tag:blogger.com,1999:blog-43464968973297782024-03-13T17:11:42.836-07:00मेरी कहानियांशिखा कौशिकhttp://www.blogger.com/profile/03372296358939070553noreply@blogger.comBlogger241125tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-11524963447819153732023-09-08T08:12:00.005-07:002023-09-08T08:12:58.725-07:00विवाह विच्छेद - हिन्दी लघुकथा <p> हिन्दी लघुकथा</p><p>श्रेया और मानस प्रेम विवाह के तीसरे वर्ष में ही विवाह विच्छेद कर अलग हो गए क्योंकि मानस भगवान बनना चाहता था और श्रेया नास्तिक । </p><p>- डॉ शिखा कौशिक नूतन</p>Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-86325353674541341162022-08-22T20:36:00.005-07:002022-08-22T20:36:45.866-07:00कर्मों का फेर - लघुकथा <p> कर्मों का फेरा </p><p><br /></p><p>सफाईकर्मी को कूड़े का ढ़ेर उठाकर ले जाते देखकर पिया का मन बहुत उदास हो उठा. वह सोचने लगी कि - '' आखिर ऐसे भी क्या पूर्वजन्म के कर्म कि मानव को ऐसे कार्य करने के लिए मजबूर होना पड़े? '' तभी वहां से एक साधु महाराज निकले जो सफाईकर्मी को देखकर मस्त अंदाज में बोले - '' अब करो बेटा काम। पिछले जन्म में बहुत नौकरों के दम पीकर आये हो। पानी तक खुद उठाकर न लेते थे। तुम गंदगी फैलाते नौकर साफ करते। अब वे नौकर साहब बन गये और तुम नौकर। हिसाब बराबर। '' यह कहकर वह साधु ठहाका लगाकर हंस पड़ा और सफाईकर्मी उसे झिड़क कर आगे बढ़ गया। पिया यह सब देखकर सोचने लगी - '' साधु बाबा सच ही तो कह रहे थे। कर्म तो लौट कर आता ही है। मैं तो आज से अपना सारा कार्य स्वयं ही करा करूंगी। ''</p><p><br /></p><p>(मौलिक रचना - Do not copy)</p><p>डॉ शिखा कौशिक नूतन </p><p><br /></p>Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-22154017133432693982022-06-17T21:12:00.002-07:002022-06-17T21:12:58.359-07:00यथा राजा तथा प्रजा - लघुकथा <p> यथा राजा तथा प्रजा - लघुकथा </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj5jdfJ0Zt49PFz7YqLHftrQchanQlujXYrrJXQ4aOudVmstcrEvGDhNPanZJgYDKdyl6N0e-TjMqT8qZke2JwfEHzws0Lgg8uCo07DQYp_-i8Z-y8qT---BCBWBYLR3HE0wWoDd_RjJY5ZHbxGgcNbKKVMI3XjflIA0zhc0Bw60jECfjeBYB9iIvA/s225/images%20(2).png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="224" data-original-width="225" height="224" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj5jdfJ0Zt49PFz7YqLHftrQchanQlujXYrrJXQ4aOudVmstcrEvGDhNPanZJgYDKdyl6N0e-TjMqT8qZke2JwfEHzws0Lgg8uCo07DQYp_-i8Z-y8qT---BCBWBYLR3HE0wWoDd_RjJY5ZHbxGgcNbKKVMI3XjflIA0zhc0Bw60jECfjeBYB9iIvA/s1600/images%20(2).png" width="225" /></a></div><br /><p><br /></p><p>राजभवन से निकलते ही प्रजा ने अपने सम्राट को घेर लिया. कुछ प्रजा ज़न अत्यंत भावुक होकर सम्राट के चरणों में गिर कर गिड़गिड़ाने लगे - " महाराज भुखमरी, बढ़ते अपराध, बेरोजगारी के कारण हम बहुत त्रस्त हैं. प्रभु कृपा कीजिए. हमारी रक्षा कीजिए." सम्राट उन सब को आश्वस्त करते हुए बोले - " घबराये नहीं. मैंने मंहगाई, बेरोजगारी, अपराधों पर फिल्म बनाने के निर्देश दे दिए हैं. राष्ट्र हित में हुआ तो उन फ़िल्मों को टैक्स फ्री भी कर दूँगा. ठीक है! " प्रजा यह आश्वासन पाते ही हर्ष मग्न होकर नृत्य करने लगी।</p>Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-2241970314054820382022-06-10T22:40:00.003-07:002022-06-10T22:45:19.948-07:00नंगी राजनीति - लघुकथा <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEidHUUIG7-JUv1HGFRjWidEszpNAhZLed0PvPHZepMb1-0XQHWw2zmiHewMtcNYhbgzVv9a7-n3K2rJHoaI0N0zROSnrCFn7Gpudrt8UxF2ugo_PaYFXOf-1czr8ZGbtK-1g9_CKLCNY1QkhSyTgH7awW_5HmPD9fZ_dDVHCRcQcoZavS0KxZkvQC4/s340/il_340x270.2593532806_hat0.