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शनिवार, 31 मई 2014

''प्रेम ...जाल !!''-लघु कथा

Teen girl posing with arms crossed, wearing white t-shirt, looking at camera. Isolated on white background. stock photography
''पापा ...वैभव  बहुत अच्छा है ...मैं उससे ही शादी करूंगी ....वरना !! ' अग्रवाल साहब नेहा के ये शब्द सुनकर एक घडी को तो सन्न रह गए .फिर  सामान्य  होते  हुए  बोले  -' ठीक है पर पहले मैं तुम्हारे साथ मिलकर उसकी परीक्षा लेना चाहता हूँ तभी होगा तुम्हारा विवाह वैभव से ...कहो मंज़ूर है ?'नेहा चहकते हुए बोली -''हाँ   मंज़ूर है मुझे ..वैभव से अच्छा जीवन साथी कोई हो ही नहीं सकता .वो हर परीक्षा में सफल होगा ....आप नहीं जानते पापा वैभव को !'  अगले दिन कॉलेज में नेहा जब वैभव से मिली तो उसका मुंह लटका हुआ था .वैभव मुस्कुराते हुए बोला -'क्या बात है स्वीट हार्ट ...इतना उदास क्यों हो ....तुम मुस्कुरा दो वरना मैं अपनी जान दे दूंगा .''  नेहा झुंझलाते हुए बोली -'वैभव मजाक छोडो ....पापा ने हमारे विवाह के लिए इंकार कर दिया है ...अब क्या होगा ? वैभव हवा में बात उडाता हुआ बोला -''होगा क्या ...हम घर से भाग जायेंगे और कोर्ट मैरिज कर वापस आ जायेंगें .'' नेहा उसे बीच में टोकते हुए बोली -''...पर इस सबके लिए तो पैसों की जरूरत होगी .क्या तुम मैनेज  कर लोगे ?'' ''......ओह बस यही दिक्कत है ...मैं तुम्हारे लिए  जान दे सकता हूँ पर इस वक्त मेरे पास पैसे नहीं ...हो सकता है घर से भागने के बाद हमें कही होटल में छिपकर रहना पड़े तुम ऐसा करो .तुम्हारे पास और तुम्हारे घर में जो कुछ भी चाँदी -सोना-नकदी तुम्हारे हाथ लगे तुम ले आना ...वैसे मैं भी कोशिश करूंगा   ...कल को तुम घर से कहकर आना कि तुम कॉलेज जा  रही हो और यहाँ से हम  फरार हो जायेंगे ...सपनों को सच करने के लिए !'' नेहा भोली बनते हुए बोली -''पर इससे तो मेरी व् मेरे परिवार    की बहुत बदनामी होगी '' वैभव लापरवाही के साथ बोला -''बदनामी .....वो तो होती रहती है ...तुम इसकी परवाह ..'' वैभव इससे आगे  कुछ कहता उससे पूर्व ही नेहा ने उसके गाल पर जोरदार तमाचा रसीद कर दिया .नेहा भड़कते हुयी बोली -''हर बात पर जान देने को तैयार बदतमीज़ तुझे ये तक परवाह नहीं जिससे तू प्यार करता है उसकी और उसके परिवार की  समाज में बदनामी  हो ....प्रेम का दावा करता है ....बदतमीज़ ये जान ले कि मैं वो अंधी प्रेमिका नहीं जो पिता की इज्ज़त की धज्जियाँ उड़ा कर ऐय्याशी   करती फिरूं .कौन से सपने सच हो जायेंगे ....जब मेरे भाग जाने पर मेरे पिता जहर खाकर प्राण दे देंगें !मैं अपने पिता की इज्ज़त नीलाम कर तेरे साथ भाग जाऊँगी तो समाज में और ससुराल में मेरी बड़ी इज्ज़त होगी ...वे अपने सिर माथे पर बैठायेंगें  ....और सपनों की दुनिया इस समाज से कहीं इतर होगी ...हमें रहना तो इसी समाज में हैं ...घर  से भागकर क्या आसमान में रहेंगें ?है कोई जवाब तेरे पास ?....पीछे से ताली की आवाज सुनकर वैभव ने मुड़कर देखा तो पहचान न पाया .नेहा दौड़कर  उनके पास  चली  गयी  और आंसू  पोछते  हुए बोली  -'पापा आप  ठीक  कह  रहे  थे  ये प्रेम  नहीं  केवल  जाल  है जिसमे फंसकर मुझ जैसी हजारों लड़कियां अपना जीवन बर्बाद कर डालती हैं  !!''
शिखा कौशिक 'नूतन '

शुक्रवार, 30 मई 2014

कहानी : पापा मैं फिर आ गया


'' पापा मैं फिर आ गया '-कहानी (शिखा कौशिक )


