फ़ॉलोअर

सोमवार, 10 अगस्त 2020

स्मृति के योग्य - लघुकथा

एक सामयिक लघुकथा

नगर के मुख्य मार्ग पर बनी दीवार के सामने दो युवक बुरी तरह लड़ रहे थे. काफी भीड़ इकट्ठा हो गयी थी. वहां से गुजरते नगराध्यक्ष ने यह नज़ारा देखा तो वे रूक गये. उन्होंने दोनों युवकों को लड़ने से रोकते हुए पूछा - भाईयों क्यों आपस में कलह कर रहे हो? पहला युवक बोला - महोदय   इस दीवार पर हम अपने अपने पिताजी की स्मृति ताजा रखने के लिए उनका नाम अंकित करने को लेकर  झगड़ रहे हैं कि कौन इसका अधिकारी है? "नगराध्यक्ष महोदय सहजता के साथ दोनों को समझाते हुए बोले -" बस इतनी सी बात! अरे भाई जिसके पिताजी दौलत वाले रहे हों ; वह ही अपने पिताजी का नाम दीवार पर अंकित कर दे. दौलत वाले ही स्मृति में रखने के योग्य होते हैं. "यह कहकर नगराध्यक्ष महोदय वहां से चल दिये और इकट्ठा हुई भीड़ उनके न्याय की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगी. - डॉ शिखा कौशिक नूतन

मंगलवार, 3 मार्च 2020

नदी - लघुकथा

नदी - लघुकथा
 जब भी उदास होता रघु नदी किनारे जाकर बैठ जाता. कभी मां की तरह उसकी शीतल जलधारा दुख के ताप हर लेती . कभी बड़ी बहन सी कलकल करती मीठी बोली में सांत्वना सी देती. कभी भाभी बनकर चंचल लहरों के रूप में रघु को देवर की तरह छेड़ते हुए उछलती बूंदें चेहरा भिगा जाती और जब भी आंखों से छिटककर आंसू नदी के जल में समा जाते तब रघु को नदी अपनी प्रेयसी प्रतीत होती जिसके नीले स्वच्छ जल रूपी दर्पण में अपना उदास चेहरा देखकर वह मुस्कुरा देता.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

रविवार, 1 मार्च 2020

विद्यालय - लघुकथा

विद्यालय - लघुकथा
उस चारदीवारी से घिरी बिल्डिंग को मैंने विद्यालय का दर्जा कभी नहीं दिया. मेरे लिए तो मेरे प्रिय अध्यापक रामदेव जी ही विद्यालय के पर्याय थे. वे किसी वृक्ष के नीचे बैठाकर पढ़ा देते तो वही वृक्ष मेरा विद्यालय हो जाता. उनके सेवानिवृत्त होने के समय मैं ग्यारहवीं का छात्र था
. एक वर्ष में मैंने ईट - सीमेंट की उस बिल्डिंग को बिल्कुल वैसा ही पाया था जैसे आत्मा के बिना देह. सच्चाई यही है कि अच्छे अध्यापक ही विद्यालय का सजीव रूप हैं.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

जंगल - लघुकथा

शहर में एक तनावपूर्ण चुप्पी थी. ऑफिस से लौटते समय समर इस स्थिति को भांप चुका था. बस स्टैंड पर शाम के सात बजे अकेला ही खड़ा वह बस का इंतजार करने लगा. दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था आज जबकि सामान्य दिनों में भारी भीड़ का साम्राज्य रहता था वहां. तभी उसे तीन चार बाइकों पर सवार हथियार लहराते युवक अपनी ओर आते दिखाई दिये, जो पास आते ही इंसान से भेड़ियों में तब्दील हो गये. उन्होंने उसका नाम पूछा, पैंट उतरवाई और उस पर हमला बोल दिया. मारपीट व लूटपाट कर वे भेड़िये फरार हो गए और खून से लथपथ जमीन पर पड़े समर को लगा जैसे सारा शहर जंगल हो गया है.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन 

आग - लघुकथा

गांव में बारिश हुई. लकड़ियां गीली हो गयी. मां दुखी होकर बोली - अब चूल्हा कैसे जलेगा? बेटा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - मां चिंता मत कर. मैं नफरत की आग लगाकर सांप्रदायिकता फैलाने वाले नेता को फोन कर बुला लेता हूं, उसने सारे मुल्क में आग लगा डाली चूल्हे की क्या औकात है! - नूतन

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

पृथ्वी - लघुकथा

पृथ्वी - लघुकथा

मां की गोद में सिर रखते ही मानों जन्नत का सुकून दिल में उतर आता. दादी के उलाहने चुपचाप सुनती हुई, उनकी सेवा में लगी रहने वाली मां की धीरता भी विस्मय में डाल देती. पिता जी कभी झिड़क देते तो मन ही मन क्षोभ से कंपकंपाती मां को देखकर मैं भी हिल जाता . मां मानों पृथ्वी का मानवी रूप थी. पृथ्वी की भांति ममता से परिपूर्ण , धीरता की मिसाल और जलजले से कांपती पृथ्वी.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

