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रविवार, 29 मार्च 2015

सबसे सुन्दर लड़का -लघु कथा

सबसे सुन्दर लड़का -लघु कथा

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वो खूबसूरत लड़की जब सड़क पर चलती थी तब अपने में ही खोई रहती . उसको खबर न होती कि कोई लड़का उसका पीछा कर रहा है . एक दिन एक संकरी गली में उस पीछा करने वाले लड़के ने आगे आकर उसका रास्ता रोक लिया .वो घबराई .उसकी नीली झील सी आँखों में आंसू भर आये .उसने हाथ जोड़कर  कहा - ''मुझे जाने  दो '' .यदि किसी ने मुझे तुमसे बात करते देख लिया तो मेरी बदनामी हो जाएगी .मैं लड़की हूँ ना !'' लड़का थोड़े रोष में बोला -'' तुम क्या समझती हो मैं तुम्हे बदनाम करने के लिए तुम्हारा पीछा करता हूँ .तुम तो इतनी बेखबर होकर चलती हो सड़क पर कि न जाने कब कोई गुंडा-मवाली  तुम्हे कहीं ऐसी ही सूनसान गली में दबोच ले और तुमको हवस का शिकार बना ले .मैं कई दिन से तुम्हे यही समझाने के लिए तुम्हारा पीछा कर रहा हूँ कि तुम एक लड़की हो इसलिए नज़रे उठाकर , सावधान रहकर ,आत्म-विश्वास के साथ सड़क पर चलो .समझी !'' खूबसूरत लड़की ने आँखें उठाकर देखा दुनिया का सबसे सुन्दर लड़का उसके सामने खड़ा था .  

