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बुधवार, 28 मार्च 2012

''बेटी की माँ ''-a short story

 ''बेटी की  माँ  ''

Happy Mothers Day Song - I Love You Mommy Mothers Day Song For Children
सभी फोटोस गूगल से साभार 


Germany, Cologne, Mother and daughter (4-5) head to head, portrait, close-up Photo (WESTF14285)Germany, Cologne, Mother and daughter (4-5), mother touching nose, smiling, portrait Photo (WESTF14282)Germany, Cologne, Mother and daughter (4-5) head to head, portrait, close-up Photo (WESTF14284)

आठ साल की प्रिया अपनी सहेली के घर खेलने गयी हुई थी .जब शाम ज्यादा हो गयी तब सुनीता को प्रिया की चिंता सताने लगी .सुनीता ने बाल ठीक  किये और घर का ताला लगा रीना के घर की ओर चल दी .एक एक कदम रखते हुए बस यही ख्याल सता रहा था कि -''मेरी बिटिया  के साथ कुछ गलत न  हो जाये !.....प्रिया बता रही थी कि रीना कि मम्मी  बाहर  सर्विस  करती हैं ..यहाँ केवल  रीना व्  उसके  पापा  रहते    हैं ....आदमियों  का क्या  भरोसा   ?...मैं  भी   कितनी   पागल    हूँ   प्रिया को जाने  दिया   ...हे  देवी  मैय्या !    मेरी बिटिया  की रक्षा  करना  !कहीं  रीना के घर से लौटते  हुए कुछ न हो गया   हो ....प्रिया आज   सही   सलामत   मिल   जाये ...बस आगे   से उसे इतनी देर के लिए ऐसी जगह नहीं जाने दूँगी "'ये सोचते  सोचते  सुनीता  ने कस कर अपनी मुठ्ठी  भींच ली  ..तभी उसे सामने से प्रिया.. रीना व् रीना   के पापा आते दिखाई दिए .प्रिया को देखकर सुनुता की जान में जान आ गयी .सुनीता ने रीना के पापा का शुक्रिया अदा किया .वे वही  से लौट गए .सुनीता ने घर पहुंचकर प्रिया के गाल पर तमाचा जड़  दिया और उसे डांटते   हुए   बोली   ''....कोई जरूरत नहीं है   किसी के घर जाने की ...लड़कियों का घर से बाहर ज्यादा घूमना ठीक नहीं ...''सुनीता ने यह कहते  हुए ही प्रिया को बांहों में भर लिया और मन में सोचा -'''एक बेटी की  माँ को ऐसा ही बनना   पड़ता    है  !''


                                     शिखा कौशिक 
                           [मेरी कहानियां ]

सोमवार, 26 मार्च 2012

'' वही बहू अच्छी ! ''