अमन का नुस्खा - लघुकथा

अमन का नुस्खा - लघुकथा
पूरा शहर दंगों की आग में जल रहा था पर मुस्लिम मौहल्ले में रहने वाला एकमात्र हिन्दू परिवार पूरी तरह से सुरक्षित महसूस कर रहा था क्योंकि उस मौहल्ले के बाशिंदों ने सियासत करने वालों की बातों पर ध्यान न देकर आपसी इंसानी व्यवहार पर ध्यान दिया था.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

पानी - लघुकथा

पानी - लघुकथा
पड़ोसी देश की आतंकी कार्रवाई से तंग आकर जब शांतिमय देश ने यह निर्णय लिया कि हम अपनी नदियों का पानी अपनी ओर रोककर दुष्ट राष्ट्र को सबक सिखायेंगे तब कूटनीति ने तो करतल ध्वनि कर हर्ष व्यक्त किया पर मानवता पानी - पानी हो गयी.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन.

बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

गिरवी ह्रदय - लघुकथा

दंगा पीड़ित परिवारों से मिलने पहुंचे सत्ता धारी पार्टी के नेता जी को मुस्कराते देखकर उपस्थित एक पत्रकार ने सवाल साधा - ऐसे दुखी माहौल में आप मुस्करा रहे हैं !
कितना कठोर ह्रदय है आपका।'
नेता जी सवाल का जवाब और भी मुस्कुराकर देते हुए बोले- भाई कठोर व नर्म की बात नहीं है, हम नेताओं का ह्रदय तो पार्टी ऑफिस में गिरवी पड़ा रहता है।

ह्रदय - लघुकथा

ह्रदय - लघुकथा
कितना बोझ उठाये था ! दबा जा रहा था और कभी ज्यादा हवा भरे गुब्बारे की तरह फटने को तैयार था. पुलिस में सिपाही बेटे की दंगों में शहीद होने की खबर सुनते ही मां का ह्रदय दर्द से भर गया था. अभी तो उसके सेहरा बंधने की आस लगाये यह मां का ह्रदय खुशी से भर जाता था. शव आते ही चारों ओर भारत माता के जयकारें से गगन गूंज उठा. मां ने आगे बढ़कर हमेशा के लिए चैन से सोये बेटे के चेहरे को चूम लिया और जयहिंद कहकर सलाम करते हुए ह्रदय से कहा - अब कभी कमजोर न पड़ना मेरा बेटा मरा नहीं है अमर हो गया. '
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

सफलता - लघुकथा

सफलता - लघुकथा
आज तीसरे प्रयास में राहुल ने आखिर यूपीएससी की परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ही ली. परिणाम देखते ही दिवंगत पिता की स्मृति से उसकी आंखों में आंसू भर आये. उसकी स्मृतियों में गूंज उठे वह स्वर जब पहली बार परीक्षा में साक्षात्कार में सफल न होने पर कैंसर से पीड़ित उसके पिता जी ने अंतिम सांसें लेते हुए उससे कहा था कि - राहुल जीवन से अधिक मूल्यवान कुछ नहीं. हर नई सुबह नयी आशा के साथ सूर्य उदित होता है. परीक्षा में सफलता बहुत छोटा उद्देश्य है जीवन का. जीवन का वास्तविक उद्देश्य है इस संसार में व्याप्त पीड़ाओं को यथासंभव कम करने में सहयोग करना. किसी के दुखमय जीवन में एक ही सही पर मुस्कान भरना. निराशा का तो सवाल ही नहीं उठता किसी को खुश करने में. ' कुछ दिन बाद राहुल के पिताजी का तो देहावसान हो गया किंतु उनकी दी हुई सीख ने राहुल में अदम्य आत्मशक्ति का संचरण कर दिया जिसने अंततः उसे जीवन की सफलता की ओर अग्रसर कर दिया.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

रविवार, 23 फ़रवरी 2020

स्त्री - लघुकथा

स्त्री - लघुकथा
घर की सफाई, कपड़ों की सफाई, बर्तनों की सफाई निपटाकर सुनैना बराबर के घर में रहने वाले पंडित जी की हमउम्र बेटी साधना के पास नोट्स लेने पहुंची तो कानों में पंडित जी के उबलते तेल जैसे कटु वचन पड़े. पंडित जी साधना को लताड़ते हुए कह रहे थे - लक्ष्मी जी की कोठरी में क्यों घुसी तुम रजस्वला होते हुए? पहले से बताया है न तुम्हें मैंने और तुम्हारी मां ने कि स्त्री गंदी होती है इन दिनों में. अब गंगा जल से शुद्धि करनी होगी. ' सुनैना उल्टे पैर लौट आई और मन ही मन सोचने लगी ये पुरूष हमेशा पवित्र होते हैं और स्त्री गंदी फिर देवियों को क्यों पूजते हैं? वे भी तो स्त्री ही हैं.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

मित्र - लघुकथा

मित्र - लघुकथा
सदन ने सूरज को कई बार कॉल लगाई पर वह उठा ही नहीं रहा था. तंग आकर सदन ने मैसेज किया कि - कल को डॉक्टर के यहां चलना है तबीयत खराब है मेरी. ' मैसेज का भी जवाब नहीं आया तब सदन को बड़ी निराशा हुई. आधे घंटे बाद उसके गेट पर एक कार आकर रूकी. सदन ने देखा उसमें से सूरज उतर कर आ रहा था. शाम के सात बजे सूरज को अपने घर पर आया हुआ देखकर सदन आश्चर्यचकित रह गया. सूरज ने तेजी के साथ आकर सदन को गले लगाते हुए कहा - क्या हुआ तेरी तबीयत को? चल अभी चल. ' सदन थोड़ा सकुचाये हुए स्वर में बोला - पर यह समय तो तेरे ऑफिस से घर लौटने का है. पत्नी बच्चे इंतजार कर रहे होंगें. कल जल्दी निकल लेंगे. बस बैक में पेन हैं.' सूरज सदन की स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही से भलीभांति परिचित था. वह मुस्कुराता हुआ बोला - पत्नी बच्चों को बोल चुका हूं थोड़ी देर से पहुंच पाऊंगा, आखिर हर रिश्ते की तरह मित्र का रिश्ता भी कम महत्वपूर्ण नहीं होता और बहाने बनाना बंद करो.' सूरज के यह कहते ही सदन ने उसे कसकर गले से लगा लिया.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

स्वतंत्रता - लघुकथा

स्वतंत्रता - लघुकथा
सोनाक्षी के क्लिनिक में बेटी के इलाज के लिए पहुंची मीरा उसे बधाई देती हुई बोली - मुबारक हो सोना तुम डॉक्टर बनकर प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही हो. आठवीं क्लास तक हम दोनों साथ पढ़े थे. तब तुम्हें देखकर कोई नहीं कह सकता था कि तुम्हारे भीतर इतनी प्रतिभा छिपी है. हम सब फैशन के कपड़े , जूते , बैग्स लाते और तुम दो चोटी बांध कर सलवार सूट में आती. हम समझते तुम्हारे पैरेंट्स संकुचित विचारधारा के हैं पर आज तुम्हें यहां तुम्हारे क्लीनिक पर डॉक्टर के रूप में कार्यरत देखकर समझ में आया कि उन्होंने तुम्हें न केवल उड़ने की स्वतंत्रता दी बल्कि उचित दिशा हेतु मार्गदर्शन भी किया. ' मीरा की यह बात सुनकर सोनाक्षी मुस्कुरा दी और उसकी दो साल की बिटिया को गोद में उठाती हुई बोली - अब हमें इस चिड़िया को भी सही दिशा में उड़ने के लिए पंख लगाने हैं.' यह कहकर सोनाक्षी उसके चैकअप की तैयारी में लग गई.
_डॉ शिखा कौशिक नूतन

आत्मा - लघुकथा

आत्मा - लघुकथा
पंडित जी प्रवचन दे रहे थे. स्त्रियों को लक्ष्य कर जब उन्होंने कहा कि - रजस्वला स्त्री यदि भोजन बनाये तो अगले जन्म में कुतिया बनती है. "उनकी इस बात पर सभी स्त्रियां भयभीत होकर एक दूसरे का मुख देखने लगी तभी सोलह वर्षीय हीमा खड़े होकर अत्यंत व्यंग्यपूर्ण स्वर में हाथ जोड़कर बोली - पंडित जी हो सकता है आप सही कह रहे हो हमारे समाज में एक स्त्री की स्थिति कुतिया से बेहतर ही कहां है? बलात्कार, दहेज हत्या जैसे अपराधों को झेलने वाली औरत को कोई भी देह, योनि मिल जाये पर उसकी आत्मा को तो छलनी होना ही है. "यह कहकर वह वहां से जैसे ही चली, सभी स्त्रियां उसके पीछे हो ली.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

धोखा - लघुकथा

धोखा - लघुकथा
 सरोजा के लिए यह एक सदमे से कम नहीं था कि उसके जीवन साथी राहुल ने आज उसके चरित्र को लेकर ही ऊंगली उठा दी थी. कॉलेज में प्रवक्ता अंग्रेजी के पद पर कार्यरत सरोजा यह सोच भी नहीं सकती थी कि पति पत्नी के बीच विश्वास की दीवार इतनी कमजोर होती है, जो किसी अन्य पुरुष से बातचीत करती पत्नी को देखते ही टूटकर गिर जाती है. सरोजा यह सब सोचते सोचते रसोई घर से बाहर आई और आंखों में आये आंसू पोंछते हुए राहुल से भर्राये हुए स्वर में बोली - राहुल तुमने जो मुझ पर आरोप लगाये हैं, उनपर सफाई देकर मैं अपनी गरिमा, अपने भीतर बैठी सच्चाई को धोखा नहीं दे सकती. आज से हमारे रास्ते भले ही अलग हो जायें. " राहुल सरोजा की बात सुनकर हड़बड़ाहट के साथ खड़ा हुआ और उसे गले से लगा लिया.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन