उचित निर्णय -कहानी
'' ....आज पूरे पांच वर्ष हो गए अन्नपूर्णा से न मिले लेकिन ह्रदय आज जितना व्याकुल हो रहा है उतना पिछले पांच वर्षों में कभी नहीं हुआ | अन्नपूर्णा तो और लोग कहते थे ...मेरे लिए तो केवल ' अन्नू ' थी वह -------मेरी प्रियेसी , मेरी दोस्त ----मेरा सर्वस्व | आज भी याद है मुझे हम दोनों की वह अंतिम भेंट ---जब मैं अपने घर से निकलकर कार में बैठ रहा था और उसने मुस्कुराते हुए दूर चौराहे से हाथ हिलाया था | जब पंद्रह दिन बाद नेपाल यात्रा से वापस लौट कर आया पता नहीं मेरी अन्नू कहीं चली गई थी | फोन मिलाया तो उसके पिता जी ने यह कहकर झटक कर रख दिया कि -' तुम अमीर लड़कों को हमारी मिडिल क्लास लड़कियां ही मिलती हैं दिल बहलाने के लिए ! ख़बरदार जो यहाँ फिर फोन किया | शायद उन्हें मेरे और अन्नू के प्रेम-सम्बन्ध का पता चल गया था | हमारी कोठी से कुछ दूर किराये पर रहने वाले बैंककर्मी आनंद जी की इकलौती बेटी थी अन्नू | देखने में बेहद खूबसूरत और गुणों में उससे भी बढ़कर पर मुझे तो उसकी सादगी पसंद थी | वो गंभीर स्वभाव की जब कभी मुस्कुरा देती मानों गुलाब खिल उठते पर ----ये सब सोचने से क्या फायदा ---उसके पिता जी ने इस प्रकरण के बाद अपना स्थानांतरण किसी और शहर में करा लिया था ,जो बहुत कोशिश के बाद भी मैं पता न कर पाया अन्यथा एक बार अपने सच्चे प्रेम के भाव से उन्हें अवगत अवश्य करने का प्रयास करता |
आज पांच वर्ष बाद व्याकुल होने का कारण एक तो यही था कि अब अन्नू से इस जन्म में मिल पाने की हर आशा समाप्त हो चुकी थी और दूसरी ओर मम्मी-पापा काफी जोर दे रहे थे कि अब मैं शादी कर ही लूँ .आखिर एकलौते बेटे को लेकर उनके भी तो कुछ अरमान रहे होंगें ? बिजनेस की आड़ ले -लेकर तीन साल से टालता रहा हूँ पर खुद से पूछता हूँ क्यों ? क्या अन्नू के लिए ----अब इस मृगमरीचिका से बाहर आना ही होगा | ये मन ही मन निश्चय कर कल रात मम्मी द्वारा दिखाए गए एक लड़की के फोटो को देखकर मैंने हामी भर दी | कल को मम्मी-पापा के साथ जाना है उसे देखने उसके घर --- ये सब सोचते-सोचते मैं कब सो गया कुछ जान न पाया |
आज सुबह मम्मी ने मुझे और पापा को नाश्ते पर ही सख्त हिदायत दे दी कि -'' सही समय से लौट आना घर ---आज लड़की देखने जाना है |'' हमने हामी भर दी | सांय चार बजे मैं व् पापा ऑफिस से लौट आये | पापा की तबियत कुछ ढीली थी अतः मैं और माँ ही तैयार होकर अपनी कार से रवाना हो लिए | हमारी मंज़िल कुछ बीस किलोमीटर दूर थी | करीब पचास मिनिट में हम वहां सकुशल पहुँच गए | लड़की के पिता और भाई बंगले के बाहर लॉन में ही बैठे थे ----शायद हमारा ही इंतज़ार कर रहे थे |हमारी कार को अपने बंगले के आगे रुकता देखकर वे हमारा स्वागत करने हेतु हमारे समीप आ पहुंचे और अत्यंत शिष्टता के साथ हमें अंदर ड्राइंग रूम की ओर ले चले | मैं मम्मी के पीछे सिर झुकार अत्यंत संकोच के साथ चल रहा था | मम्मी काफी व्यावहारिक हैं पर मुझे तो बहुत झिझक हो रही थी | हम ड्राइंग रूम में जाकर विराजे | थोड़ी देर में लड़की को लेकर उसकी भाभी ने प्रवेश किया | लड़की की माता जी का कुछ वर्ष पूर्व निधन हो चुका था | मुझमें इतना भी साहस नहीं था कि मैं एक बार आँख उठाकर लड़की की ओर देख लूँ | तभी लड़की की भाभी की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया जो हम से कुछ मिठाई लेने की विनती कर रही थी | मेरी आँखें एकाएक उठ गयी | साक्षात् लक्ष्मीस्वरूपा मेरी अन्नपूर्णा !! मन में तूफ़ान उमड़ पड़ा -'' मेरी अन्नू पराई हो चुकी है |'' किसी तरह स्वयं को संयमित किया | अन्नू ने कुछ विवशता से युक्त दृष्टि से मुझे निहारा और फिर कुछ बहाना बनाकर अंदर चली गयी | माँ मेरे होने वाले ससुर जी से उनकी बहू की तारीफ करती हुई बोली -'' बहू तो बहुत सुन्दर व् शालीन लाएं हैं आप | '' वे मुस्कुराते हुए बोले -'' मेरे मित्र हैं बहू के पिता | हमने बिना दहेज़ के ये विवाह किया है ----बहू वास्तव में सर्वगुणसम्पन्न है |'' न जाने मुझे क्या होने लगा ? मैं एकाएक सोफे से उठकर खड़ा हो गया | मम्मी ने पूछा -'' क्या हुआ अभिषेक ? '' मैं बहाना बनाता हुआ बोला -'' कुछ नहीं मम्मी ----शायद पर्स कार में रह गया है ---मैं अभी लेकर आता हूँ |''ये कहकर मैं वहां से निकल लिया | करीब पंद्रह मिनिट तक काफी सोच-विचार कर , अपने को नियंत्रित कर मैं वापस पहुंचा | लड़की वास्तव में योग्य व् सुन्दर थी | काफी वार्तालाप के बाद रात नौ बजे हम वापस चल दिए | मम्मी उस लड़की की तारीफ किये जा रही थी लेकिन मेरे दिल व् दिमाग में केवल अन्नू थी | माँ ने अगले दिन सुबह नाश्ते पर पूछा -'' क्यों अभिषेक पसंद आयी लड़की ? '' मैं रूखा उत्तर देते हुए बोलै -'' नहीं माँ ----मुझे पसंद नहीं आयी ---कहीं और बात चलाईये |'' बहुत तरह से बातें बनाकर मैंने माँ को संतुष्ट किया लेकिन मेरा दिल जनता था कि मैंने ऐसा क्यों किया ? मैंने ऐसा केवल इसीलिए किया था कि यदि इसी तरह अन्नू मेरे सामने आती रही तो मैं अपने पर नियंत्रण नहीं रख पाउँगा और अब यह न तो मेरे हित में है और न ही अन्नू के |
डॉ शिखा कौशिक 'नूतन'
1 टिप्पणी:
वो अफ़साना जिसे अन्जाम तक लाना न हो मुमकिन...👍
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