फ़ॉलोअर

मंगलवार, 3 मार्च 2020

नदी - लघुकथा

नदी - लघुकथा
 जब भी उदास होता रघु नदी किनारे जाकर बैठ जाता. कभी मां की तरह उसकी शीतल जलधारा दुख के ताप हर लेती . कभी बड़ी बहन सी कलकल करती मीठी बोली में सांत्वना सी देती. कभी भाभी बनकर चंचल लहरों के रूप में रघु को देवर की तरह छेड़ते हुए उछलती बूंदें चेहरा भिगा जाती और जब भी आंखों से छिटककर आंसू नदी के जल में समा जाते तब रघु को नदी अपनी प्रेयसी प्रतीत होती जिसके नीले स्वच्छ जल रूपी दर्पण में अपना उदास चेहरा देखकर वह मुस्कुरा देता.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

रविवार, 1 मार्च 2020

विद्यालय - लघुकथा

विद्यालय - लघुकथा
उस चारदीवारी से घिरी बिल्डिंग को मैंने विद्यालय का दर्जा कभी नहीं दिया. मेरे लिए तो मेरे प्रिय अध्यापक रामदेव जी ही विद्यालय के पर्याय थे. वे किसी वृक्ष के नीचे बैठाकर पढ़ा देते तो वही वृक्ष मेरा विद्यालय हो जाता. उनके सेवानिवृत्त होने के समय मैं ग्यारहवीं का छात्र था
. एक वर्ष में मैंने ईट - सीमेंट की उस बिल्डिंग को बिल्कुल वैसा ही पाया था जैसे आत्मा के बिना देह. सच्चाई यही है कि अच्छे अध्यापक ही विद्यालय का सजीव रूप हैं.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन