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रविवार, 2 नवंबर 2014

[PUBLISHED IN JANVANI'S RAVIVANI WEEKLY MAGAZINE ]-औरत

औरत
[PUBLISHED IN JANVANI'S RAVIVANI WEEKLY MAGAZINE ]

''.आइये थानेदार साब गिरफ्तार कर लीजिये इस हरामी आदमी को ...ये ही बहला-फुसलाकर लाया है मेरी औरत को और वो भी हरामज़ादी सारे ज़ेवर  ,पैसा मेरे पीछे घर से चोरी कर इसके गैल  हो ली ....पूछो इससे कहाँ है वो ?'' शहर की मज़दूरों की बस्ती में गुस्से से आगबबूला होते सोमनाथ ने ये कहते हुए ज्यूँ ही उसके घर से थोड़ी दूर ही रहने वाले बब्बी की गर्दन पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया तो थानेदार साब रौबीले अंदाज़ में बोले -'' तू ही सब कुछ कर लेगा तो हमें क्यों बुलाया यहाँ ! चल पीछे हट  और एक तरफ चुपचाप खड़ा रह ...  वरना एक झापड़ तेरी कनपटी पर भी लगेगा .'' थानेदार साब के घुड़की देते ही सोमनाथ गुस्से की पूंछ दबाकर चुपचाप थोड़ा पीछे हट लिया .थानेदार साब ने अपने  घर की चौखट पर खड़े बब्बी को घूरते हुए पूछा -'' कहाँ  है  बे  इसकी  औरत ?'' बब्बी लापरवाह अंदाज़ में सिर खुजलाता हुआ बोला -'' मुझे क्या मालूम थानेदार साब  ...आप चाहें तो मेरा  घर खंगाल लें ..मुझे नहीं  मालूम सोम  की बहू के बारे में और  सच  कहू  तो अच्छा ही हुआ कहीं चली गई वो भली औरत वरना  ये ज़ालिम  तो उसकी  जान  ही ले  लेता  ..... गरभ  से थी वो और ये सुबह- सुबह  उसकी लात-  घूंसों से कुटाई कर काम पर चलता बना।  क्या करती वो  मज़बूर औरत..... चली गयी होगी कहीं। ''बब्बी की इस बात पर सोमनाथ फिर से फुंकारता हुआ थानेदार साब के पीछे से ही चिल्लाया -''बकवास मत कर बब्बी .....सच बोल ..... तेरा इशक चल रहा था ना उससे  .... मेरी औरत .... मेरी  जमा -पूँजी सब हड़प किये बैठा है .... सच बता दे वरना तेरा थोपड़ा नोंच डालूँगा। '' सोमनाथ की इस फुंकार पर बब्बी भी क्षोभयुक्त स्वर में बोला -''सोम ऊपरवाले  का ही लिहाज़ कर ले .... तेरी औरत की शकल तक नहीं देखी कभी गौर से मैंने .... गाय है वो तो .... मेरे पर लगा ले लांछन पर सीता मैय्या जैसी अपनी औरत के लिए ऐसा कहते तेरी ज़ुबान क्यूँ न कट गई .... पूरी बस्ती से पूछ लो थानेदार साब जो कोई भी उस देवी के चरित्तर पर उंगली उठा दे .... बेशरम कहीं का .... आ जा तू भी तलाशी ले ले थानेदार साब के साथ मेरे घर की। '' बब्बी की चुनौती पर सोमनाथ बल्लियों उछलने लगा और भड़कता  हुआ बोला -'' हाँ हाँ मैं भी देखूँगा .... मेरे दोस्तों ने ही बताया मुझे कि मेरे मजदूरी पर जाते ही तू मेरे घर में गया था और आखिरी बार तेरे साथ ही देखी गयी थी वो छिनाल .... बेशरम मैं हूँ या तू .... बस्ती वालों ऐसा आदमी यदि इस बस्ती में रहा तो यकीन मानों किसी की भी बहू-बेटी सलामत न रहेगी। '' तमाशा देखने वाले बस्ती के स्त्री -पुरुष सोमनाथ की इस बात पर भिनभिनाने लगे तो  थानेदार साब जोर से चिल्लाये -''भीड़ इकट्ठी मत करो यहाँ .... सिपाही खदेड़ इन डाँगरों को यहाँ से। '' थानेदार साब के आदेश पर सिपाही ने डंडा उठाया ही था कि ''खी -खी '' ''हो -हो '' के शोर के साथ वहां मज़ा ले रहे बच्चे -बड़े -औरतें सब तितर -बितर  हो लिए। थानेदार साब ने तोंद पर से खिसकी हुई अपनी पैंट ऊपर कमर पर चढ़ाते हुए बब्बी से कहा -''चल हट चौखट से .... रस्ता दे.... मैं खुद देखूँगा तेरे घर का कूना -कूना .... गयी तो गयी कहाँ इसकी औरत .... चुहिया है क्या जो बिल में घुस कर बैठ गयी या चींटी जो दिखाई न दे। '' ये कहते हुए थानेदार साब बब्बी को एक तरफ कर उसके कोठरीनुमा घर में दाखिल हो गए। सोमनाथ की औरत क्या उसका चुटीला तक वहां नज़र न आने पर थानेदार साब का चेहरा गुस्से में तमतमाने लगा। बब्बी के घर से निकलते हुए सोमनाथ को लताड़ते हुए थानेदार साब बोले -''यहाँ तो नहीं मिली तेरी औरत .... किस आधार पर इसके घर की तलाशी के लिए बुला लाया हमें ?  खाली समझ रखा है हमें !'' थानेदार साब के ये कहते ही सोमनाथ हाथ जोड़ते हुए बोला -'' नहीं  साब  ऐसा न कहिये .... इसी बदमाश ने इधर -उधर की है मेरी औरत .... बेच न दी हो इस साले ने .... दलाल कहीं का। '' सोमनाथ के ये कहते ही एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर लगा। तमाचे की झनझनाहट से उबरकर जब सोमनाथ ने तमाचा मारने वाले का चेहरा देखा तो पाया ये उसकी माँ ही थी। सोमनाथ की माँ उसपर बिफरते हुए बोली -''शरम कर शरम .... बब्बी तो  भगवान है भगवान .... ये न होता तो आज मेरी बहू इस संसार में न होती। बब्बी ने ही बहू को ठीक टेम से दवाखाने पहुँचाया और मुझे गाँव में इस सब की खबर करवाई। झूठ बोलते शरम तो न आई होगी तुझे .... जेवर -पैसा .... अरे बहू को तो अपनी सुध तक न थी .... और वे तेरे आवारा दोस्त .... दर्द से तड़पती बहू की मदद करने तो एक भी  आया .... मरे भड़काने आ गए .... हे भगवान बेटा ही जनना था तो बब्बी जैसा जनती .... तूने ने मेरी कोख कलंकित कर दी .... अच्छा हुआ जो तेरे बापू ये सब देखने से पहले ही गुज़र गए वरना इब गुज़र जाते .... बब्बी ने तो बड़े भाई का फ़र्ज़ निभाते हुए एक बोतल खून भी दिया बहू को .... बब्बी न होता तो न बहू बचती और न उसका गरभ। '' ये कहते हुए सोमनाथ की माँ सिर पकड़कर ज़मीन पर बैठ गयी और सोमनाथ शर्मिंदा होकर बब्बी के चरणों में झुक गया।

शिखा कौशिक 'नूतन '

2 टिप्‍पणियां:

shashi purwar ने कहा…

bahut khoob sundar sarthak

Unknown ने कहा…

Bahut hi umda kahani ....aabhar !!