डॉ.शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 28 मार्च 2015

ख़राब लड़की



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 ख़राब लड़की -story
इक्कीस वर्षीय सांवली -सलोनी रेखा को उसी लड़के ने कानपुर बुलाकर क़त्ल कर दिया जिसने उससे शादी का वादा किया था . लड़के के प्रेम-जाल में फँसी रेखा न केवल क़त्ल की गयी बल्कि अपने शहर में बदनाम भी हो गयी कि वो एक ख़राब लड़की थी .कातिल लड़के के प्रति लोगों की बड़ी सहानुभूति थी कि 'रेखा ने पहले मर्यादाओं का उल्लंघन कर विवाह से पूर्व उस बेचारे से शारीरिक सम्बन्ध बनाये और अब उस पर शादी का दबाव डाल रही थी .इसी कारण वो 'बेचारा' मेरठ छोड़कर 'कानपुर' में जाकर कोचिंग इंस्टीट्यूट चलाने लगा था .क़त्ल न करता तो क्या करता ?ऐसी ख़राब लड़की से शादी के लिए उसके घर वाले तैयार नहीं थे .'' घिन्न आती है मुझे ऐसी सामाजिक सोच से जो अपराधी से सहानुभूति केवल इसलिए रखती है क्योंकि वो स्त्री-पुरुष संबंधों में होने वाले किसी भी अपराध के लिए पूर्ण रूप से स्त्री को ही दोषी ठहरा देती है .
रेखा ,मुझसे व् मेरी सहपाठिनी राधा से तीन क्लास जूनियर थी .अब जब स्नातकोत्तर किये हुए हमें कई वर्ष बीत चुके हैं तब रेखा के क़त्ल के बारे में इंटर कॉलिज में अध्यापन कर रही राधा ने ही मुझे ,एक दिन मेरे घर की बैठक में पड़े  दीवान पर बैठे-बैठे ,बताया था कि -'' रेखा की इस दुर्गति का असल जिम्मेदार उसका नकारा पिता ही है .बचपन से ही रेखा के पिता ने रेखा ,रेखा की माता जी व् उसके दो छोटे भाइयों के पालन-पोषण से अपने हाथ झाड़ लिए थे .रेखा की माता जी ने सिलाई-कढ़ाई का काम कर बच्चों के पालन-पोषण का भार  खुद पर ले लिया .रेखा का पिता ऊपर से उन पर दबाव बनाता कि वे मेरठ में लिया गया मकान बेचकर गांव जाकर उसके बड़े भाई-भाभी की सेवा करें .जब रेखा की माता जी ने बच्चों की पढ़ाई का वास्ता देकर इंकार किया तो उसने उन्हें मारा-पीटा जिससे क्षुब्ध होकर रेखा के बारह वर्षीय भाई ने एक बार अपने इस नकारा पिता पर चाकू से प्रहार भी कर दिया था .'' राधा ने मेरी हथेली अपनी हथेली से कसते हुए प्रश्न किया -'' रेखा ऐसे हालातों में पली-बढ़ी थी . तू ही बता नंदी क्या ख़राब लड़की किशोरावस्था से ही घर की जिम्मेदारी उठाने का साहस कर सकती है ?'' मैंने राधा के प्रश्न पर इस समाज की सोच पर बिफरते हुए कहा -'' रेखा को ख़राब लड़की कहना हर उस लड़की का अपमान है जो मेहनत  कर के अपने परिवार के पालन-पोषण में सहयोग करती है .क्या खराबी थी उसमे ? जिसे जीवन साथी चुना उसे विवाह पूर्व अपना सब कुछ समर्पित करने की भूल कर बैठी ? इसमें वो कातिल लड़का भी तो बराबर का जिम्मेदार है .जब उसे विवाह नहीं करना था तो उसने रेखा से शारीरिक-सम्बन्ध क्यों बनाये ? और जब इस सब में उसे कोई आपत्ति नहीं थी तो विवाह करने में क्यों घर वालो की मर्जी का बहाना बनाने लगा ? रेखा की भूल यही थी ना कि उसने किसी लड़के से प्रेम किया , उस पर विश्वास कर अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया और उस पर विवाह का दबाव बनाया ...ये न करती तो क्या करती !!!'' रेखा ने पिता के रूप में ऐसा नकारा पुरुष पाया जो केवल वासना-पूर्ति के लिए किसी स्त्री के गर्भ में अपना बीज छोड़ देता है और जब वो बीज एक पौधा बनकर गर्भ से बाहर आता है औलाद के रूप में तब वो नकारा पुरुष उसकी जड़ें सींचने से इंकार कर देता है . राधा मैं तो कहती हूँ ऐसे इंसान को तो चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए !'' राधा मेरी इस भावुक टिप्पणी पर गंभीर होते हुए बोली -''नंदी क्या कहूँ ...ऐसा लगता है जैसे हम लड़कियां पुरुष प्रधान समाज की फौलादी जंजीरों से जकड़ी हुई हैं .पिछले वर्ष जब मैं रेखा से मिली थी तब उसने बताया था कि सारे रिश्तेदार उसके पिता पर उसके विवाह के लिए दबाव डाल रहे हैं पर वो ये कहकर टाल देता है कि रेखा अभी विवाह करना ही नहीं चाहती .उस ज़लील को ये दिख गया था कि रेखा ही कमा कर लाती है .यदि उसका विवाह कर दिया तो कैसे काम चलेगा ? फिर वो क्यों रेखा के विवाह के ..उसके भविष्य के बारे में सोचता ! रेखा ने ऐसी परिस्थितयों में जब स्वयं वर ढूढ़ लिया तब यही नकारा पिता पूरे समाज में उसे बदनाम करने में जुट गया .''रेखा ख़राब लड़की है '' ये ठप्पा सबसे पहले उस नीच -मक्कार पिता ने ही रेखा पर लगाया .जिस पिता का कर्तव्य था कि यदि बेटी को बहकते देखे तो उसे समझा-बुझाकर सही मार्ग पर लाये ..वही उसका बैरी बन बैठा . रेखा का दुर्भाग्य तो देखो नंदी ....पिता के रूप में भी पुरुष से धोखा खाया और जीवन-साथी के रूप में भी जिस पुरुष को चुना उससे भी धोखा ही खाया .ऐसा लगता है नंदी कि पुरुष का स्वभाव धोखा देना ही है .'' मैं राधा के कंधे से सरकते हुए दुपट्टे को ठीक करते हुए बोली थी -'' ठीक कहती हो राधा ! अच्छी लड़की ,ख़राब लड़की -कितनी श्रेणियों में बाँट दी जाती है लड़की . उसकी विवशता ,अल्हड़पन का फायदा उठाने वाला पुरुष ही उसे पतिता ,नीच ,छिनाल की संज्ञा देकर गर्व की अनुभूति करता है . कई बार तो आश्चर्य होता है कि इतने युगों से समाज की इतनी स्त्री-विरोधी सोच के बीच भी स्त्री आज तक ज़िंदा कैसे है ? '' राधा दीवार पर लगी घडी में समय देखते हुए दीवार पर से खड़े होते हुए बोली - '' नंदी इस पर तो स्त्रियों से ज्यादा पुरुषों को आश्चर्य होना चाहिए कि आखिर गर्भ में निपटाया , पैदा हुई कन्या को ज़िंदा जमीन में गड़वाया , दहेज़ की आग में जलाया , तंदूर में भुनवाया , बदनामी की फाँसी पर चढ़ाया , बलात्कार का अस्त्र चलाया ...फिर भी स्त्री ज़िंदा कैसे है ? खैर ...चलने से पहले तुम्हें एक बात और बता दूँ ...रेखा के क़त्ल से भी उसका पिता लाभान्वित ही हुआ है .क़त्ल होकर भी वो ख़राब लड़की अपने पिता को लखपति बना गयी .रेखा के ज़लील पिता ने रेखा के कातिल को फाँसी पर न चढ़वाकर उससे सौदा कर लिया है बीस लाख में . रेखा का पिता कातिल लड़के के खिलाफ किया गया अपना केस वापस ले रहा है . नंदी तुम नहीं जानती रेखा अक्सर कहती थी कि वो घर में पालतू जानवर नहीं पालती  क्योंकि उनके मरने पर बहुत दुःख होता है पर रेखा के पिता के लिए पालतू ख़राब लड़की का मर जाना भी बहुत सुखदायी रहा ना नंदी !'' ये कहते हुए राधा ने अपने घर जाने के लिए कदम बढ़ा लिए और भारी मन से मैं राधा को जाते हुए देखती हुई सोचने लगी -'' हे ईश्वर जिस घर में बेटी की ऐसी दुर्गति हो उस घर में बिटिया कभी न हो ........'' मन से तभी एक और आवाज़ आई -'' तब तो एक घर क्या इस धरती पर ही कोई बिटिया न हो !!!''



शिखा कौशिक ''नूतन'

रविवार, 22 मार्च 2015

”प्रायश्चित-जनवाणी में प्रकाशित ”


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''नीहारिका का कन्यादान मैं और सीमा नहीं बल्कि तुम और सविता  करोगे क्योंकि तुम दोनों को ही नैतिक रूप से ये अधिकार है .'' सागर के ये कहते ही समर ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा और हड़बड़ाते हुए बोला -'' ये आप क्या कह रहे हैं भाईसाहब !...नीहारिका आपकी बिटिया है .उसके कन्यादान का पुण्य आपको ही मिलना चाहिए .हम दोनों ये पुण्य आप दोनों से नहीं छीन सकते .'' सागर कुर्सी से उठते हुए सामने बैठे समर को एकटक दृष्टि से देखते हुए हाथ जोड़कर बोला -'' समर  तुम मेरी बहन के पति होने के कारण हमारे माननीय हो .तुमसे मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि नीहारिका का कन्यादान  तुम दोनों ही करना .मैं नीहारिका को भी अँधेरे में नहीं रखना चाहता .....सीमा...कहाँ है नीहारिका ? उसे यही बुलाओ !'' सागर के ये कहते ही सीमा  ने नीहारिका को आवाज़ लगाई .नीहारिका के ''आई माँ '' प्रतिउत्तर को सुनकर  सविता ,समर ,सीमा व् सागर उसके आने का इंतज़ार करने लगे .नीहारिका के स्वागत  कक्ष  में प्रवेश करते ही चारों  एक-दूसरे  के चेहरे  ताकने  लगे .
                     नीहारिका ने सब को चुप देखकर मुस्कुराते हुए कहा  -अरे भई इस कमरे में तो कर्फ्यू लगा है और मुझे बताया भी नहीं गया .'' नीहारिका के ये कहते ही सबके चेहरे पर फैली गंभीरता थोड़ी कम हुई और सब मुस्कुरा दिए .सविता ने अपनी कुर्सी से खड़े होते हुए नीहारिका का हाथ पकड़कर उसे अपनी कुर्सी पर बैठाते  हुए कहा -''लाडो रानी..अब यहाँ बैठो और और सुनो भाई जी तुमसे कुछ कहना चाहते हैं .''  सविता के ये कहते ही नीहारिका भी एकदम गंभीर हो गयी क्योंकि उसने अपने पिता जी को ऐसा गंभीर इससे पहले दो बार ही देखा था .एक बार जब बड़ी दीदी प्रिया  की विदाई हुई थी और दूसरी बार तब जब मझली दीदी सारिका की विदाई हुई थी .दोनों बार पिता जी विदाई के समय बहुत गंभीर हो गए थे पर रोये  नहीं थे जबकि माँ व् बुआ जी का  रो-रो कर बुरा हाल हो गया था .''नीहारिका बेटा '' पिता जी के  ये कहते ही नीहारिका के मुंह से अनायास ही निकल गया -'' जी पिता जी ...आप कुछ कहना चाहते हैं मुझसे ?'' नीहारिका के इस प्रश्न पर सागर कुर्सी पर बैठते हुए बोला -''हां बेटा ..आज मैं अपने दिल पर पिछले चौबीस साल से रखे एक बोझ को उतार देना चाहता हूँ ...हो सकता है आज के बाद तुम्हें  लगे कि तुम्हारे पिता जी संसार के सबसे अच्छे पिता नहीं है पर मैं सच स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ .बात तब की है जब मेरी दो बेटियों का जन्म हो चुका  था  . और तुम अपनी माँ के गर्भ में आ चुकी थी .मैं दो बेटियों के होने से पहले ही निराश था .सबने कहा ''पता कर लो सीमा के गर्भ में बेटा है या बेटी ..यदि बेटी हो तो गर्भ की सफाई करा दो '' मैंने तुम्हारी माँ के सामने ये प्रस्ताव रखा तो उसने मेरे पैर पकड़ लिए .वो इसके लिए तैयार नहीं थी पर मुझ पर बेटा पाने का जूनून था .मैंने तुम्हारी माँ से साफ साफ कह दिया था कि यदि टेस्ट को वो तैयार न हो तो अपना सामान बांधकर मेरे घर से निकल जाये .तुम्हारी माँ मेरे दबाव में नहीं आई .ये देखकर मैं और भी बड़ा शैतान बन गया और एक रात मैंने प्रिया और सारिका सहित तुम्हारी माँ को धक्का देकर घर से बाहर निकाल दिया .तुम्हारी माँ दर्द से कराहती हुई घंटों किवाड़ पीटती रही पर मैंने नहीं खोला .ये तुम्हारी दीदियों को लेकर मायके गई पर वहां इसके भाई-भाभी ने सहारा देने से मना कर दिया और कानपुर सविता व् समर को इस सारे कांड की जानकारी फोन पर दे दी तुम्हारे मामा जी ने .सविता और समर जी यहाँ आ पहुंचे .