शहर में बलात्कार -आरोपियों को कड़ी सजा दिलाने हेतु उग्र आन्दोलन चल रहा था .युवक-युवतियां पूरे जोश व् गुस्से में अपनी भावनाओं का इज़हार कर रहे थे .सिमरन भी अपनी सहेलियों के साथ इस गुस्साई भीड़ का हिस्सा थी .दिन भरे चले आन्दोलन के बाद सिमरन रेखा व् पूनम के साथ एक ऑटो पकड़कर अपने घर को रवाना हो गयी .ऑटो ने उन तीनों को एक चौराहे पर उतार दिया जहाँ से तीनों अपने घर को पैदल ही चल दी .सिमरन का घर थोड़ी ही दूर रह गया था तभी पीछे से एक बाइक जिस पर तीन युवक सवार थे तेज़ हॉर्न बजाती हुई उसके पास से इतनी तेज़ी से निकली कि एक बार को तो सिमरन घबरा ही गयी .सिमरन दो कदम ही बमुश्किल चल पाई थी कि वो बाइक मुड़कर सामने से आती हुई फिर दिखाई दी .इस बार उसकी रफ़्तार सामान्य से भी धीमी थी .उस पर सवार तीनों युवकों ने सिमरन के पास से गुजरते हुए उस पर फब्तियां कसी -''.....ए झाँसी की रानी ........आती क्या खंडाला .......हाय सैक्सी '' सिमरन उनके चेहरे देखकर ठिठक गयी .सिमरन उन्हें पलट कर कोई जवाब देती उससे पहले ही वे बाइक की रफ़्तार बढाकर फुर्र हो गए .घर तक पहुँचते पहुँचते सिमरन को आखिर याद आ ही गया कि ये तीनों चेहरे उसे इतने जाने पहचाने क्यों लगे !! दरअसल ये तीनों आज के आन्दोलन में सबसे उग्र प्रदर्शनकारी थे .सिमरन के होठों पर एक फींकी व्यंग्यमयी मुस्कान तैर गयी और मन में उथल-पुथल '...क्या यही है पुरुष जोअन्य पुरुषों द्वारा प्रताड़ित स्त्री के लिए तो न्याय मांगता है और खुद किसी स्त्री को प्रताड़ित करने में आनद की अनुभूति करता है ..''
शिखा कौशिक 'नूतन'
11 टिप्पणियां:
शानदार लेखन, बधाई !!!
you are invited to follow my blog
ना जाने कितने लोग भीड़ में दोहरे चरित्र का नकाब चढाये घूम रहे है,,,
recent post : समाधान समस्याओं का,
आन्दोलन का यह भी एक रूप है
यही दोहरापन आज के आदमी पर सवार है.कहने में कुछ और करने में कुछ - नाम बड़े-बड़े रख लेते हैं और जो करते हैं कभी सामने गया है तो एक से एक बहाना मौजू -.हर क्षेत्र में!
ओसे लोग हर जगह मिलते हैं ... पर हिम्मत नहीं हारनी चाहिए ...
दिगंबर जी ने सच कहा कि ऐसे लोगों का हिम्मत से सामना करने पर ही ऐसे लोगों को नजीर मिलेगी। संवेदनशील लघुकथा
बहुत ही सटीक लिखा है आपने। आडंबर बंद करना होगा
Gajab
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