 कहानी : पापा मैं फिर आ गया

मीनाक्षी और मुकेश की आँखों से कोर्ट  का फैसला  सुनते  ही आंसुओं का सैलाब बह निकला .पिछले दो साल से अपने प्रियांशु के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए दोनों ने दिन रात एक कर दिए थे .आज जाकर दिल को ठंडक पहुंची तो आँखों से आंसू बह निकले .मीनाक्षी को धैर्य बंधाते हुए मुकेश बोला -''मैं न कहता था  मीना इस हत्यारे को फांसी की सजा जरूर मिलेगी !''मीनाक्षी ने मुकेश की ओर देखते हुए ''हाँ '' में गर्दन हिला दी .मुकेश का दिल चाह रहा था उस बत्तीस साल के नाटे व्यक्ति को जाकर पुलिस से छुड़ा इतना मारे कि वह खून से लथपथ हो जाये किन्तु मन ही मन उसने इस आक्रोश को दबाया और मीनाक्षी ,बाबू जी व् माँ के साथ कोर्ट से निकल अपनी कार की ओर कदम बढ़ा दिए .कार का गेट खोलकर मुकेश खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया .मीनाक्षी व् माँ पिछली सीट पर व् बाबू जी मुकेश के बराबर वाली सीट पर बैठ गए .सब के बैठ  जाने पर मुकेश ने कार स्टार्ट की और दाई ओर मोड़कर मेन  रोड पर कार को दौड़ा दिया .मुकेश की आँखों के सामने प्रियांशु का मुस्कुराता हुआ चेहरा  घूमने लगा ओर कानों में उसकी खिलखिलाहट गूंजने लगी .मुकेश ने एकाएक कार के ब्रेक लगाये क्योंकि कार एक घोड़ागाड़ी से टकराते टकराते बची . बाबू जी बोले -''मुकेश लाओ मैं ड्राइव करता हूँ ..लगता है तुम ड्राइविंग एकाग्रचित्त होकर नहीं कार  पा रहे हो .' मुकेश ने तुरंत ड्राइविंग सीट छोड़ दी .बाबू जी ड्राइविंग सीट पर आ गए ओर मुकेश उनके बराबर में बैठ गया .माँ बोली -' मुकेश पुरानी बातों को भुलाने की कोशिश करो .तुम ऐसे अनमने रहोगे तो मेरी बहू को कौन संभालेगा ...जानते हो ना ये फिर से माँ बनने वाली है .ऐसे में इसका ध्यान रखा करो .मैं ओर तुम्हारे बाबू जी मीना को खुश देखना चाहते हैं .भगवान ने चाहा तो फिर से हमारे घर में बच्चे की किलकारी गूंजेगी !'माँ की बातों ने मनोज व् मीनाक्षी के दुखी  ह्रदय को बहुत सांत्वना दी . घर पहुंचकर माँ व् मीनाक्षी रसोईघर में चली गयी और मुकेश व् बाबू जी लॉन में पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए .बाबू जी बोले -' मुकेश बेटा कहते हैं ना भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है .प्रियांशु के हत्यारे को मौत की सजा मिलना इसका प्रमाण है .चार साल के मासूम बच्चे को इतनी निर्ममता से मारने वाले के लिए  यदि फांसी से ज्यादा भी कोई सजा होती तो वह दी जानी चाहिए थी .''मुकेश की आँखे नम हो उठी .बाबू जी ने उसके कंधे पर हाथ कसते हुए कहा '....लेकिन मुकेश मीना के सामने इन बातों को मत दोहराओ ...जरा सोचो उसकी ममता कितनी आहत हुई है और इस समय वह प्रेग्नेंट भी है .अपने पर संयम रखो ..'मुकेश ने सहमति में सिर हिला दिया .बाबू जी फ्रेश होने के लिए अन्दर चले गए तो मुकेश की आँखों के सामने उस मनहूस दिन की एक एक तस्वीर घूमने लगी .वो उस दिन अपने ऑफिस में लंच कर रहा था कि उसका मोबाइल बज उठा .कॉल रिसीव करते ही मीनाक्षी की घबराई हुई आवाज़ उसके कानों से टकराई .भोजन बीच में ही छोड़कर वह अपनी जगह पर खड़ा हो गया .उसके सहकर्मी शिरीष ,संगीता व् उत्तम भी भोजन छोड़कर उसकी ओर देखने लगे .मीनाक्षी घबराई हुई कह रही थी ''.....हेलो ...हेलो ...'' मुकेश ने खुद को सँभालते हुए मीनाक्षी से पूछा था -'...मीना ...मीना क्या बात है ?? इतनी घबराई हुई क्यों हो ?'' मीनाक्षी ने लगभग रोते हुए कहा था '...दीपक का फोन आया था उसने प्रियांशु का अपहरण कर लिया है और शाम तक पचास  लाख रूपये की डिमांड की है ...नहीं तो वो हमारे प्रियांशु को  .....!!!'इसके आगे मीनाक्षी बोल तक नहीं पायी थी ..उसका गला रूंध गया था .मुकेश ने मीनाक्षी को धैर्य बंधाते बस इतना कहा था -''....मीना चिंता मत करो ...मैं घर आ रहा हूँ .''यह कहकर फोन बंद कर मुकेश कुर्सी पर निढाल होकर बैठ गया था.  दोनों हाथों से सिर पकडे मुकेश की आँखों में आंसू  छलक आये थे .फोन पर उसकी बातों से सहज ही किसी अनिष्ट का अनुमान लगा संगीता बोली थी -'मुकेश क्या हुआ ?अनिथिंग सीरियस ?शिरीष व् उत्तम भी उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले थे -''मुकेश क्या बात है ?'' मुकेश ने रूंधे गले से किसी प्रकार बोलते हुए कहा था ''....मेरे नौकर ने मेरे बेटे का अपहरण कर लिया है और पचास  लाख रूपये देने पर छोड़ने की बात कही है पर मैं इतने पैसों का इंतजाम इतनी जल्दी कहाँ से करूंगा ..कैसे करूंगा ??''शिरीष बोला -''तुम पुलिस की मदद लो .ऐसा करो तुम घर जाओ और मैं व् उत्तम पुलिस से बात करते हैं ...चिंता मत करो ...सब ठीक हो जायेगा ..''मुकेश कार से घर के लिए रवाना हो गया .संगीता भी उसके साथ हो ली .लगभग सवा दो बजे दोपहर में वे घर पहुंचे .मीनाक्षी का रो-रोकर बुरा हाल था .मुकेश को देखते ही उसकी रही -सही शक्ति भी जवाब दे गयी . वो  मुकेश का हाथ पकड़ते हुए बोली  'मेरे प्रियांशु को बचा लो  ..वो  बहुत  खतरनाक है ..उसने फोन पर प्रियांशु के रोने की आवाज़ भी सुनाई है ..'  प्रियांशु का नाम आते ही मुकेश भी फिर से भावुक हो गया .संगीता ने दोनों को हिम्मत बंधाई .करीब पांच बजे फोन की घंटी फिर से बजते ही मीनाक्षी ; मुकेश और संगीता के दिलो की धड़कन बढ़ गयी .मुकेश ने घर के लैंड लाइन का रिसीवर कान से लगाया तो प्रियांशु की प्यारी सी आवाज़ कान से टकराई -''पापा..मम्मी ...