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="270" data-original-width="340" height="159" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEidHUUIG7-JUv1HGFRjWidEszpNAhZLed0PvPHZepMb1-0XQHWw2zmiHewMtcNYhbgzVv9a7-n3K2rJHoaI0N0zROSnrCFn7Gpudrt8UxF2ugo_PaYFXOf-1czr8ZGbtK-1g9_CKLCNY1QkhSyTgH7awW_5HmPD9fZ_dDVHCRcQcoZavS0KxZkvQC4/w200-h159/il_340x270.2593532806_hat0.jpg" width="200" /></a></div><br /><p></p><p>राजनीति किसी इंसान को कैसे दरिन्दा बना देती है? आज और अभी सोलह वर्षीय स्नेहा ने अपनी आंखों से देखा था. नेता जी के समर्थक किस तरह चुनाव में उनका विरोध कर रही दलित बस्ती को तहस नहस कर के गए थे, यह झोपड़ी के कोने में दुबकी वह देखती रही थी पर उसके लहुलुहान पिता ने यह कहकर संतोष की सांस ली थी कि - अच्छा हुआ गुंडों की नज़र जवान बेटियों पर नहीं पड़ी नहीं तो हम नंगे ही हो जाते। "</p>Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-15449152362710799652020-08-10T04:14:00.000-07:002020-08-10T04:14:15.200-07:00स्मृति के योग्य - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक सामयिक लघुकथा<br />
<br />
नगर के मुख्य मार्ग पर बनी दीवार के सामने दो युवक बुरी तरह लड़ रहे थे. काफी भीड़ इकट्ठा हो गयी थी. वहां से गुजरते नगराध्यक्ष ने यह नज़ारा देखा तो वे रूक गये. उन्होंने दोनों युवकों को लड़ने से रोकते हुए पूछा - भाईयों क्यों आपस में कलह कर रहे हो? पहला युवक बोला - महोदय इस दीवार पर हम अपने अपने पिताजी की स्मृति ताजा रखने के लिए उनका नाम अंकित करने को लेकर झगड़ रहे हैं कि कौन इसका अधिकारी है? "नगराध्यक्ष महोदय सहजता के साथ दोनों को समझाते हुए बोले -" बस इतनी सी बात! अरे भाई जिसके पिताजी दौलत वाले रहे हों ; वह ही अपने पिताजी का नाम दीवार पर अंकित कर दे. दौलत वाले ही स्मृति में रखने के योग्य होते हैं. "यह कहकर नगराध्यक्ष महोदय वहां से चल दिये और इकट्ठा हुई भीड़ उनके न्याय की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगी. - डॉ शिखा कौशिक नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-16641541792617538972020-03-03T00:22:00.002-08:002020-03-03T00:25:03.306-08:00नदी - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
नदी - लघुकथा<br />
जब भी उदास होता रघु नदी किनारे जाकर बैठ जाता. कभी मां की तरह उसकी शीतल जलधारा दुख के ताप हर लेती . कभी बड़ी बहन सी कलकल करती मीठी बोली में सांत्वना सी देती. कभी भाभी बनकर चंचल लहरों के रूप में रघु को देवर की तरह छेड़ते हुए उछलती बूंदें चेहरा भिगा जाती और जब भी आंखों से छिटककर आंसू नदी के जल में समा जाते तब रघु को नदी अपनी प्रेयसी प्रतीत होती जिसके नीले स्वच्छ जल रूपी दर्पण में अपना उदास चेहरा देखकर वह मुस्कुरा देता.<br />
-डॉ शिखा कौशिक नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-57714595185708579282020-03-01T08:30:00.000-08:002020-03-01T08:30:11.041-08:00विद्यालय - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
विद्यालय - लघुकथा<br />
उस चारदीवारी से घिरी बिल्डिंग को मैंने विद्यालय का दर्जा कभी नहीं दिया. मेरे लिए तो मेरे प्रिय अध्यापक रामदेव जी ही विद्यालय के पर्याय थे. वे किसी वृक्ष के नीचे बैठाकर पढ़ा देते तो वही वृक्ष मेरा विद्यालय हो जाता. उनके सेवानिवृत्त होने के समय मैं ग्यारहवीं का छात्र था<br />
. एक वर्ष में मैंने ईट - सीमेंट की उस बिल्डिंग को बिल्कुल वैसा ही पाया था जैसे आत्मा के बिना देह. सच्चाई यही है कि अच्छे अध्यापक ही विद्यालय का सजीव रूप हैं.<br />
-डॉ शिखा कौशिक नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-11510440341494851332020-02-29T04:36:00.002-08:002020-02-29T04:36:41.468-08:00जंगल - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शहर में एक तनावपूर्ण चुप्पी थी. ऑफिस से लौटते समय समर इस स्थिति को भांप चुका था. बस स्टैंड पर शाम के सात बजे अकेला ही खड़ा वह बस का इंतजार करने लगा. दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था आज जबकि सामान्य दिनों में भारी भीड़ का साम्राज्य रहता था वहां. तभी उसे तीन चार बाइकों पर सवार हथियार लहराते युवक अपनी ओर आते दिखाई दिये, जो पास आते ही इंसान से भेड़ियों में तब्दील हो गये. उन्होंने उसका नाम पूछा, पैंट उतरवाई और उस पर हमला बोल दिया. मारपीट व लूटपाट कर वे भेड़िये फरार हो गए और खून से लथपथ जमीन पर पड़े समर को लगा जैसे सारा शहर जंगल हो गया है.<br />
