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शुक्रवार, 17 मई 2013

कर्म -एक लघु कथा

कर्म -एक लघु कथा 

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स्वामी जी के चरणों में सिर झुकाए पांडे दंपत्ति को स्वामी जी आशीर्वाद देते हुए बोले -''आनंद से रहो !'' आशीर्वाद सुन सुरेश और कविता दोनों के नेत्र भर आये .तीन माह पूर्व ही तो दोनों ने अपने इकलौते पुत्र अर्णव को एक सड़क हादसे में खो दिया था .स्वामी जी ने दोनों को आसन ग्रहण करने का इशारा किया .दोनों के आसन ग्रहण करते ही स्वामी जी गंभीर वाणी में बोले -'' सुरेश हम कर्म करते समय उसके परिणाम पर विचार नहीं करते .कभी-कभी हम ऐसा कर्म कर बैठते हैं कि हमें जन्म-जन्मान्तर तक उसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है .पूर्व जन्म में तुमने एक बार द्वेष वश अपने पडोसी के खेत में पकी फसल को आग लगा दी थी और तुम्हारे  इस कर्म में तुम्हारे पूर्व जन्म की भार्या कविता ने भी तुम्हारा पूर्ण सहयोग किया था .उसी दुष्कर्म का ये परिणाम हुआ कि तुम्हे जवान पुत्र की आकस्मिक मृत्यु का यह भीषण दुःख भोगना पड़ रहा है  .क्योंकि खेत में पकी -खड़ी फसल उस खेत के स्वामी के लिए जवान पुत्र की भांति आशाओं-मेहनत का सुफल होती है .इसलिए आज से तुम दोनों   निश्चय कर लो कि आज के बाद बहुत विचारकर ही कोई कर्म सम्पादित करोगे .....ॐ शांति ...ॐ शांति !!'' यह कहकर स्वामी जी द्वारा वाणी को विश्राम दिए जाने पर पांडे दंपत्ति उन्हें प्रणाम कर विदा लेकर सद्कर्म का ह्रदय में निश्चय कर आश्रम से अपने घर के लिए रवाना हो गए .

शिखा कौशिक 'नूतन '

3 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सुन्दर .मन को छू गयी आपकी कहानी .आभार . ये गाँधी के सपनों का भारत नहीं .

nayee dunia ने कहा…

स्वामी जी ने सही कहा ........

Ramakant Singh ने कहा…

आपने एक श्लोक की याद दिला जी जिसका अर्थ है
सौ कुओं के बराबर एक तालाब, और सौ तालाब के बराबर एक पुत्र
और सौ पुत्रों के बराबर एक वृक्ष मन जाता है
बहुत सुन्दर अनुकरणीय कहानी **********