फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

पृथ्वी - लघुकथा

पृथ्वी - लघुकथा

मां की गोद में सिर रखते ही मानों जन्नत का सुकून दिल में उतर आता. दादी के उलाहने चुपचाप सुनती हुई, उनकी सेवा में लगी रहने वाली मां की धीरता भी विस्मय में डाल देती. पिता जी कभी झिड़क देते तो मन ही मन क्षोभ से कंपकंपाती मां को देखकर मैं भी हिल जाता . मां मानों पृथ्वी का मानवी रूप थी. पृथ्वी की भांति ममता से परिपूर्ण , धीरता की मिसाल और जलजले से कांपती पृथ्वी.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

कोई टिप्पणी नहीं: