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शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

जंगल - लघुकथा

शहर में एक तनावपूर्ण चुप्पी थी. ऑफिस से लौटते समय समर इस स्थिति को भांप चुका था. बस स्टैंड पर शाम के सात बजे अकेला ही खड़ा वह बस का इंतजार करने लगा. दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था आज जबकि सामान्य दिनों में भारी भीड़ का साम्राज्य रहता था वहां. तभी उसे तीन चार बाइकों पर सवार हथियार लहराते युवक अपनी ओर आते दिखाई दिये, जो पास आते ही इंसान से भेड़ियों में तब्दील हो गये. उन्होंने उसका नाम पूछा, पैंट उतरवाई और उस पर हमला बोल दिया. मारपीट व लूटपाट कर वे भेड़िये फरार हो गए और खून से लथपथ जमीन पर पड़े समर को लगा जैसे सारा शहर जंगल हो गया है.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन 

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