सुशीला  के बेटे का ब्याह हाल ही में हुआ था .मोहल्ले में शोर था कि बहू इत्ता दहेज़ लाई है कि घर में रखने तक की जगह नहीं बची . .जेवर   ..लत्ता कपडा   इत्ता लाइ है  कि क्या कहने ...!''उषा ने सोचा  ''....''मिल  ही आती हूँ सुशीला से और बहू भी देख आऊं ...हरिद्वार न गयी होती तो ब्याह में जरूर शामिल होती .......कितनी आस थी  ...मेरी बहू भी खूब दहेज़ लाये ...चार में बैठ कर गर्दन ऊँची करके कहती मेरे मुकेश की ससुराल.....पर क्या ?मुकेश ने सब मटियामेट कर दिया ...खुद ही ब्याह लाया ....एक चाँदी का सिक्का और दो जोड़ी कपडे .....सारी बिरादरी में नाक कटवा दी ....''.यही सब सोचते हुए उषा अपने कमरे में गयी और एक नयी धोती पहन कर तैयार हो गयी सुशीला के यहाँ जाने के लिए .कुछ रूपये ''बहू के मुंह dikhai '' हेतु लेकर रसोईघर में काम कर रही मुकेश की बहू सरिता से यह कहकर कि -''बहू..जरा सुशीला के यहाँ जा रही हूँ...मुकेश और उसके पिता जी दुकान से लौट आये तो मेरा इतज़ार   किये  बगैर  चाय बना लेना  ..मुझे देर हो सकती है वहां ...''ज्यों ही उषा ने चौखट के बाहर पैर रखा चौखट के आगे पड़ी लाहौरी ईट पर पड़ा और उसका पूरा पैर मुड़ गया ....वो ''हाय राम...''कहकर चीखी व् पैर पकड़कर वहीँ बैठ गयी .तेज दर्द के कारणउसकी आँख में आंसू भर आये .सासू माँ की चीख सुनकर सरिता सारा काम छोड़कर तेजी से भागी आई .सासू माँ को दर्द से तड़पते देख उसकी भी आँख भर आई .घर के आगे से जाते पडोसी रमेश की मदद से सरिता सासू माँ को उनके कमरे  तक ले आई और उन्हें पलंग  पर लिटाकर हल्दी का दूध बना लाई. ....फिर ऐसी तरकीब से सासू माँ का पैर मरोड़ा  की चट-चट करती सारी नसें खुल गयी और उषा के  पैर में आई मोच व् दर्द दोनों ठीक हो गए .उषा ने सरिता को लेट लेटे ही इशारे से अपने पास बुलाया और थोडा सा उठकर उसके माथे को चूम लिया ..फिर मुस्कुराकर बोली ..''मुकेश है तो मेरा ही बेटा ...ऐसी बहू लाया है कि लाखों क्या..करोड़ों में भी न  मिले ..''सासू माँ से तारीफ सुनकर सरिता मुस्कुरा  दी .उषा ने मन  ही मन सोचा -''करोड़ों का दहेज़ भी ले आती तो क्या होता ....जो दुःख दर्द में बेटी  की तरह सेवा कर सके वही बहू अच्छी !'' 
शिखा कौशिक 

गुरुवार, 15 मार्च 2012

तेरे ही कर्म -A SHORT STORY


गूगल  से साभार 
 

    बयालीस   वर्ष   की   आयु   में   अचानक  ह्रदय गति   रुक  जाने  से   मृत्यु    को    प्राप्त   चपल   ने   भगवान   के   दरबार   में   पहुचकर    पूछा  - ''हे   प्रभु   मेरे   साथ   ये   अन्याय   क्यों   किया   ?मेरा   परिवार   -मेरे  बच्चे  सब  अनाथ   हो  गए  .''प्रभु  व्यंग्ययुक्त   स्वर  में  बोले    -''मूर्ख  आज  से दस  साल पहले जब  तू   भीषण   दुर्घटना   में  भी   बाल  -बाल  बच   गया   था  तब  तेरा  ही  एक  सत्कर्म  तेरी  रक्षा  कर  रहा  था  .तूने  एक  गरीब  किसान  की  जमीन   महाजन  के  चंगुल  में  जाने से बचवाई  थी  पर  अब  तू  घर  में  बैठे  बैठे  ही  इस  तरह  इसलिए  मर  गया  क्योंकि   तेरा  एक  दुष्कर्म  तेरे  सब  पुण्यों     को लील   गया  तूने  एक  गरीब  से भी  रिश्वत    ले ली  जबकि  उसकी  पत्नी  दवाई  के  पैसे  न  होने  के  कारण   बीमारी  में  चल  बसी  .मैं  न  तो   किसी    के  साथ  न्याय  करता  हूँ  और  न  अन्याय  ..ये  तेरे  ही  कर्म  होते  हैं  .यमदूतों -   इसे  नरक  में  छोड़  आओ  !''प्रभु  ऐसा   आदेश   देकर   अंतर्ध्यान  हो  गए  .
                                                                शिखा कौशिक