-डॉ शिखा कौशिक नूतन </div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-23235987623243960092020-02-29T00:44:00.000-08:002020-02-29T00:45:16.007-08:00आग - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
गांव में बारिश हुई. लकड़ियां गीली हो गयी. मां दुखी होकर बोली - अब चूल्हा कैसे जलेगा? बेटा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - मां चिंता मत कर. मैं नफरत की आग लगाकर सांप्रदायिकता फैलाने वाले नेता को फोन कर बुला लेता हूं, उसने सारे मुल्क में आग लगा डाली चूल्हे की क्या औकात है! - नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-47209930842869091402020-02-28T07:22:00.002-08:002020-02-28T07:22:48.823-08:00पृथ्वी - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पृथ्वी - लघुकथा<br />
<br />
मां की गोद में सिर रखते ही मानों जन्नत का सुकून दिल में उतर आता. दादी के उलाहने चुपचाप सुनती हुई, उनकी सेवा में लगी रहने वाली मां की धीरता भी विस्मय में डाल देती. पिता जी कभी झिड़क देते तो मन ही मन क्षोभ से कंपकंपाती मां को देखकर मैं भी हिल जाता . मां मानों पृथ्वी का मानवी रूप थी. पृथ्वी की भांति ममता से परिपूर्ण , धीरता की मिसाल और जलजले से कांपती पृथ्वी.<br />
-डॉ शिखा कौशिक नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-90906517377240120272020-02-28T02:00:00.001-08:002020-02-28T02:00:22.645-08:00अमन का नुस्खा - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अमन का नुस्खा - लघुकथा<br />
पूरा शहर दंगों की आग में जल रहा था पर मुस्लिम मौहल्ले में रहने वाला एकमात्र हिन्दू परिवार पूरी तरह से सुरक्षित महसूस कर रहा था क्योंकि उस मौहल्ले के बाशिंदों ने सियासत करने वालों की बातों पर ध्यान न देकर आपसी इंसानी व्यवहार पर ध्यान दिया था.<br />
-डॉ शिखा कौशिक नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-6088338285407485112020-02-27T00:14:00.002-08:002020-02-27T00:14:35.797-08:00पानी - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पानी - लघुकथा<br />
पड़ोसी देश की आतंकी कार्रवाई से तंग आकर जब शांतिमय देश ने यह निर्णय लिया कि हम अपनी नदियों का पानी अपनी ओर रोककर दुष्ट राष्ट्र को सबक सिखायेंगे तब कूटनीति ने तो करतल ध्वनि कर हर्ष व्यक्त किया पर मानवता पानी - पानी हो गयी.<br />
-डॉ शिखा कौशिक नूतन.</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-90384849137889381112020-02-26T22:57:00.001-08:002020-02-26T22:57:54.439-08:00गिरवी ह्रदय - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #333333; counter-reset: list-1 0 list-2 0 list-3 0 list-4 0 list-5 0 list-6 0 list-7 0 list-8 0 list-9 0; cursor: text; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px; padding: 0px; white-space: pre-wrap;">
दंगा पीड़ित परिवारों से मिलने पहुंचे सत्ता धारी पार्टी के नेता जी को मुस्कराते देखकर उपस्थित एक पत्रकार ने सवाल साधा - ऐसे दुखी माहौल में आप मुस्करा रहे हैं !</div>
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #333333; counter-reset: list-1 0 list-2 0 list-3 0 list-4 0 list-5 0 list-6 0 list-7 0 list-8 0 list-9 0; cursor: text; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px; padding: 0px; white-space: pre-wrap;">
कितना कठोर ह्रदय है आपका।'</div>
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #333333; counter-reset: list-1 0 list-2 0 list-3 0 list-4 0 list-5 0 list-6 0 list-7 0 list-8 0 list-9 0; cursor: text; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px; padding: 0px; white-space: pre-wrap;">
नेता जी सवाल का जवाब और भी मुस्कुराकर देते हुए बोले- भाई कठोर व नर्म की बात नहीं है, हम नेताओं का ह्रदय तो पार्टी ऑफिस में गिरवी पड़ा रहता है।</div>
</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-9762508854256751502020-02-26T08:01:00.000-08:002020-02-26T08:01:02.243-08:00ह्रदय - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ह्रदय - लघुकथा<br />
कितना बोझ उठाये था ! दबा जा रहा था और कभी ज्यादा हवा भरे गुब्बारे की तरह फटने को तैयार था. पुलिस में सिपाही बेटे की दंगों में शहीद होने की खबर सुनते ही मां का ह्रदय दर्द से भर गया था. अभी तो उसके सेहरा बंधने की आस लगाये यह मां का ह्रदय खुशी से भर जाता था. शव आते ही चारों ओर भारत माता के जयकारें से गगन गूंज उठा. मां ने आगे बढ़कर हमेशा के लिए चैन से सोये बेटे के चेहरे को चूम लिया और जयहिंद कहकर सलाम करते हुए ह्रदय से कहा - अब कभी कमजोर न पड़ना मेरा बेटा मरा नहीं है अमर हो गया. '<br />
-डॉ शिखा कौशिक नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-24545834161157867062020-02-24T06:44:00.002-08:002020-02-24T06:44:55.061-08:00सफलता - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सफलता - लघुकथा<br />
आज तीसरे प्रयास में राहुल ने आखिर यूपीएससी की परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ही ली. परिणाम देखते ही दिवंगत पिता की स्मृति से उसकी आंखों में आंसू भर आये. उसकी स्मृतियों में गूंज उठे वह स्वर जब पहली बार परीक्षा में साक्षात्कार में सफल न होने पर कैंसर से पीड़ित उसके पिता जी ने अंतिम सांसें लेते हुए उससे कहा था कि - राहुल जीवन से अधिक मूल्यवान कुछ नहीं. हर नई सुबह नयी आशा के साथ सूर्य उदित होता है. परीक्षा में सफलता बहुत छोटा उद्देश्य है जीवन का. जीवन का वास्तविक उद्देश्य है इस संसार में व्याप्त पीड़ाओं को यथासंभव कम करने में सहयोग करना. किसी के दुखमय जीवन में एक ही सही पर मुस्कान भरना. निराशा का तो सवाल ही नहीं उठता किसी को खुश करने में. ' कुछ दिन बाद राहुल के पिताजी का तो देहावसान हो गया किंतु उनकी दी हुई सीख ने राहुल में अदम्य आत्मशक्ति का संचरण कर दिया जिसने अंततः उसे जीवन की सफलता की ओर अग्रसर कर दिया.<br />
-डॉ शिखा कौशिक नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-77080382205575603542020-02-23T09:35:00.000-08:002020-02-23T09:35:15.603-08:00स्त्री - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
स्त्री - लघुकथा<br />
घर की सफाई, कपड़ों की सफाई, बर्तनों की सफाई निपटाकर सुनैना बराबर के घर में रहने वाले पंडित जी की हमउम्र बेटी साधना के पास नोट्स लेने पहुंची तो कानों में पंडित जी के उबलते तेल जैसे कटु वचन पड़े. पंडित जी साधना को लताड़ते हुए कह रहे थे - लक्ष्मी जी की कोठरी में क्यों घुसी तुम रजस्वला होते हुए? पहले से बताया है न तुम्हें मैंने और तुम्हारी मां ने कि स्त्री गंदी होती है इन दिनों में. अब गंगा जल से शुद्धि करनी होगी. ' सुनैना उल्टे पैर लौट आई और मन ही मन सोचने लगी ये पुरूष हमेशा पवित्र होते हैं और स्त्री गंदी फिर देवियों को क्यों पूजते हैं? वे भी तो स्त्री ही हैं.<br />
-डॉ शिखा कौशिक नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-61623345771575582322020-02-22T02:37:00.002-08:002020-02-22T02:37:34.919-08:00मित्र - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मित्र - लघुकथा<br />
सदन ने सूरज को कई बार कॉल लगाई पर वह उठा ही नहीं रहा था. तंग आकर सदन ने मैसेज किया कि - कल को डॉक्टर के यहां चलना है तबीयत खराब है मेरी. ' मैसेज का भी जवाब नहीं आया तब सदन को बड़ी निराशा हुई. आधे घंटे बाद उसके गेट पर एक कार आकर रूकी. सदन ने देखा उसमें से सूरज उतर कर आ रहा था. शाम के सात बजे सूरज को अपने घर पर आया हुआ देखकर सदन आश्चर्यचकित रह गया. सूरज ने तेजी के साथ आकर सदन को गले लगाते हुए कहा - क्या हुआ तेरी तबीयत को? चल अभी चल. ' सदन थोड़ा सकुचाये हुए स्वर में बोला - पर यह समय तो तेरे ऑफिस से घर लौटने का है. पत्नी बच्चे इंतजार कर रहे होंगें. कल जल्दी निकल लेंगे. बस बैक में पेन हैं.' सूरज सदन की स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही से भलीभांति परिचित था. वह मुस्कुराता हुआ बोला - पत्नी बच्चों को बोल चुका हूं थोड़ी देर से पहुंच पाऊंगा, आखिर हर रिश्ते की तरह मित्र का रिश्ता भी कम महत्वपूर्ण नहीं होता और बहाने बनाना बंद करो.' सूरज के यह कहते ही सदन ने उसे कसकर गले से लगा लिया.<br />
