अमर व् बेटी रूपा थे .कृष्णपाल पास के ही कस्बे के एक इंटर कॉलेज में टीचर थे . किरायेदार मुस्लिम परिवार के मुखिया युसूफ थे .उनके परिवार में पत्नी ज़ाहिदा के अलावा बड़ा बेटा आलम ,बेटी ज़ेबा और उससे छोटा आरिफ थे . रूपा और ज़ेबा हमउम्र किशोरी थी और अमर आलम से चार-पांच साल छोटा था .सब बच्चों में सबसे छोटा था आरिफ जो ग्यारह वर्ष का था .रूपा की सबसे ज्यादा छनती थी आरिफ के साथ जो रूपा को रुपी आपी कहता और अमर को सबसे अच्छा लगता था ज़ेबा से बतियाना .आलम का मिज़ाज़ अलग था .वो न तो अपने अब्बा के इस फैसले से खुश था कि किसी हिन्दू के घर में किराये पर रहा जाये और न ही उसे ज़ेबा और आरिफ का -रूपा व् ज़ेबा से मेलजोल अच्छा लगता था .घर के पास के ही स्कूल में अमर बारहवीं का छात्र था और रूपा व् ज़ेबा ग्यारहवीं की छात्रा थी .आरिफ छठी कक्षा का छात्र था ..आलम ने पांचवी में फेल होने के बाद से ही पढाई छोड़ दी थी और अपने अब्बा के साथ उनकी लुहार की दुकान पर ही काम करता था . कॉलेज आते-जाते अमर का ज़ेबा के प्रति बढ़ता आकर्षण रूपा ने उसकी बातों से जान लिया था .रूपा ने अमर को समझाया भी था -'' भाई तू समझता क्यूँ नहीं !!!पिता जी को पता चलेगा तो तेरी हड्डी-पसली तोड़ देंगें ... . हम दोनों परिवारों के धर्म अलग -अलग हैं ...ये ठीक है हम ये नहीं मानते पर ज़ेबा के बड़े भाई आलम को तो देख ..दिल में आग लिए फिरता है हमारे लिए ...वो तो युसूफ चचाजान पिता जी के अच्छे दोस्त हैं जो उसे दबाये रखते हैं पर तू अगर ज़ेबा के साथ दोस्ती बढ़ाएगा तो ये युसूफ चचाजान को भी पसंद न आएगा ....ज़ेबा की अम्मी भी हम से थोडा परहेज़ रखती हैं ....मान जा ..पढाई पर ध्यान दे ..वरना सत्यानाश हो जायेगा ...'' पर अमर के ऊपर मोहब्बत का जूनून चढा था .उसे न तो समझना था और न वो समझा उधर ज़ेबा ने भी नासमझी का परिचय दिया और एक दिन दोनों चुपचाप घर से भाग गए .ये खबर पता चलते ही कृष्णपाल और युसूफ के पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी .दोनों उन्हें ढूढ़ने निकल पड़े और इधर आलम ने अपने आवारा दोस्तों को फोन कर घर पर बुला लिया ..आलम के बुरे इरादे जिसने छिपकर सुने थे वो था रुपी आपी का लाड़ला आरिफ .आरिफ बिना वक्त गवाए सीढ़ियां चढ़ता हुआ ऊपर भागा .उसकी रुपी आपी कमरे में बने छोटे से मंदिर के आगे हाथ जोड़े बैठे थी .बदहवास आरिफ ने कमरे में पहुँचते ही उसके किवाड़ अंदर से बंद कर लिए .रूपा घबरा गयी .आरिफ का सफ़ेद पड़ा चेहरा देखकर उसने आरिफ के कंधें पकड़कर झँझोरते हुए पूछा -'' क्या हुआ आरिफ ..इतना घबराया हुआ क्यूँ है ?'' आरिफ हांफता हुआ बोला -'' रुपी आपी ..आपी ..आप कहीं छिप जाइये ..आलम भाईजान ने अपने दोस्तों को फोन कर यहाँ बुलाया है ..वो फोन पर कह रहे थे कि आपको बर्बाद कर देंगें ....वो ऊपर आते ही होंगें ..उनके सिर पर शैतान चढ़ा हुआ है ..वो आपको नहीं छोड़ेगें ...