मुझे बचा लो ..ये अंकल मुझे  मारते   हैं ...मुझे बचा लो ...' प्रियांशु रो रोकर बेहाल  हो रहा था .मुकेश ने रिसीवर कस कर पकड़ा ...तभी दूसरी ओर से एक कठोर स्वर कान से टकराया '...सुनते  हो मुकेश बाबू ..आज शाम छह बजकर पंद्रह मिनट पर शहर के बाहर सुखदेव सिंह के ईख के खेत में पचास लाख लेकर पहुँच जाना वरना .......' कहकर क्रूरतायुक्त ठहाका लगाया जिसे सुनकर मुकेश का रोम रोम सिहर उठा और नसों में ठंडी लहर दौड़ गयी .एक पल को लगा जैसे ह्रदय ने काम करना बंद कर दिया हो और मस्तिष्क  चेतनारहित सा अनुभव हुआ .संगीता ने पसीने से लथपथ मुकेश से रिसीवर अपने हाथ में लेकर कान से लगाया तो दूसरी ओर से कोई प्रतिक्रिया  न आती जानकर उसने फोन रख दिया .तभी संगीता के मोबाइल की रिंगटोन बज उठी .संगीता ने रिसीव किया तो वह शिरीष व् उत्तम का फोन था .उन्होंने संगीता को कुछ जानकारी दी व् उससे यहाँ की कुछ जानकारी लेनी चाही .संगीता ने मुकेश को अपना मोबाइल पकड़ा दिया क्योंकि वह स्वयं अब तक किडनैपर के फोन के बारे में मुकेश से बातचीत नहीं कर पाई थी .मीनाक्षी की आँखों से आंसुओं की अविरल  धारा  बहे जा रही थी .मुकेश ने उत्तम और शिरीष को  सब जानकारी दे दी और जेब से रुमाल निकाल कर चेहरे पर आये पसीने को पोंछा .संगीता को उसका मोबाइल पकड़ाते हुए उसके हाथ कांपते देख संगीता समझाते हुए बोली -'मुकेश डरो मत सब ठीक हो जायेगा .तुमने उत्तम और शिरीष को किडनैपर की एक एक बात अच्छी तरह बता दी है ना ....वो पुलिस के साथ प्लानिंग पर प्रियांशु को जरूर उसके चंगुल से छुड़ा लेंगें . अब देखो साढ़े पांच बज रहे हैं ...तुम्हे वहां पहुँचने में कम से कम पच्चीस मिनट लगेंगे .   तुम स्वयं को नियंत्रित करो .क्या उत्तम व् शिरीष तुम्हें  फिर से कौनटैक्ट   करेंगें ?'  मुकेश ने हडबडाते हुए  कहा -''...नहीं ..उन्होंने  कहा है मैं  अकेला  ही एक ब्रीफकेस के लेकर  वहां पहुँच जाऊं  ...आगे  पुलिस  के साथ  मिलकर  वे  दोनों  संभाल  लेंगें .'' इस वार्तालाप  के ठीक पांच मिनट बाद मुकेश एक कपड़ों  से भरा  ब्रीफकेस लेकर अपनी कार द्वारा गंतव्य की ओर रवाना  हो गया .मीनाक्षी भी साथ चलने की जिद कर रही थी पर संगीता  ने किसी प्रकार उसे समझा-बुझाकर रोक लिया .मुकेश ठीक छः बजे सुखदेव सिंह के खेत पर पहुँच गया .उसे पांच मिनट बाद सामने  की ओर से ईख हिलते नज़र आये और पीछे से भी कुछ कदमों की आहट सुनाई दी ..वह सावधान हो गया .उसने ब्रीफकेस को कस  कर पकड़ लिया .सामने से आते व्यक्ति को नकाब से मुंह छिपाए हुए देखकर भी मुकेश उसकी  चाल ढाल से उसे पहचान गया ...वह दीपक था .पीछे मुड़कर देखा तो दो और व्यक्ति नकाब से मुंह  छिपाए हुए रिवॉल्वर लिए उसके ठीक पीछे  खड़े थे   .उनमे  से एक ने रिवॉल्वर मुकेश  की  कांपती  से सटा  दिया  . दीपक  चलते  हुए  मुकेश  के  एकदम पास   पहुंचकर  बोला -''बाबू  ब्रीफकेस  मेरे  हवाले  कर  दो .''  मुकेश ने  दृढ़ता  के  साथ  कहा -''बिलकुल  नहीं !!पहले  मेरे  बेटे  को  मेरे  हवाले  करो   !''.....मुकेश के ये  कहते ही पीछे खड़े एक व्यक्ति ने उसके सिर पर जोरदार वार किया और मुकेश लगभग निढाल होकर गिर पड़ा .जब आँख खुली तब वह अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड के बैद  पर था .उसको होश  में आया  देख  नर्स ने तुरंत डॉक्टर को सूचना  दी .डॉक्टर के आते ही मुकेश के माँ -बाबूजी भी  उसके साथ उस वार्ड में अन्दर  आये .दोनों काफी थके हुए नज़र आ रहे थे .मुकेश ने उठना चाहा तो सिर में असहनीय दर्द से उसकी चीख निकल गयी .डॉक्टर ने एक इंजेक्शन लगाया और वह फिर से नींद की गहराइयों में चला गया . करीब एक माह में वह अस्पताल से घर पहुँच पाया .इस बीच जब भी वह मीनाक्षी और प्रियांशु के बारे में बाबूजी और माँ से पूछता तो वे कह देते कि-'' प्रियांशु के बुखार है और मीनाक्षी उसकी देखभाल में लगी रहती है ...फिर हम  दोनों तो हैं  तेरी  देखभाल को यहाँ .हमने   ही मीनाक्षी को प्रियांशु की देखभाल सही से करने  की हिदायत दे रखी  है इसीलिए उसे यहाँ नहीं आने देते और फिर तुम्हारी ऐसी हालत देखकर मीनाक्षी की हालत ख़राब हो सकती है .इसी कारण वो यहाँ नहीं आ पाती  .''माँ बाबूजी की बात पर मुकेश को कतई यकीन नहीं हुआ था पर और कोई रास्ता भी नहीं था .सबसे  ज्यादा आश्चर्य तो उसे शिरीष ,उत्तम और संगीता -किसी के भी अस्पताल में उससे न मिलने आने पर हुआ था .उसे अन्दर से ऐसा महसूस हो रहा था जैसे माँ-बाबू जी एक माह से उससे कुछ ऐसा छिपाना चाह रहे हैं जिसे छिपाना उनके भी बस की बात नहीं है .मुकेश तो पिछले दस दिन से अच्छा महसूस कर रहा था पर माँ बाबूजी ही डॉक्टर से बार  बार  उसके स्वस्थ  होने  के बारे में पूछकर  ''...घर जाने की क्या जल्दी है ?''कहकर उसे अस्पताल में ही रोके  हुए थे .आज  जाकर किसी तरह अस्पताल से छुट्टी मिली तो वह घर चलने के लिए जल्दी से तैयार हो गया .उसने देखा माँ बाबूजी के चेहरे  पर कोई खास चमक नहीं थी बल्कि वे काफी उलझे  हुए नज़र आ रहे थे .कार में बैठते ही उसने देखा माँ की आँखों से आंसू बह रहे थे .उसने माँ से इसका कारण पूछा तो बाबू जी बोले -''बेटा पूरे एक माह जिस माँ का बेटा मौत से जूझकर सकुशल अपने घर वापस लौट  रहा हो वह भला अपने आंसुओं को रोके तो ?'' यह  कहते कहते बाबूजी की आवाज़ भी भर्राई  हुई सी  महसूस हुई .