-डॉ शिखा कौशिक नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-60542429263986070882020-02-21T20:22:00.000-08:002020-02-21T20:22:38.452-08:00स्वतंत्रता - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
स्वतंत्रता - लघुकथा<br />
सोनाक्षी के क्लिनिक में बेटी के इलाज के लिए पहुंची मीरा उसे बधाई देती हुई बोली - मुबारक हो सोना तुम डॉक्टर बनकर प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही हो. आठवीं क्लास तक हम दोनों साथ पढ़े थे. तब तुम्हें देखकर कोई नहीं कह सकता था कि तुम्हारे भीतर इतनी प्रतिभा छिपी है. हम सब फैशन के कपड़े , जूते , बैग्स लाते और तुम दो चोटी बांध कर सलवार सूट में आती. हम समझते तुम्हारे पैरेंट्स संकुचित विचारधारा के हैं पर आज तुम्हें यहां तुम्हारे क्लीनिक पर डॉक्टर के रूप में कार्यरत देखकर समझ में आया कि उन्होंने तुम्हें न केवल उड़ने की स्वतंत्रता दी बल्कि उचित दिशा हेतु मार्गदर्शन भी किया. ' मीरा की यह बात सुनकर सोनाक्षी मुस्कुरा दी और उसकी दो साल की बिटिया को गोद में उठाती हुई बोली - अब हमें इस चिड़िया को भी सही दिशा में उड़ने के लिए पंख लगाने हैं.' यह कहकर सोनाक्षी उसके चैकअप की तैयारी में लग गई.<br />
_डॉ शिखा कौशिक नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-51331153379206085602020-02-21T01:09:00.000-08:002020-02-21T01:09:10.637-08:00आत्मा - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आत्मा - लघुकथा<br />
पंडित जी प्रवचन दे रहे थे. स्त्रियों को लक्ष्य कर जब उन्होंने कहा कि - रजस्वला स्त्री यदि भोजन बनाये तो अगले जन्म में कुतिया बनती है. "उनकी इस बात पर सभी स्त्रियां भयभीत होकर एक दूसरे का मुख देखने लगी तभी सोलह वर्षीय हीमा खड़े होकर अत्यंत व्यंग्यपूर्ण स्वर में हाथ जोड़कर बोली - पंडित जी हो सकता है आप सही कह रहे हो हमारे समाज में एक स्त्री की स्थिति कुतिया से बेहतर ही कहां है? बलात्कार, दहेज हत्या जैसे अपराधों को झेलने वाली औरत को कोई भी देह, योनि मिल जाये पर उसकी आत्मा को तो छलनी होना ही है. "यह कहकर वह वहां से जैसे ही चली, सभी स्त्रियां उसके पीछे हो ली.<br />
-डॉ शिखा कौशिक नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-30752652610012839552020-02-20T07:41:00.000-08:002020-02-20T07:41:16.522-08:00धोखा - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
धोखा - लघुकथा<br />
सरोजा के लिए यह एक सदमे से कम नहीं था कि उसके जीवन साथी राहुल ने आज उसके चरित्र को लेकर ही ऊंगली उठा दी थी. कॉलेज में प्रवक्ता अंग्रेजी के पद पर कार्यरत सरोजा यह सोच भी नहीं सकती थी कि पति पत्नी के बीच विश्वास की दीवार इतनी कमजोर होती है, जो किसी अन्य पुरुष से बातचीत करती पत्नी को देखते ही टूटकर गिर जाती है. सरोजा यह सब सोचते सोचते रसोई घर से बाहर आई और आंखों में आये आंसू पोंछते हुए राहुल से भर्राये हुए स्वर में बोली - राहुल तुमने जो मुझ पर आरोप लगाये हैं, उनपर सफाई देकर मैं अपनी गरिमा, अपने भीतर बैठी सच्चाई को धोखा नहीं दे सकती. आज से हमारे रास्ते भले ही अलग हो जायें. " राहुल सरोजा की बात सुनकर हड़बड़ाहट के साथ खड़ा हुआ और उसे गले से लगा लिया.<br />
-डॉ शिखा कौशिक नूतन</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-25019183718057305892019-11-29T01:44:00.000-08:002019-11-29T01:44:15.261-08:00वो मेरी गलती थी -कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वो मेरी गलती थी -कहानी<br />
