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सोमवार, 10 अगस्त 2020

स्मृति के योग्य - लघुकथा

एक सामयिक लघुकथा

नगर के मुख्य मार्ग पर बनी दीवार के सामने दो युवक बुरी तरह लड़ रहे थे. काफी भीड़ इकट्ठा हो गयी थी. वहां से गुजरते नगराध्यक्ष ने यह नज़ारा देखा तो वे रूक गये. उन्होंने दोनों युवकों को लड़ने से रोकते हुए पूछा - भाईयों क्यों आपस में कलह कर रहे हो? पहला युवक बोला - महोदय   इस दीवार पर हम अपने अपने पिताजी की स्मृति ताजा रखने के लिए उनका नाम अंकित करने को लेकर  झगड़ रहे हैं कि कौन इसका अधिकारी है? "नगराध्यक्ष महोदय सहजता के साथ दोनों को समझाते हुए बोले -" बस इतनी सी बात! अरे भाई जिसके पिताजी दौलत वाले रहे हों ; वह ही अपने पिताजी का नाम दीवार पर अंकित कर दे. दौलत वाले ही स्मृति में रखने के योग्य होते हैं. "यह कहकर नगराध्यक्ष महोदय वहां से चल दिये और इकट्ठा हुई भीड़ उनके न्याय की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगी. - डॉ शिखा कौशिक नूतन

7 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी प्रेरक लघु कथा

radha tiwari( radhegopal) ने कहा…

बहुत खूब

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुंदर।

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

वाह 👌

Ankityadav ने कहा…

bhut hi badiya post likhi hai aapne. Ankit Badigar Ki Traf se Dhanyvad.

आतिश ने कहा…

कथा लघु किन्तु भावपूर्ण गहरी ।
बहुत सुन्दर !

radha tiwari( radhegopal) ने कहा…

प्रेरक लघुकथा