ऐसी आवाज़ मुकेश ने बाबूजी जी की तब सुनी थी जब मुकेश की दादी जी का स्वर्गवास  हुआ था वरना मुकेश के बाबूजी जो सेना में रहे थे अपनी भावनाओं को काबू में करना बखूबी जानते थे .कार बाबूजी जी ड्राइव कर रहे थे .मुकेश मीनाक्षी से भी ज्यादा प्रियांशु से मिलने को उत्सुक था .एक तो वह अपहरण  की दुर्घटना से सहमा हुआ होगा  और ऊपर  से माँ बाबूजी के अनुसार पिछले इतने दिनों से बुखार से ग्रस्त है .मुकेश ने माँ से पूछा -''अच्छा माँ प्रियांशु अब तो आप दोनों से काफी घुलमिल गया होगा ?''मुस्कुराता  हुआ बोला -''माँ !ये क्या ....अब तो  मैं ठीक  हो गया  हूँ  ना  .....फिर क्यों आंसू बहा रही हो ?'' माँ ने ''हाँ'' में गर्दन हिला दी  पर इस  बात पर भी माँ के चेहरे पर सुकून की रत्ती भर  भी झलक नहीं दिखाई दी  .घर के सामने पहुँचते ही बाबूजी ने कार के ब्रेक लगा दिए और जैसी की मुकेश को उम्मीद थी -मिनाक्षी घर के बहार लॉन में इंतजार करती   दिखाई देगी   ...वैसा  कुछ नहीं हुआ क्योंकि मिनाक्षी उसे नहीं दिखाई दी .   मुकेश ने कार से  निकलकर  घर का गेट खोल  दिया  और  बाबूजी कार को अन्दर ले आये .लॉन काफी उजड़ा उजड़ा लग रहा था .मुकेश के ह्रदय  में  भी  एक   अजीब  सी उदासी   घर करती  जा  रही  थी  .लॉन इतना  सूखा  हुआ  क्यों  हैं  ? मीनाक्षी तो  हर पौधे  का कितना  ध्यान  रखती  है .वह  ये  सब  सोच  ही  रहा था की  बाबूजी ने उसके  पास  आकर  कहा  -''मुकेश चलो  अन्दर चलो . ज्यादा सोच विचार  मत  करो तुम्हारे स्वास्थ्य के लिए यह अच्छा नहीं है .''मुकेश बाबूजी ji  के यह कहते ही घर के भीतर की ओर चल दिया .ड्राइंग रूम  में प्रवेश करते ही सामने सोफे पर बैठी हुई मीनाक्षी एकाएक सिर पर साड़ी का पल्लू ढकते हुए खड़ी हो गयी .मुकेश एक नज़र में उसे पहचान भी न पाया और अनायास ही उसके होठों  से निकल  गया -''ये क्या हाल बना रखा है तुमने !प्रियांशु कहाँ है ?'' मुकेश के इस प्रश्न के उत्तर में मीनाक्षी का हाथ एकाएक दीवार की ओर उठा और वह फफक फफक कर रो  पड़ी .मुकेश की नज़र दीवार पर गयी तो वही टिक गयी .प्रियांशु का गुलाब सा मुस्कुराता हुआ चेहरा और उस फोटो पर फूलों की माला  !! वह ''नहीं ''कहकर लगभग चीखता हुआ दीवार के पास पहुँच गया .बाबूजी उसे संयमित कर सोफे तक लाये .वह निढाल होकर सोफे पर बैठ गया .उसके मस्तिष्क में हजारों सवाल दौड़ लगाने  लगे  .माँ बोली  -''मीना जरा  एक गिलास पानी ले आओ '' मीनाक्षी पानी ले आई .माँ ने मुकेश के पास बैठते हुए गिलास  पकड़ाते हुए कहा -''बेटा जो  दुर्घटना घटनी थी वह घट चुकी ...अब खुद  को संभालो .इस तरह तुम और मीना यहाँ दिल्ली में ऐसे दुखी रहोगे तो हम वहां कानपूर में कैसे चैन से रह पाएंगे ?बाबूजी बोले -''मुकेश तुम जो कुछ जानना चाहते  हो वो मैं  तुम्हे बताता हूँ .तुम्हे बेहोश कर वे तीनों बदमाश फिर से ईख के खेत में छिप गए लेकिन उस खेत को पुलिस ने उत्तम व् शिरीष की सूचनाओं द्वारा चारों ओर से घेर  लिया था .तुमको बेहोश पड़ा देखकर शिरीष व् उत्तम पुलिस की सहायता से तुम्हे तुम्हारी गाड़ी से लेकर  अस्पताल पहुँच  गए और उधर  ब्रीफकेस में कुछ ना पाकर तीनों बदमाश पुलिस के डर से ईख से बाहर निकल आये .पुलिस द्वारा प्रियांशु के बारे में पूछे जाने पर पता चला कि........उन्होंने उस नन्ही सी जान को पहले ही मार डाला था और फोन पर पैसा हड़पने के लिए जो प्रियांशु की आवाज़ वे सुना रहे थे वो रिकॉर्ड की हुई थी ..वे तो पैसा लेकर फरार  हो जाना चाहते थे .पुलिस की गहन पूछताछ  में पता चला कि-उन दरिंदों ने प्रियांशु कि डैड बॉडी शहर के बाहर एक बाग़ में दबा दी थी .उन हैवानों की दरिंदगी तो देखो  ....उन्होंने मरकर   भी उस नन्ही सी जान को सुकून न   लेने  दिया .प्रियांशु की शिनाख्त  छिपाने के लिए उसका चेहरा मरने के बाद तेजाब से झुलसा दिया ...'' ...''बाबूजी ...बस ...रहने दीजिये !!!...''मुकेश चीखता हुआ बोला और अपनी हथेलियों से अपना मुंह ढककर तड़पता हुआ रोने लगा .बाबूजी मुकेश के कंधे पर हाथ रखते   हुए उसके पास ही बैठ   गए .वे बोले -''बेटा तुम इस हालत में नहीं थे इसीलिए एक माह तक हमने तुमसे  ये बात छिपाई .मीनाक्षी तुम्हारे सामने इसीलिए नहीं आई क्योंकि वो तो खुद को ही नहीं संभाल पा रही थी .शिरीष ,उत्तम और संगीता अस्पताल लगभग रोज़ आते थे पर तुम्हारे सामने आने साहस न कर पाते कि कहीं उनके मुंह से ये बात न निकल जाये ...लेकिन हाँ  अब ध्यान से सुनों ...मैं और तुम्हारी माँ कल को कानपूर लौट जायेंगे ...तुम्हे और मीनाक्षी को मजबूत दिल का होकर प्रियांशु के हत्यारे को फांसी के तख्ते तक पहुँचाना है .'' बाबूजी की बातें कानों में गूँज रही थी कि मुकेश को लगा उसके कंधे कोई जोर  से हिला रहा है ...यह मीनाक्षी थी .मुकेश वर्तमान  में लौट आया  और प्रियांशु के हत्यारे  को फांसी की सजा दिलाने की याद आते ही एक लम्बी सुकून की सांस ली .
                             तीन माह पश्चात्  मीनाक्षी  ने घर के निकट के ही ''आशीर्वाद '' नर्सिंग होम में एक चाँद से बेटे  को जन्म दिया और जब नर्स गोद में लेकर उसे बाहर आई तो माँ बाबूजी के चेहरे  वैसे ही खिल गए जैसे प्रियांशु के जन्म के समय खिल उठे थे .और मुकेश ने उस नवजात शिशु को जैसे ही गोद में लिया वह अधखुली आँखों  से एकटक  उसे देखता  हुआ हल्का सा मुस्कुराया जैसे वो नन्हा  सा फ़रिश्ता कह रहा हो -''पापा लो मैं फिर आ गया '' मुकेश की आँखे ख़ुशी के आंसुओं  से छलछला उठी .