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सिमरन जनवरी की कड़कती सुबह में रजाई के भीतर बैड पर लेटी हुई थी । उसका दिल व् दिमाग दोनों सुलग रहे थे । रात भर वह इसी तरह उलझनों के चक्रव्यूह में चक्कर लगाती रही थी। आज न उसका ऑफिस जाने का प्रोग्राम था और न ही पतिदेव हर्ष के लिए चाय बनाने का । इंतज़ार था उसे हर्ष के जागने का। हर्ष की नींद टूटी तो उसकी नज़र सामने दीवार पर लगी घड़ी पर गयी। अनायास ही ऊंघते हुए उसके मुंह से निकला- ' ओह नो साढ़े नौ ......सिमरन ..''ये कहकर नज़र दौड़ाई तो पाया सिमरन बराबर में ही बैड पर रजाई से मुंह ढंके लेती हुई थी। हर्ष ने सिमरन के सिर की ओर से रजाई हटाने का प्रयास करते हुए कहा -'' अरे अब तक सो रही हो ....तबियत तो ठीक है ? .....कही कल रात के झगड़े के कारण तो नहीं ?....तुम भी ना हर बात पर मुंह फुलाकर पड़ जाती हो। '' सिमरन ने कोई जवाब न देकर करवट लेकर मुंह दूसरी ओर कर लिया। हर्ष बैड से उतरा और सिमरन को मनाने के लिए बैड की दूसरी साइड पहुँच गया। सिमरन ने तेजी से रजाई को एक ओर किया और उठकर बैठते हुए बहुत आक्रोश के साथ बोली -'' हर्ष अब ये सब रहने दो ....दो साल हो गए हमारी लव -मैरिज को पर तुम्हें हर वक्त बस यही चिंता रहती है कि तुम्हारी पत्नी का किसी और मर्द से कोई अफेयर तो नहीं चल रहा। तुम्हारे शक्की स्वभाव के कारण ऑफिस के पुरुष -सहकर्मियों से , सोशल-मीडिया से , व्हाट्सएप्प से सबसे दूरी बना ली है मैंने और तुम हो कि कोई न कोई कारण निकल ही लेते हो शक करने का। बस करो हर्ष !!! मुझे लगता है कि इन झगड़ों का कोई अंत नहीं होने वाला। मैं इसी निर्णय पर पहुंची हूँ कि हमें अलग हो जाना चाहिए। '' सिमरन की इस बात पर हर्ष बौखलाता हुआ बोला -'' अलग हो जाना चाहिए ...नॉनसेंस ...मैं सॉरी बोल देता हूँ और क्या ! अरे भई पति हूँ तुम्हारा ...कुछ पूछ लेता हूँ तो क्या गुनाह कर देता हूँ ? रात को ग्यारह बजे तुम्हारे पास किसी का फोन आएगा तो पूछकर क्या गलत कर दिया .... बताओ जरा तुम ...इस पर इतना गुस्सा करने की क्या बात थी कि तुमने जवाब न देकर फोन ही पटक डाला। सीधे-सीधे बता देती कि तुम्हारे पिता जी का फोन है ..शक नहीं कर रहा था पर पूछने का हक़ तो है मेरा....नहीं है क्या ?'' हर्ष के यह कहते ही सिमरन बिफरते हुए बोली -'' हक़ .....सारे हक़ तुम्हारे ही हैं। शक नहीं करते ....जब भी किचन में होती हूँ मेरा फोन उठाकर हिस्ट्री खंगालने लगते हो .....दूधवाले से इतनी देर तक क्या बात हो रही थी ?पडोसी श्रीवास्तव जी तुमसे क्या पूछ रहे थे ? क्या समझते हो मुझे ....बस यही काम रह गया है मुझे। ..एक बार प्यार करने की ...लव-मैरिज करने की सजा भुगत रही हूँ .....अरे जब विश्वास ही नहीं है तब पति-पत्नी का टैग चिपटाये फिरने से क्या फ़ायदा !!!! तुम और पतियों की तुलना में पत्नी को एक चीज़ न समझकर एक इंसान का दर्ज़ा दोगे यही सोचकर लव-मैरिज की थी पर विवाह के बाद से तुम्हारा रुख ही पलट गया। मर्द सिर्फ मर्द ही होता है धीरे-धीरे समझ पायी हूँ। खैर इस दो साल के इस जबरदस्ती के बंधन को तोड़ ही डालना ठीक रहेगा क्योंकि हर बार की तरह इस बार भी मर्द की नहीं केवल और केवल इस औरत की ही गलती है ....हाँ ....वो मेरी ही गलती थी ! ''<br />
<br />
- डॉ शिखा कौशिक 'नूतन'</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-63989190374761011382019-08-02T01:32:00.003-07:002019-08-02T01:32:10.368-07:00रामराज - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बलात्कार के बाद तीन साल की बच्ची का सिर धड़ से अलग कर कातिल जंगल में फेंककर फरार हो गए. दुष्कर्म का शिकार युवती व उसके परिवार को विरोध करने पर ट्रक से कुचलवा दिया दबंग विधायक ने. चारों ओर हाहाकार मच गया. भीड़ चिल्ला चिल्ला कर कहने लगी - "हाय ये कैसा रामराज आया है जिसमें बेटियों पर अत्याचार हो रहा है? तभी आकाशवाणी हुई -" मूर्खों रामराज में जनकनंदिनी के साथ जो अन्याय हुआ था वो भूल गये!!! "</div>
Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-1429367371764697782019-01-19T05:14:00.000-08:002019-01-19T05:20:42.895-08:00स्वाभिमान - लघुकथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span class="_rw_b" style="display: inline-block; font-size: 0px; height: 22px; position: relative; vertical-align: top; white-space: nowrap;" tabindex="-1"><span class="_rw_7 PersonaPaneLauncher" tabindex="-1"><span class="_pe_l _pe_G _pe_Y1 bidi _pe_m1 ms-fwt-r ms-font-color-black ms-font-color-themePrimary-hover allowTextSelection" style="-webkit-user-select: text; cursor: pointer; direction: ltr; display: table-cell; font-size: 14px; max-width: 200px; overflow: hidden; text-overflow: ellipsis; unicode-bidi: embed; vertical-align: middle; width: 190px;">स्वाभिमान - <span style="font-family: , "segoe ui" , "segoe wp" , "tahoma" , "arial" , sans-serif , serif , "emojifont";">लघुकथा</span><span style="font-family: , "segoe ui" , "segoe wp" , "tahoma" , "arial" , sans-serif , serif , "emojifont";"> </span></span></span></span></div>
