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शनिवार, 19 जनवरी 2019

स्वाभिमान - लघुकथा



एक स्व-वित्तपोषित महाविद्यालय  में समाजशास्त्र विषय की प्रवक्ता  डॉ राखी प्रतिदिन समय पर महाविद्यालय  पहुंच जाती थी पर आज समय से बस न मिल पाने के कारण उसे देर हो गई. स्कूल पहुंचते ही प्रिंसीपल सर के सामने पड़ते ही उसने देर से आने के लिए क्षमा मांगने के लिए ज्यों ही हाथ जोड़े, वे भड़कते हुए बोले - 'अरे मैडम ये न करें. आप लोग पहले गलती करते हैं और फिर ये सब नाटक करते हैं! "राखी का ह्रदय उनके  ऐसे कटु व्यवहार से बहुत आहत हुआ और वो स्वयं को संयमित करते हुए बोली - सर क्षमा करें पर आप  इस बात से भली-भांति परिचित हैं  कि महाविद्यालय परिवार का कौन सा सदस्य कैसा है? ये ठीक है कि आज देर से पहुंचने के कारण आपको हक है कि आप मुझे डांट लगा सकते हैं पर इतनी गुंजाइश तो छोड़ दीजियेगा कि मेरे ह्रदय में आपका सम्मान और मेरा स्वाभिमान बना रहे है.  "ये कहकर राखी लेक्चर लेने के लिए क्लास की ओर बढ़ चली.

डॉ शिखा कौशिक नूतन 

2 टिप्‍पणियां:

Neeraj Kumar ने कहा…

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Neeraj Kumar

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