DR. SHIKHA KAUSHIK 'NUTAN'

मंगलवार, 27 मई 2014

''ना ताई ...इब और ना ...''

 New born baby girl Stock Photo - 4118714
''ना ताई ...इब और ना ...''-लघु कथा
ताई ने घर में घुसते ही  रो रोकर  हंगामा  खड़ा  कर दिया -''हाय ...हाय ...मेरा बबलू ...दूसरी बार भी लौंडिया ही  जनी  इसकी  बहू  ने ...क्या  भाग  ले  के  आई  यो  बहू  ...हे  भगवन !! ...''.  बबलू अन्दर कमरे से हँसता  हुआ निकलकर आया और आते ही ताई के चरण-स्पर्श किये और आँगन में पड़ी खाट  की ओर इशारा करते बोला -''ताई गम न मान मेरी दोनों बच्चियां ही कुल का नाम रोशन करेंगी .ये बता तुझे कोई तकलीफ तो न हुई सफ़र में ?'' ताई कड़कते हुए बोली -''अरे हट मरे ...मेरी तकलीफ की पूछे है !....तकलीफ तो तेरा  फून  आते ही हो गयी थी .बेटे इब ज्यादा दिन की ना हूँ मैं ...तेरे लाल का मुख देख लूँ बस इसी दिन की आस में जी रही हूँ .....चल इब की बेर ना हुआ अगली बेर जरूर होवेगा  ...हिम्मत न हार .मैंने माई से मन्नत मांगी है .''  बबलू ताई के करीब खाट पर बैठते हुआ बोला  -''ना ताई ...इब और ना ...दूसरा बच्चा भी बड़े ऑपरेशन से जना है तेरी बहू ने .....और तू ही तो बतावे थी कि मेरी माँ भी इसी चक्कर में मेरी बेर चल बसी थी .वो तो तू थी  जिसने मेरी चारो बहनों व् मेरा पालन-पोषण ठीक से कर दिया ....ना ताई ना मैं अपनी बच्चियों को बिन माँ की  न होने दूंगा !'' ये कहकर बबलू अन्दर से आती अपनी तीन वर्षीय बिटिया आस्था को गोद उठाने के लिए बढ़ लिया  और ताई बड़बडाती  रह गयी .
                     शिखा कौशिक 'नूतन '

