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शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

बेटी पराई


बेटी पराई -लघु कथा
वैदेही  के घर की चौखट पर कदम रखते ही सासू माँ चहक कर बोली -'' लो आ गयी बहू ....अब बना देगी चाय झटाझट  आपकी .''  वैदेही ने मुस्कुराकर सासू माँ की ओर देखा और पल्लू सिर पर ठीक करते हुए तेज कदमों से अपने बैडरूम की ओर बढ़ ली .पर्स एक ओर रखकर सैंडिल उतारी और किचन की ओर  चल दी .ससुर जी की चाय बनाते समय वैदेही को माँ की याद आ गयी .परीक्षा देकर लौटती  तो माँ कहती -''....अरे आ गयी वैदेही ..अच्छी परीक्षा हुई ...मेरी फूल सी बिटिया तो मुरझा ही गयी ...वैदेही मुंह हाथ धो ले मैं तेरे लिए तुलसी की चाय बनाकर लाती हूँ ''' .....पर यहाँ ससुराल में ये ठाट कहाँ ?ऑफिस जाते समय भी सब काम निपटा कर जाओ और लौटकर आते ही काम में जुट जाओ .पिछले महीने जब वंदना ननद जी एम्.ए. की परीक्षा देने  आई थी तब सासू माँ में भी माँ की छवि दिखाई दी थी ...ठीक माँ की तरह  ननद जी के लिए सासू माँ चाय बना लाती थी उनके परीक्षा देकर लौटते  ही ...पर बहू को चाय बनाकर देने में तो मानो नाक कट जाती है सास की .''  वैदेही के ये सब सोचते सोचते ही चाय में उबाल आ गया और वैदेही कप में छनकर ट्रे में कप-प्लेट रखकर ससुर जी के लिए चाय लेकर चली .ससुर जी को चाय पकड़ाकर वैदेही किचन की ओर लौट ही रही थी  कि सासू माँ ने अपने कमरे से आवाज़ लगा दी -'' बहू ...बहू वैदेही यहाँ आना !'' वैदेही के कदम उस ओर ही बढ़ चले .सासू माँ बैड पर कुछ जेवर लिए बैठी थी .वैदेही के वहां पहुँचते ही धीमी आवाज़ में बोली -'' वैदेही ...अब इस घर की मालकिन तू ही है .ये जेवर मेरी सास ने मुझे दिए थे ओर अब मैं तेरे हवाले इनको करके निश्चिन्त हो जाना चाहती हूँ .मेरे जीवन का कोई ठिकाना नहीं ओर हां इन जेवरों के बारे में भूलकर भी वंदना से जिक्र मत करना ..इस घर की बात दूसरे घर जाये ये ठीक नहीं ...मैंने वंदना के सामने कभी ये जेवर नहीं आने दिए ...बेटी तो  पराई होनी ही होती है ना .. यही  सोचकर छिपाया ,तुम भी ध्यान रखना '' वैदेही ने हाँ में गर्दन हिला दी और सोच में डूब गयी कि क्या मेरी माँ ने भी मुझसे ऐसी ही कई बातें छिपाई होंगी ?क्योंकि मुझे भी तो पराये घर ही आना  था !!!

शिखा कौशिक 'नूतन '