सविता ने तब पहली बार मेरे आगे मुंह खोला था .उसने दृढ़ स्वर में  कहा था -'' भाई जी भाभी के साथ आपने ठीक नहीं किया .मेरे भी तीन बेटियां  हैं यदि ये मुझे इसी तरह धक्का देकर घर से निकाल देते तब मैं कहाँ जाती और आप क्या करते ? ये तो दो बेटियों के होने पर ही संतुष्ट थे .मेरी ही जिद थी कि एक बेटा तो होना ही चाहिए ....तब ये तीसरे बच्चे के लिए तैयार हुए .अब सबसे ज्यादा प्यार ये तीसरी बेटी को ही करते हैं और आपने इस डर से कि कहीं तीसरा बच्चा बेटी ही न हो जाये भाभी को फूल सी बेटियों के साथ रात में घर से धक्के देकर बाहर निकाल दिया ..पर अभी इन बच्चियों के बुआ-फूफा मरे नहीं है .मैं लेकर जाउंगी भाभी को बच्चियों के साथ अपने घर ...अब भाई जी ये भूल जाना कि आपके कोई  बहन भी है !'' मैं जानता था कि सविता मेरे सामने इतना इसीलिए बोल पाई थी क्योंकि उसे समर का समर्थन प्राप्त था .मैंने गुस्से में कहा था -'' जाओ ..तुम भी निकल जाओ .'' सविता ने अपना कहा निभाया और तुम्हारी माँ व् दीदियों को कानपुर ले गयी .वहीं  कानपुर में तुम्हारा जन्म हुआ .यहाँ मेरठ से मेरा तबादला भी कानपुर हो गया .स्कूल के एक कार्यक्रम में हमारे बैंक मैनेजर शर्मा जी को मुख्य-अतिथि के रूप में बुलाया गया .उनके साथ मैं भी गया .वहां तुम्हारी प्रिया दीदी ने नृत्य का एक कार्यक्रम प्रस्तुत किया .प्रिया की नज़र जैसे ही मंच से मुझ पर पड़ी वो नृत्य छोड़कर दौड़कर मेरे पास आकर मुझसे लिपट गयी .वो बिलख-बिलख कर रोने लगी और मैं भी . मेरी सारी हैवानियत को प्रिया के निश्छल प्रेम ने पल भर में धो डाला . मैनेजर साहब को जब सारी स्थिति का पता चला तो उन्होंने बीच में पड़कर सारा मामला सुलझा दिया।
सीमा ने जब पहली बार तुम्हे मेरी गोद में दिया तब तुमने सबसे पहले अपने नन्हें-नन्हें हाथों से मेरे कान पकड़ लिए ..शायद तुम मुझे डांट पिला रही थी .सविता ,समर व् सीमा ने ये निश्चय किया था कि इस घटना का जिक्र परिवार में बच्चों के सामने कभी नहीं होगा  पर उस दिन से आज तक मुझे यही भय लगता रहा कि कहीं तुम्हें अन्य कोई ये न बता दे कि मैं तुम्हे कोख में ही मार डालना चाहता था . नीहारिका बेटा ये सच है कि मैं गलत था ..तुम चाहो तो मुझसे नफरत कर सकती हो पर आज अपना अपराध स्वीकार कर मैं राहत की साँस ले रहा हूँ ..मुझे माफ़ कर देना बेटा !'' ये कहते कहते सागर की आँखें भर आई .नीहारिका ने देखा सबकी आँखें भर आई थी .नीहारिका कुर्सी से उठकर सागर की कुर्सी के पास जाकर घुटनों के बल बैठते हुए बोली -पिता जी ..ये सब मैं नहीं जानती थी ...जानकार भी आपके प्रति सम्मान में कोई कमी नहीं आई है बल्कि मुझे गर्व है कि मेरे पिता जी में सच स्वीकार करने की शक्ति है ...मेरे लिए तो आज भी आप मेरे वही  पिता जी है जो बैंक से लौटते  समय मेरी पसंद की टॉफियां अपनी पेंट की जेब में भरकर लाते थे और दोनों दीदियों से बचाकर दो चार टॉफी मुझे हमेशा ज्यादा देते थे और मैं भी पिता जी आपकी वही नीहारिका हूँ जो चुपके से आपके कोट की जेब से सिक्के चुरा लिया करती थी ...नहीं पता चलता था ना आपको ?'' नीहारिका के ये कहते ही सागर ने उसका माथा चूम लिया .समर भी ये देखकर मुस्कुराता हुआ बोला -'' अब नीहारिका तुम ही निर्णय करो कि तुम्हारा कन्यादान मैं और सविता करें या तुम्हारे माँ-पिता जी ?'' नीहारिका लजाते हुए बोली -'' फूफा जी ...ये आप दोनों ही जाने .'' ये कहकर वो शर्माती हुई वहां  से चली गयी .समर ने सागर के कंधें पर हाथ रखते हुए कहा -'' कन्यादान भाईसाहब आप ही करेंगें ..और अब तो आपने अपने हर अपराध का प्रायश्चित भी कर लिया है .'' समर के ये कहने पर सागर ने सीमा व् सविता की ओर देखा .उन दोनों की सहमति पर सागर ने भी लम्बी सांस लेकर सहमति में सिर हिला दिया .