मंगलवार, 20 मई 2014

सच्चा प्यार

love hate : From love to hate - one step. Concept illustration Illustration
सच्चा प्यार
''कल को इस रिवाल्वर की    छह की छह गोलियां उस धोखेबाज़ लड़की  के  सीने  में    उतार   दूंगा ....मुझसे धोखा  ..मेरे  दिल  से  धोखा  ...मेरे  प्यार  से  धोखा  ...जिसने  उसे  दुनिया  की हर  चीज़  ..हर रिश्ते  से  ज्यादा  चाहा  उससे  धोखा  ...नहीं  बर्दाश्त  करूंगा  ये  धोखा . माँ-पापा तक से बोल  दिया  था  मैंने  कि अगर  शादी  करूंगा तो केवल ''कामना'' से और वो  अपने  पिता के आगे झुक  गयी . क्या  कह रही थी आखिरी  मुलाकात  में ....हां  . ..यही  कि  ' अपने  कारण अपने पिता को मरते नहीं देख सकती ' ये सब उसने  तब  क्यूँ नहीं सोचा  जब वो उससे नज़दीकियां बढ़ा रही थी। मेरे दिल को खिलौना बनाकर खेलती रही और अब शादी किसी और से...............नहीं .....................उसे भी नहीं छोड़ूंगा जो मेरी कामना को मुझसे अलग करने की कोशिश करेगा ...............सब को निपटा दूंगा ......कामना का पिता  हो या उसका होने वाला दूल्हा या फिर कामना '' बाईस वर्षीय पुष्पक ने ये कहते-कहते बायीं हथेली की उँगलियाँ कसते हुए मुट्ठी बनाई और सामने रखी मेज पर दे मारी। दायें हाथ में पकड़ी हुई रिवाल्वर को फिर से खूनी इरादों के साथ  देखा और  अपने बैड के गद्दे के नीचे छिपा दिया . रविवार का दिन था और दीवार घडी  में दोपहर के दो बज  रहे  थे  .खौलते दिल को पुष्पक ने  शांत किया और सामान्य भाव चेहरे पर लाकर अपने कमरे  के किवाड़ खोलकर बाहर  निकला .निकलते हीउसने पाया कि  उसकी सोलह वर्षीय बहन टीना किवाड़ों के पास रखे गमले की निराई-गुड़ाई में लगी हुई है .पुष्पक झूठी मुस्कराहट के साथ मीठी जुबान में बोला -'' अरे यहाँ क्या  कर रही  है तू  .....माँ  के साथ रसोई के काम में हाथ  बटाया  कर .'' टीना प्रतिउत्तर में मुस्कुराते हुए बोली -'' जी भैय्या ''  पुष्पक को तसल्ली  हुई कि टीना उसके चेहरे के बनावटी भावों को पहचान नहीं पाई  .पुष्पक के वहां से एक कदम आगे बढ़ाते ही टीना चहकती हुई बोली -''भैय्या आपका कमरा साफ कर दूँ ...बहुत बिखरा-बिखरा सा पड़ा है ..बैड की चद्दर भी बदल दूँगी ...बहुत गन्दी लग रही है ..'' टीना के ये कहते ही पुष्पक हड़बड़ा गया पर खुद को संभालते हुए बोला -'' नहीं ..आज रहने दे ..जा ..जाकर माँ का हाथ बंटा या फिर पढ़ाई कर और माँ व् पापा मेरे बारे में पूछें तो कह देना मैं विवेक के यहाँ जा रहा हूँ  .'' ये कहकर वो तेज़ी से में गेट की ओर  बढ़ा ही था कि पीछे से पापा की  कड़कती आवाज़ सुनकर उसके पैर  ठिठक गए .पीछे मुड़कर देखा तो पापा हाथ में उसका ही रिवाल्वर उसकी ओर ताने खड़े थे .पुष्पक के होश उड़ गए .एकाएक हज़ारों प्रश्न उसके दिमाग में तूफ़ान की रफ़्तार से दौड़ने लगे -''पापा के पास मेरा रिवॉल्वर कैसे आया ? किसने बताया पापा को मेरे इरादों के बारे में ?..तो क्या टीना मेरी जासूसी कर रही थी ?'' ये सोचते सोचते वो खिसियाता  हुआ पापा के करीब पहुँच गया और हकलाता हुआ बोला -'' ये तो रिवॉल्वर है पर आपके पास कैसे ?'' पापा ने पास खड़ी टीना को रिवॉल्वर पकड़ाते हुए पुष्पक के कंधे पर नरमाई से हाथ रखते हुए कहा -'' यही तो मैं पूछना चाहता हूँ बेटा कि एम.बी.ए. के इतने बुद्धिमान छात्र के बैड के गद्दे के नीचे ये लोडेड रिवॉल्वर कैसे,  क्यों और कहाँ से आया ?'' पुष्पक पसीना-पसीना होते हुए बोला- ''पापा ..प्लीज़ फॉरगिव मी   ....आई हैव डन  बिग मिस्टेक  .'' ये कहते-कहते वो पापा के चरणों में गिर पड़ा .पापा ने उसे प्यार से उठाते हुए कहा गले से लगा लिया और रुद्ध  गले से बोले  -'' देख  किंचन   की चौखट  पर खड़ी तेरी माँ रोये  जा रही है ..पहले उससे जाकर माफ़ी  मांग  .'' पुष्पक दौड़कर  माँ के पास पहुंचा  और उससे लिपट  कर रोने लगा .माँ ने उसका चेहरा  हथेलियों में भरते हुए प्यार से कहा -''नहीं बेटा ऐसे काम नहीं करते ...तू तो एक तितली तक को पकड़ना पाप मानता है फिर किसी  लड़की को गोली मारने की बात कैसे सोच ली ...चल अब चुप हो जा ..रो मत ..भगवान ने सब समय से ठीक  कर दिया .'' ये कहते हुए माँ ने अपने आँचल  से उसके चेहरे पर आये आंसुओं को पोंछ दिया .पापा व् टीना भी वहीँ आ पहुंचे .पापा बोले -'' पुष्पक जाओ फ्रेश होकर आओ ..दीपक आता ही होगा .'' पुष्पक चौंकता हुआ बोला-''दीपक !!!'' पापा उसकी जिज्ञासा शांत करते हुए बोले- ''हां ! दीपक ...वही दीपक जिसके गाल पर जोरदार तमाचा मारकर तुमने कॉलेज कैंटीन  में दोस्तों के सामने अपमानित किया था   ..नो मोर क्वेश्चन प्लीज़ .'' पापा के ये कहते ही पुष्पक वहां से फ्रेश होने चला गया और जब फ्रेश होकर ड्राइंग रूम में आया तब दीपक को सोफे पर पापा के पास विराजे पाया .पुष्पक को देखते ही दीपक सोफे से खड़ा होते हुए बोला -'' हैलो पुष्पक ..कैसे हो ?'' पुष्पक अपने पूर्व में किये गए दुर्व्यवहार पर लज्जित होते हुए बोला-'' सॉरी दीपक ..उस दिन की अपनी बदतमीज़ी के लिए माफ़ी मांगता हूँ ..सच में शर्मिंदा हूँ मैं !''
दीपक ने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और सोफे पर अपने ही पास बैठाते हुए बोला -'' इट्स ओ.के.  ..दोस्ती-यारी में सब चलता है .'' दीपक की इस बात पर पापा कुछ  गंभीर  होते हुए बोले -'' नहीं बेटा तुमने सच्ची मित्रता निभाई है और एक उज्जवल भविष्य वाले छात्र को हत्यारा बनने से बचाया है .यदि तुम हमें पुष्पक की मनोस्थिति की सूचना न देते तो कल मेरा बेटा हत्यारा बन जाता जबकि मैं जानता हूँ कि वो ऐसा केवल भावावेश में करता .'' पुष्पक पापा की  बात पर हैरान होता हुआ बोला -'' क्या दीपक ने रिवॉल्वर के बारे में आपको बताया ....पर इसे कैसे पता चला ..मेरी  तो इससे उस दिन के बाद से ही बोल- चाल  बंद है ..'' पापा ने  पुष्पक  की ओर देखते हुए कहा -'' जिस दिन तुमने कॉलेज कैंटीन में दीपक के ये सुझाव देने पर कि ''कामना को भूल जा '' के जवाब में उसके गाल पर तमाचा रसीद किया था उस दिन से ही दीपक का दिमाग तुम्हारा जूनून  देखकर ठनक गया था कि तुम कोई न कोई गलत कदम जरूर उठोगे .गन -हाउस वाले विवेक से तुम्हारा मित्रता बढ़ाना ,तुम्हारा क्लासेस बैंक करना सब दीपक नोट कर रहा था .कुछ दिन पहले जब कामना ने दीपक को अपनी  शादी के फंक्शन हेतु इन्वाइट किया तब दीपक ने मेरे ऑफिस आकर मुझे तुम्हारी मनोस्थिति से अवगत  कराया  .मैंने टीना को तुम्हारी जासूसी पर लगाया और तुम एक अपराधी बनते-बनते रह गए .बेटा ये ठीक है कि  तुम  कामना से बहुत प्यार करते हो पर कई बार परिस्थितियां ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ी कर देती हैं कि व्यक्ति जिसे चाहता है वो उसे नहीं मिल पाता  .ऐसे में व्यक्ति को धीरज से काम लेना चाहिए और जिसे वो दुनिया कि हर चीज़..हर रिश्ते से ज्यादा अहमियत देता आया है .उसे मिटाने  नहीं उसके खुशहाल जीवन की कामना करनी चाहिए .हो सकता है कामना को तुमसे भी ज्यादा प्यार करने वाला जीवन-साथी मिल रहा हो .तुम भी तो उसे जीवन भर खुश रखने की कसमें  खाते  आये होगे फिर कैसे इतना प्रतिशोध तुम्हारे दिल में भभक उठा !मैं मानता हूँ कि इन हालातों को सहना सरल नहीं पर बेटा यदि तुम जिससे प्यार करते हो उसके लिए इतना सा त्याग भी नहीं कर सकते तब माफ़ करना ये कहना पड़ेगा कि तुम्हारा प्यार सच्चा प्यार नहीं है .प्यार यदि दैहिक-मिलन में ही होता तो शायद इतना पवित्र भाव न कहलाता .ये तो आत्मिक भाव है जो मानव को भगवान बना देता है !'' पुष्पक की  आँखें भर आई .उसने दीपक का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा-'' यार तूने मेरी ज़िंदगी पर...नहीं नहीं आत्मा पर  लगने वाले कलंक से मुझे बचा लिया .कल जब तू कामना के विवाह-समारोह में शामिल हो तब एक बुके मेरी ओर से भी उसे भेंट करना और कहना कि मैं केवल उसे खुश देखना चाहता हूँ .'' पुष्पक के ये कहते ही टीना नम आँखों के साथ चहकती हुई बोली -''दैट्स लाइक माई ब्रदर ...आई प्राउड ऑफ  यू भैय्या !'' पुष्पक भी मुस्कुरा दिया .अब पुष्पक के ह्रदय में धधक रही प्रतिशोध  की  ज्वालायें शांत हो चुकी थी और वहां त्याग की ठंडी फुहारें बरस रही थी .