आपी छिप जाओ ...मैं कह दूंगा आप यहाँ हो ही नहीं .'' आरिफ की बात सुनकर रूपा का सिर चकरा गया और सारा बदब पसीनों से भींग गया .उसके हाथ-पैर सुन्न पड़ गए थे .उसने सूखे गले से पूछा -'' चचीजान कहाँ हैं आरिफ ..तेरी अम्मी कहाँ हैं ?'' आरिफ अपनी रुपी आपी को डर से थरथराते देखकर उसकी हथेली कसकर पकड़ते हुए फुसफुसाया -'' आपी अम्मी तो बेहोश पड़ी है ..उसे कोई सुध नहीं ...आप जल्दी से छिप जाइये !'' आरिफ के ये कहते ही रूपा के मुंह से निकला ''कहाँ छिप जाऊं ?''तभी उसका चेहरा सख्त हो गया मानों कोई कठोर निर्णय ले लिया हो दिल ही दिल में .उसने आरिफ को गले लगाते हुए कहा -'' मेरे भाई ..शुक्रिया तूने मेरी लाज बचाई ..जा जाकर कमरे के बाहर खड़ा हो जा ..मैं कहीं छिप जाती हूँ .'' ये कहकर रूपा ने कमरे के किवाड़ खोल दिए और आरिफ के बाहर निकलते ही किवाड़ अंदर से बंद कर लिए .उधर आवारा दोस्तों के आते ही उबलते खून को ठंडा करने के लिए हैवानियत के इशारे पर नाचता हुआ आलम ऊपर आ पहुंचा .उसके हाथ में तलवार थी और दिल में खूंखार इरादे .आरिफ को कमरे के बाहर किवाड़ों से सटा खड़ा देखकर उसने आरिफ का हाथ खींचकर एक ओर गिराते हुए कहा -पहरेदार बनकर खड़ा है ..पता भी है ज़ेबा को लेकर नहीं भागा तेरा वो अमर भाई ..हमारी इज्जत को लेकर भागा है ..सारी बिरादरी में नंगा कर दिया हमें ..अब उस अमर की बहन का क्या हश्र करते हैं हम.. देख ..!'' ये कहकर आलम और उसके दोस्त किवाड़ों पर लातें मारने लगे .आरिफ तेजी से उठा और आलम की टांग पकड़कर खींचते हुए बोला -''अल्लाह की कसम मेरे ज़िंदा रहते मेरी रुपी आपी का कोई कुछ नहीं बिगड़ सकता.'' .ये सुनते ही आलम ने आव देखा न ताव और तलवार आरिफ के पेट में घुसेड़ डाली .आरिफ के चीत्कार से सारा मौहल्ला ठर्रा उठा और दूसरी ओर कमरे के किवाड़ खुलते ही आलम के दोस्तों के मुंह से चीख निकल पड़ी .रूपा की लाश छत के पंखें से लटक रही थी . मौत का ऐसा तांडव देखकर आलम के दोस्त भाग खड़े हुए और मौहल्ले वालों की सूचना पर पुलिस वहाँ आ पहुंची .कृष्णपाल व् युसूफ भी सूचना पाकर वहाँ आ पहुंचे .जेल जाते समय युसूफ ने अपने अब्बा और कृष्णपाल से बस इतना कहा -यदि किसी दिन ज़ेबा और अमर मिल जाएँ तो तो ठंडे दिमाग से कोई फैसला लीजियेगा .अमर व ज़ेबा ने नादानी में जो किया वो किया पर आप भूल जाइयेगा कि आप हिन्दू हैं या मुस्लिम ..तब केवल इंसान बनकर सोचियेगा बिलकुल मेरे आरिफ और उसकी रुपी आपी के तरह .आरिफ ने मुसलमान होते हुए भी अपनी हिन्दू बहन के लिए जान कुर्बान कर दी क्योंकि वे दोनों केवल इंसान थे हिन्दू या मुसलमान नहीं ..मेरे भाई आरिफ मैं हत्यारा हूँ तेरा और तेरी रुपी आपी का ..लेकिन तुम दोनों भाई-बहन की पाक मोहब्बत की हत्या कोई नहीं कर सकता .'' ये कहकर आलम पुलिस की जीप में बैठ कर चला गया और कृष्णपाल और युसूफ गले लगकर रो पड़े .
शिखा कौशिक 'नूतन '