शिखा कौशिक 'नूतन '

मंगलवार, 17 मार्च 2015

ऐसी सुहागन से विधवा ही भली .'' -लघु- कथा


ऐसी सुहागन से विधवा  ही  भली .'' -लघु- कथा
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पति के शव के पास बैठी ,मैली धोती के पल्लू से मुंह ढककर ,छाती पीटती ,गला  फाड़कर चिल्लाती सुमन को बस्ती की अन्य महिलाएं ढाढस  बंधा रही थी  पल्लू के भीतर  सुमन की आँखों से एक  भी  आंसू  नहीं  बह  रहा था  और  उसका दिल  कह  रहा था  -''अच्छा   हुआ हरामजादा ट्रक  के नीचे  कुचलकर मारा  गया  . मैं  मर  मर  कर  घर  घर  काम करके  कमाकर   लाती   और  ये   सूअर   की औलाद  शराब में  उड़ा   देता .मैं  रोकती  तो  लातों -घूसों से  इतनी   कुटाई   करता   कि हड्डी- हड्डी  टीसने  लगती  . जब चाहता  बदन नोचने    लग  जाता  और अब  तो जवान  होती  बेटी  पर भी ख़राब  नज़र  रखने  लगा  था  .कुत्ता  कहीं  का  ....ठीक  टाइम  से  निपट  गया  .ऐसी  सुहागन  से  तो मैं विधवा  ही  भली .'' सुमन  मन  में ये सब सोच  ही  रही  थी  कि  आस  पास  के मर्द  उसके  पति  की  अर्थी  उठाने  लगे  तो सुमन  बेसुध  होकर बड़बड़ाने लगी -  ''   हाय ...इब मैं किसके लिए सजूँ सवरूंगी ......हाय मुझे भी ले चलो ..मैं भी इनकी चिता पर जल मरूंगी ....'' ये कहते कहते वो उठने लगी तो इकठ्ठी  हुई महिलाओं ने उसे कस कर पकड़ लिया .उसने चूड़ी पहनी कलाई ज़मीन पर दे मारी
सारी चूड़ियाँ चकनाचूर हो गयी और सुमन  दिल ही दिल में सुकून   की साँस लेते हुए बोली  -'' तावली ले जाकर फूंक दो इसे ...और बर्दाश्त नहीं कर सकती मैं .''

शिखा कौशिक 'नूतन'