शिखा कौशिक 'नूतन' 

रविवार, 18 मई 2014

सुसाइड नोट

Suicide -
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सुसाइड नोट-एक लघु कथा 



'' विप्लव हमें शादी कर लेनी चाहिए ..'' सुमन ने विप्लव के कंधें पर हाथ रखते हुए कहा .विप्लव झुंझलाते हुए बोला -'' ..अरे यार .. तुम यही बात लेकर बैठ जाती हो ...कर लेंगें ''  सुमन उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी और अपने बैग से टिफिन निकालते हुए विप्लव से बोली -'' ...ओ.के.  ...मैं तो यूँ ही ...बस घबरा जाती हूँ ...इसीलिए कह रही थी कहीं हमारे शारीरिक संबंधों का पता घरवालों को न हो जाये ....लो ये गाज़र का हलवा खाओ  .''  टिफिन का ढक्कन खोलकर विप्लव की ओर बढ़ा दिया सुमन ने .विप्लव भी सामान्य होता हुआ बोला -''...अब देखो  कोई जबरदस्ती तो की नहीं मैंने तुमसे .तुम्हारी सहमति से ही तो हमने संबंध बनाये हैं .तुम घबराती क्यों हो ?'' यह कहते हुए विप्लव ने हलवा खाना शुरू कर दिया .अभी आधा टिफिन ही खाली कर पाया था की विप्लव का सिर चकराने लगा और मुंह से झाग निकलने लगे .शहर से बाहर खेत के बीच में विप्लव का तड़पना चिल्लाना केवल सुमन ही सुन सकती थी .विप्लव ने सुमन की गर्दन अपने पंजें से जकड़ते हुए कहा -'' साली ...हरामजादी ....मुझसे धोखा ....जहर मिलाकर लाई थी हलवे में !''ये कहते कहते उसकी पकड़ ढीली पड़ने लगी .सुमन ने जोरदार ठहाका लगाया और फिर दाँत भींचते हुए बोली -''...कुत्ते जबरदस्ती नहीं की तूने ....हरामजादे धोखा मैंने दिया है तूझे ...प्यार का नाटक कर शादी के ख्वाब दिखाकर नोंचता रहा मेरे बदन को और अब कहता है यही बात लेकर बैठ जाती है ...कमीने मेरी छोटी बहन को भी हवस का शिकार बनाना चाहता था तू ....उसने बताया कल उसे अकेले में पकड़ लिया था तूने ...सूअर अब तू जिंदा रहने लायक नहीं है ..न जाने क्या क्या कुकर्म करेगा तू ..जा और पाप करने से बचा लिया तुझे ..''  सुमन ने देखा विप्लव अब ठंडा  पड़ने लगा था .सुमन ने टिफिन में बचा हलवा खाना शुरू कर दिया .हलवा खाते  खाते  उसने बैग से एक  कागज  निकाला  और अपनी बांयी हथेली में कसकर पकड़ लिया ..............अगले दिन अख़बार में खबर छपी -''ऑनर किलिग़ के डर से एक प्रेमी युगल ने आत्महत्या कर ली .प्रेमिका के पास से मिला सुसाइड नोट ''

शिखा कौशिक  'नूतन  '

मंगलवार, 13 मई 2014

तमन्ना


-----कितने रंग है इस दुनिया  में लेकिन तुम तो बस अँधेरे में खो जाना चाहती हो जिसमे केवल काला रंग है .मै तुम्हारे दुःख को जानती हूँ लेकिन इस तरह जीवन को बर्बाद करना तुम्हारी जैसी गुणी  लड़की को शोभा देता है क्या ? तमन्ना अपने को संभालो !आज पुनीत से अलग हुए तुम्हें  पूरे 6माह हो गए है, लेकिन तुम हो कि ..........'   ' नहीं दीदी ये  बात नहीं'' तमन्ना बीच में ही बोल पड़ी  ''ऐसा  नहीं कि  मेरे मन में पुनीत के लिये  कोई प्रेम या स्नेह है;वो तो उसी समय समाप्त हो गया था जब वो सीमा को हमारे घर में लाया था;वो घर उसी दिन से मेरे लिए नरक हो गया था' बहुत चाहते हुए भी मै इस हादसे से उबर नहीं पा रही . कुछ नया करने की  सोचती हूँ तो मन में  आता है कि कंही इसका अंत भी बुरा न हो ;बस यही सोचकर रुक जाती हूँ ' . पुण्या दीदी बोली 'देखो तमन्ना अगर कुछ करने की  ठान लोगी तो कम से कम इस निराशा के सागर से तो निकल जाओगी .मैंने तुम्हारे लिए अपने कॉलेज की प्रिंसिपल से बात की थी; वो कह रही थी क़िअगले १५ दिन में जब चाहो ज्वाइन कर सकती हो' .तमन्ना ने 'हाँ' में धीरे से गर्दन हिला दी .

                     अब शिक्षिका  की नौकरी ज्वाइन करे तीन माह बीत चुके थे. पुण्या दीदी से रोज मुलाकात होती . पुण्या दीदी ने बताया क़ि पुनीत का फ़ोन उनके पास आया था . वो तमन्ना से मिलना चाहता था . पुण्या दीदी के समझाने पर तमन्ना ने उससे मिलने का फैसला किया . पहले पहल तो उस रेस्टोरेंट में बैठे हुए पुनीत को पहचान नहीं पाई तमन्ना .पहले पुनीत बड़ा जचकर रहता था लेकिन आज बढ़ी हुई दाढ़ी ;ढीला ढाला कुरता . पुनीत ने ख़ड़े हो कर उससे बैठने के लिये  कहा और बोला ''तमन्ना मुझे माफ़ कर दो ;मैंने तुम्हें  बहुत दुःख दिया लेकिन देखो उस नीच औरत ने मेरा क्या हाल कर दिया . प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो अब हम फिर से साथ साथ रहेंगे !'    ये सब सुनकर तमन्ना के होठों  पर कडवी मुस्कराहट तैर गयी ;वो बोली 'मिस्टर पुनीत शायद आपको याद नहीं जब मै आपके घर को छोड़कर आ रही थी ;तब आपने ही कहा था क़ि मुझमे ऐसा कुछ नहीं जो आप जैसे काबिल आदमी की पत्नी में होना चाहिए  . आज मै कहती हूँ क़ि आप इस काबिल नहीं रहे जो मै आपको अपना सकूं .'' इतना कहकर तमन्ना अपनी कुर्सी से खडी हो गयी और पर्स कंधे पर डालकर स्वाभिमान  के साथ रेस्टोरेंट के बाहर आ गयी .