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<div class="_rp_X5 rpHighlightAllClass rpHighlightBodyClass" id="Item.MessageNormalizedBody" style="clear: both; word-wrap: break-word;">
<div class="rps_19da">
<span style="background-color: #660000;">एक स्व-वित्तपोषित महाविद्यालय में समाजशास्त्र विषय की प्रवक्ता डॉ राखी प्रतिदिन समय पर महाविद्यालय पहुंच जाती थी पर आज समय से बस न मिल पाने के कारण उसे देर हो गई. स्कूल पहुंचते ही प्रिंसीपल सर के सामने पड़ते ही उसने देर से आने के लिए क्षमा मांगने के लिए ज्यों ही हाथ जोड़े, वे भड़कते हुए बोले - 'अरे मैडम ये न करें. आप लोग पहले गलती करते हैं और फिर ये सब नाटक करते हैं! "राखी का ह्रदय उनके ऐसे कटु व्यवहार से बहुत आहत हुआ और वो स्वयं को संयमित करते हुए बोली - सर क्षमा करें पर आप इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि महाविद्यालय परिवार का कौन सा सदस्य कैसा है? ये ठीक है कि आज देर से पहुंचने के कारण आपको हक है कि आप मुझे डांट लगा सकते हैं पर इतनी गुंजाइश तो छोड़ दीजियेगा कि मेरे ह्रदय में आपका सम्मान और मेरा स्वाभिमान बना रहे है. "ये कहकर राखी लेक्चर लेने के लिए क्लास की ओर बढ़ चली.</span><br />
<span style="background-color: #660000;"><br /></span>
<span style="background-color: #660000;">डॉ शिखा कौशिक नूतन </span></div>
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Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-73712159987215808912018-12-09T00:24:00.000-08:002018-12-09T00:24:59.223-08:00उचित निर्णय -कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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उचित निर्णय -कहानी<br />
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'' ....आज पूरे पांच वर्ष हो गए अन्नपूर्णा से न मिले लेकिन ह्रदय आज जितना व्याकुल हो रहा है उतना पिछले पांच वर्षों में कभी नहीं हुआ | अन्नपूर्णा तो और लोग कहते थे ...मेरे लिए तो केवल ' अन्नू ' थी वह -------मेरी प्रियेसी , मेरी दोस्त ----मेरा सर्वस्व | आज भी याद है मुझे हम दोनों की वह अंतिम भेंट ---जब मैं अपने घर से निकलकर कार में बैठ रहा था और उसने मुस्कुराते हुए दूर चौराहे से हाथ हिलाया था | जब पंद्रह दिन बाद नेपाल यात्रा से वापस लौट कर आया पता नहीं मेरी अन्नू कहीं चली गई थी | फोन मिलाया तो उसके पिता जी ने यह कहकर झटक कर रख दिया कि -' तुम अमीर लड़कों को हमारी मिडिल क्लास लड़कियां ही मिलती हैं दिल बहलाने के लिए ! ख़बरदार जो यहाँ फिर फोन किया | शायद उन्हें मेरे और अन्नू के प्रेम-सम्बन्ध का पता चल गया था | हमारी कोठी से कुछ दूर किराये पर रहने वाले बैंककर्मी आनंद जी की इकलौती बेटी थी अन्नू | देखने में बेहद खूबसूरत और गुणों में उससे भी बढ़कर पर मुझे तो उसकी सादगी पसंद थी | वो गंभीर स्वभाव की जब कभी मुस्कुरा देती मानों गुलाब खिल उठते पर ----ये सब सोचने से क्या फायदा ---उसके पिता जी ने इस प्रकरण के बाद अपना स्थानांतरण किसी और शहर में करा लिया था ,जो बहुत कोशिश के बाद भी मैं पता न कर पाया अन्यथा एक बार अपने सच्चे प्रेम के भाव से उन्हें अवगत अवश्य करने का प्रयास करता |<br />
आज पांच वर्ष बाद व्याकुल होने का कारण एक तो यही था कि अब अन्नू से इस जन्म में मिल पाने की हर आशा समाप्त हो चुकी थी और दूसरी ओर मम्मी-पापा काफी जोर दे रहे थे कि अब मैं शादी कर ही लूँ .आखिर एकलौते बेटे को लेकर उनके भी तो कुछ अरमान रहे होंगें ? बिजनेस की आड़ ले -लेकर तीन साल से टालता रहा हूँ पर खुद से पूछता हूँ क्यों ? क्या अन्नू के लिए ----अब इस मृगमरीचिका से बाहर आना ही होगा | ये मन ही मन निश्चय कर कल रात मम्मी द्वारा दिखाए गए एक लड़की के फोटो को देखकर मैंने हामी भर दी | कल को मम्मी-पापा के साथ जाना है उसे देखने उसके घर --- ये सब सोचते-सोचते मैं कब सो गया कुछ जान न पाया |<br />
