आठ साल की प्रिया अपनी सहेली के घर खेलने गयी हुई थी .जब शाम ज्यादा हो गयी तब सुनीता को प्रिया की चिंता सताने लगी .सुनीता ने बाल ठीक किये और घर का ताला लगा रीना के घर की ओर चल दी .एक एक कदम रखते हुए बस यही ख्याल सता रहा था कि -''मेरी बिटिया के साथ कुछ गलत न हो जाये !.....प्रिया बता रही थी कि रीना कि मम्मी बाहर सर्विस करती हैं ..यहाँ केवल रीना व् उसके पापा रहते हैं ....आदमियों का क्या भरोसा ?...मैं भी कितनी पागल हूँ प्रिया को जाने दिया ...हे देवी मैय्या ! मेरी बिटिया की रक्षा करना !कहीं रीना के घर से लौटते हुए कुछ न हो गया हो ....प्रिया आज सही सलामत मिल जाये ...बस आगे से उसे इतनी देर के लिए ऐसी जगह नहीं जाने दूँगी "'ये सोचते सोचते सुनीता ने कस कर अपनी मुठ्ठी भींच ली ..तभी उसे सामने से प्रिया.. रीना व् रीना के पापा आते दिखाई दिए .प्रिया को देखकर सुनुता की जान में जान आ गयी .सुनीता ने रीना के पापा का शुक्रिया अदा किया .वे वही से लौट गए .सुनीता ने घर पहुंचकर प्रिया के गाल पर तमाचा जड़ दिया और उसे डांटते हुए बोली ''....कोई जरूरत नहीं है किसी के घर जाने की ...लड़कियों का घर से बाहर ज्यादा घूमना ठीक नहीं ...''सुनीता ने यह कहते हुए ही प्रिया को बांहों में भर लिया और मन में सोचा -'''एक बेटी की माँ को ऐसा ही बनना पड़ता है !''
3 टिप्पणियां:
ये दिन भी बदलेंगे।
'एक बेटी की माँ को ऐसा ही बनना पड़ता है !''
बेहतरीन आलेख,.....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
man ko gahre tak chhoo gayi.aur hame nahi lagta ki ye din kabhi bhi ja payenge.
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