शिखा कौशिक 'नूतन '

रविवार, 11 मई 2014

मैं तेजाब नहीं गुलाब लाया हूँ -SHORT STORY

roses
मैं तेजाब नहीं गुलाब लाया हूँ -SHORT STORY
रानी  देख  सूरज  हाथ  पीछे  बांधे  हमारी  ही  ओर  बढ़ा  चला  आ  रहा  है  .तूने  उसके  साथ  प्यार  का  नाटक  कर  उसकी   भावनाओं  का  मजाक  उड़ाया  है  .कहीं  उसके  हाथ  में  एसिड  न  हो  .तुझे  क्या  जरूरत  थी  इस  तरह पहले  मीठी  बातें  कर  उसके  दिए  उपहार  स्वीकार  करने  की और  फिर  उससे ज्यादा अमीर वैभव   के  कारण   उसे  दुत्कारने की मैं तो जाती हूँ यहाँ से जो तूने किया है तू भुगत .' ये कहकर गुलिस्ता वहाँ से चली गयी .रानी के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी .सूरज के पास आते ही उसके पैरों में गिरकर गिडगिड़ाने लगी -'' सूरज ...मुझे माफ़ कर दो ...मैंने तुम्हारे  प्यार का मजाक उड़ाया है ...पर ..पर मुझ पर एसिड डालकर  मुझे झुलसाना नहीं .....प्लीज़ !!'' ये कहते कहते वो रोने लगी .सूरज ने अपने पैर पीछे हटाते हुए ठहाका लगाया .वो भावुक होता हुआ बोला -'' मिस रानी ऊपर देखिये ....मैं तेजाब नहीं गुलाब लाया हूँ ..आपको अंतिम भेंट देने के लिए और शुक्रिया ऊपर वाले का जिसने आप जैसी मक्कार लड़की से मुझे बचा लिया .यहाँ से जाकर मंदिर में प्रसाद भी चढ़ाना है ..लीजिये जल्दी से ये गुलाब थाम लीजिये .''  सूरज की बात सुनकर रानी के दम में दम आया और उसने शर्मिंदा होते हुए उठकर वो गुलाब थाम लिया .

शिखा कौशिक 'नूतन '

शनिवार, 10 मई 2014

'मदर्स डे'' का सच्चा उपहार-short story

'मदर्स डे'' का सच्चा  उपहार

घर घर बर्तन माँजकर  विधवा सुदेश अपनी एकलौती संतान लक्ष्मी का किसी प्रकार पालन पोषण कर रही थी  .लक्ष्मी पंद्रह साल की हो चली थी और  सरकारी  स्कूल  में  कक्षा  दस  की छात्रा थी .आज  लक्ष्मी का मन बहुत उदास  था .उसकी  कक्षा  की  कई  सहपाठिनों  ने उसे बताया था कि उन्होंने अपनी माँ के लिए आज मदर्स डे पर सुन्दर उपहार ख़रीदे हैं पर लक्ष्मी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो माँ के लिए कोई उपहार लाती  .स्कूल से आकर लक्ष्मी ने देखा माँ काम पर नहीं गई है और कमरे में  एक खाट  पर बेसुध लेटी हुई है .लक्ष्मी ने माँ के माथे पर हथेली रख कर देखा तो वो तेज ज्वर से तप रही थी .लक्ष्मी दौड़कर डॉक्टर साहब को बुला लाई और उनके द्वारा बताई गई दवाई लाकर  माँ को दे दी .माँ जहाँ जहाँ काम करती है आज लक्ष्मी स्वयं वहां काम करने चली गयी .लौटकर देखा तो माँ की हालत में काफी सुधार हो चुका था .लक्ष्मी ने माँ का आलिंगन करते हुए कहा -''माँ आज मदर्स डे है पर मैं आपके लिए कोई उपहार नहीं ला पाई ...मुझे माफ़ कर दो !''सुदेश ने लक्ष्मी का माथा चूमते हुए कहा -''रानी बिटिया कोई माँ उपहार की अभिलाषा में संतान का पालन-पोषण नहीं करती ...तुम्हारे मन में मेरे प्रति जो स्नेह है वो तुमने मेरी सेवा कर प्रकट कर दिया है .आज तुमने मुझे ये अहसास करा दिया है कि मैं एक सफल माँ हूँ .मैंने जो स्नेह के बीज रोपे वे आज पौध बन कर तुम्हारे ह्रदय में पनप रहे हैं .तुमने ''मदर्स डे'' का सच्चा  उपहार दिया है !!''

शिखा कौशिक 'नूतन '

मंगलवार, 6 मई 2014

बहन का सवाल !

बहन  का  सवाल ! -एक लघु कथा

रजत ने गुस्से  में तमतमाते हुए घर में घुसते ही आवाज  लगाईं  -मम्मी 'सारा' कहाँ है ? मम्मी थोडा घबराई   हुई किचन से बाहर आते हुए बोली -''...............क्या हुआ  रजत ?.....चिल्ला क्यों रहा है ........सारा तो अपने कमरे में है .तुम दोनों भाई-बहन में क्या चलता रहता है भगवान ही जानें ! उसके पैर में मोच है सचिन अपनी बाइक पर छोड़कर गया है कॉलेज से यहाँ घर ....'' रजत मम्मी की बात अनसुनी करते हुए सारा के कमरे की ओर बढ लिया .सारा पलंग पर बैठी हुई अपने पैर को सहला रही थी .रजत ने कमरे में घुसते ही कड़क वाणी में कहा -''.....सारा कितनी बार मना किया है कि किसी  भी लड़के की बाइक पर मत बैठा करो !तुम मुझे कॉल कर देती मैं आ जाता तुम्हे लेने .....मेरा कॉलिज दूर ही कितना है तुम्हारे कॉलिज से !आज के बाद यदि तुम्हे किसी लड़के की बाइक पर पीछे बैठा देखा तो अच्छा न होगा !...''यह कहकर आँख दिखाता हुआ रजत सारा के कमरे से चला गया .सारा के गले में एक बात अटकी ही रह गयी -''....भैया केवल आपने ही नहीं देखा था मुझे .....मैंने भी देखा था आपको सागरिका को आपकी  बाइक पर पीछे बैठाकर जाते हुए .मैंने जानबूझकर    नज़र चुरा ली थी ....मै आपको डिस्टर्ब नहीं करना चाहती   थी ......पर जब  आप अपनी बहन का  किसी और लड़के की बाइक पर बैठना पसंद  नहीं करते फिर किसी और की बहन को क्यों बैठा लेते हैं अपनी बाइक पर ?........केवल इसलिए की आप लड़के हो .....आप जो चाहो करो ....सब सही है !''
                                          शिखा कौशिक
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