आज सुबह मम्मी ने मुझे और पापा को नाश्ते पर ही सख्त हिदायत दे दी कि -'' सही समय से लौट आना घर ---आज लड़की देखने जाना है |'' हमने हामी भर दी | सांय चार बजे मैं व् पापा ऑफिस से लौट आये | पापा की तबियत कुछ ढीली थी अतः मैं और माँ ही तैयार होकर अपनी कार से रवाना हो लिए | हमारी मंज़िल कुछ बीस किलोमीटर दूर थी | करीब पचास मिनिट में हम वहां सकुशल पहुँच गए | लड़की के पिता और भाई बंगले के बाहर लॉन में ही बैठे थे ----शायद हमारा ही इंतज़ार कर रहे थे |हमारी कार को अपने बंगले के आगे रुकता देखकर वे हमारा स्वागत करने हेतु हमारे समीप आ पहुंचे और अत्यंत शिष्टता के साथ हमें अंदर ड्राइंग रूम की ओर ले चले | मैं मम्मी के पीछे सिर झुकार अत्यंत संकोच के साथ चल रहा था | मम्मी काफी व्यावहारिक हैं पर मुझे तो बहुत झिझक हो रही थी | हम ड्राइंग रूम में जाकर विराजे | थोड़ी देर में लड़की को लेकर उसकी भाभी ने प्रवेश किया | लड़की की माता जी का कुछ वर्ष पूर्व निधन हो चुका था | मुझमें इतना भी साहस नहीं था कि मैं एक बार आँख उठाकर लड़की की ओर देख लूँ | तभी लड़की की भाभी की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया जो हम से कुछ मिठाई लेने की विनती कर रही थी | मेरी आँखें एकाएक उठ गयी | साक्षात् लक्ष्मीस्वरूपा मेरी अन्नपूर्णा !! मन में तूफ़ान उमड़ पड़ा -'' मेरी अन्नू पराई हो चुकी है |'' किसी तरह स्वयं को संयमित किया | अन्नू ने कुछ विवशता से युक्त दृष्टि से मुझे निहारा और फिर कुछ बहाना बनाकर अंदर चली गयी | माँ मेरे होने वाले ससुर जी से उनकी बहू की तारीफ करती हुई बोली -'' बहू तो बहुत सुन्दर व् शालीन लाएं हैं आप | '' वे मुस्कुराते हुए बोले -'' मेरे मित्र हैं बहू के पिता | हमने बिना दहेज़ के ये विवाह किया है ----बहू वास्तव में सर्वगुणसम्पन्न है |'' न जाने मुझे क्या होने लगा ? मैं एकाएक सोफे से उठकर खड़ा हो गया | मम्मी ने पूछा -'' क्या हुआ अभिषेक ? '' मैं बहाना बनाता हुआ बोला -'' कुछ नहीं मम्मी ----शायद पर्स कार में रह गया है ---मैं अभी लेकर आता हूँ |''ये कहकर मैं वहां से निकल लिया | करीब पंद्रह मिनिट तक काफी सोच-विचार कर , अपने को नियंत्रित कर मैं वापस पहुंचा | लड़की वास्तव में योग्य व् सुन्दर थी | काफी वार्तालाप के बाद रात नौ बजे हम वापस चल दिए | मम्मी उस लड़की की तारीफ किये जा रही थी लेकिन मेरे दिल व् दिमाग में केवल अन्नू थी | माँ ने अगले दिन सुबह नाश्ते पर पूछा -'' क्यों अभिषेक पसंद आयी लड़की ? '' मैं रूखा उत्तर देते हुए बोलै -'' नहीं माँ ----मुझे पसंद नहीं आयी ---कहीं और बात चलाईये |'' बहुत तरह से बातें बनाकर मैंने माँ को संतुष्ट किया लेकिन मेरा दिल जनता था कि मैंने ऐसा क्यों किया ? मैंने ऐसा केवल इसीलिए किया था कि यदि इसी तरह अन्नू मेरे सामने आती रही तो मैं अपने पर नियंत्रण नहीं रख पाउँगा और अब यह न तो मेरे हित में है और न ही अन्नू के |<br />
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डॉ शिखा कौशिक 'नूतन'<br />
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Shikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4346496897329778.post-87433846642393437952018-04-14T03:10:00.001-07:002018-04-14T03:10:55.093-07:00औरत जात <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सड़क पर नंगी लाश पड़ी थी. चारों ओर इकट्ठा लोग अनुमान लगा रहे थे - "लगता है बलात्कार करने के बाद मारकर फेंक दिया है यहां.. आठ नौ साल की रही होगी.. पर मुद्दा ये है कि ये हिन्दू थी या मुस्लिम?" तभी भीड़ को चीरती हुई एक औरत ने लाश के पास पहुंचकर उसे अपने दुपट्टे से ढ़कते हुये कहा - मुद्दा ये नहीं कि ये हिन्दू थी या मुस्लिम.. मुद्दा ये है कि ये औरत जात थी. "<br />
डॉ शिखा कौशिक नूतन </div>
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