ये हत्या एक नेता की नहीं थी ; ये हत्या थी सौहार्द व् उदारतावाद के मूर्तिमान व्यक्तित्व की , जो परम्परागत सफ़ेद धोती पहने ;नंगे सीने ....घुस जाता था उस जुनूनी भीड़ में जो कभी हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर तो कभी ब्राह्मण-शूद्र के नाम पर मरने-कटने को तैयार हो जाती थी .उसने कभी भगवा पट्टा गले में न डाला पर उसके कहने पर हज़ारों गौमांस खाने वालों ने गौमांस खाना बंद कर दिया क्योंकि उसने उनके दिलों में पैदा की थी गाय के प्रति वही आदर-स्नेह की भावना ; जो एक हिन्दू परिवार में ' गाय' हमारी माता है ' कहकर बच्चे-बच्चे में संस्कार रूप से भरी जाती है . वो कट्टर हिंदूवादियों को भी ललकारते हुए कहता -'' श्री राम के ठेकेदार मत बनो ...बनना है तो श्री राम के भक्त बनो .' वो अक्सर कहता -'' मंदिर तो आज बन जाये अगर इस मुद्दे पर सियासत न हो .'' उसके शब्द जनता पर जादू सा असर करते .जनता दीवानी सी होकर उसे घेरे रहती .
माँ-बाप शिकायत करते कि ' बेटियों -बहुओं का तो घर से निकलना ही मुश्किल हो गया है .'' तब वो फुंकारता हुआ कहता '' बेटों को रोका है शरारतें करने से .....बेटों को सुधारो ...बेटी-बहुएं खुद सुरक्षित हो जाएँगी .''
जब मुसलमान औरतें छाती पीटती आती पति द्वारा अकारण तलाक देने पर तब वो भड़ककर कहता -'' रोने से क्या होगा ? एकजुट होकर लड़ो ....धार्मिक ग्रंथों में जिस समय जो लिखा गया था वो उस समय की परिस्थिति के अनुसार सटीक रहा होगा .....सदियाँ गुज़र गयी है.........कुछ तो बदलो ....''
उसके खिलाफ फतवे जारी हो गए और कट्टरपंथी हिन्दू उसे मुल्ला कहने लगे .पत्रकार कहते -'सुरक्षा ले लीजिये '' तो वो हँसता हुआ कहता -'' मालूम है ना इंदिरा जी को उनके सुरक्षा कर्मियों ने ही भून डाला था ....चलो एक बात को लेकर तो मैं निश्चिन्त हूँ कि मेरे मरने पर दंगें न होंगें क्योंकि सियासत करने वाले दोनों हाथ मेरे खिलाफ हैं .''
उसके बेख़ौफ़पन से सियासत के बाजार में मंदी का माहौल हो गया .सियासी दुकानों के शटर धड़ाधड़ गिरने लगे .सियासी रोटी खाने वालो के बुरे दिन आ गए .दंगों के लिए तैयार माल गोदामों में सड़ने लगा .सियासतदारों ने अपने चमचों से उस पर जूते फिकवाए .उसने जूता हाथ में लेकर जनता से पूछा- ' बताओ ये जूता हिन्दू का है या मुसलमान का ?'' जनता ठहाका लगाने लगी .उसके घर पर पत्थरबाज़ी करवाई गयी , वो मुस्कुराते हुए बोला -'' चलो पत्थर दिलों से निकले इतने पत्थर , अब उनके दिल का बोझ कुछ तो कम होगा .'' उसके चरित्र पर भी हमला किया गया पर हर स्त्री में माता का रूप देखने वाले उस स्फटिक जीवनधारी को कौन लांछित कर सकता था !
वो हर हमले के बाद मज़बूत होता गया .जनता के दिल में उसके लिए जगह बढ़ती गयी .उसकी आवाज़ और बुलंद होती गयी .अब सियासतदारों के पास अंतिम उपाय यही रह गया था कि ''इस आवाज़ को हमेशा हमेशा के लिए खामोश कर दिया जाये !'' उन्होंने उसके नंगे सीने को गोलियों से छलनी कर डाला .कमर पर बंधी सफ़ेद धोती भी खून से सन गयी .उसके आखिरी शब्द थे-'' ये गोलियां न हिन्दू की हैं ..न मुसलमान की ...ये सियासत की गोलियां हैं ...इनसे बचकर रहना देशवासियों .'' उसकी शवयात्रा में हिन्दू-मुसलमान सभी थे और उनके कानों में गूँज रही थी ...उसकी ही बुलंद आवाज़ .सियासत करने वाले क्या जाने ये आवाज़ें तो सदियों तक ऐसे ही गूंजती रहेंगी ..इन्हें जूतों , पत्थरों और गोलियों से कभी खामोश नहीं किया जा सकता है ........आमीन ! ...तथास्तु !
शिखा कौशिक 'नूतन'
माँ-बाप शिकायत करते कि ' बेटियों -बहुओं का तो घर से निकलना ही मुश्किल हो गया है .'' तब वो फुंकारता हुआ कहता '' बेटों को रोका है शरारतें करने से .....बेटों को सुधारो ...बेटी-बहुएं खुद सुरक्षित हो जाएँगी .''
जब मुसलमान औरतें छाती पीटती आती पति द्वारा अकारण तलाक देने पर तब वो भड़ककर कहता -'' रोने से क्या होगा ? एकजुट होकर लड़ो ....धार्मिक ग्रंथों में जिस समय जो लिखा गया था वो उस समय की परिस्थिति के अनुसार सटीक रहा होगा .....सदियाँ गुज़र गयी है.........कुछ तो बदलो ....''
उसके खिलाफ फतवे जारी हो गए और कट्टरपंथी हिन्दू उसे मुल्ला कहने लगे .पत्रकार कहते -'सुरक्षा ले लीजिये '' तो वो हँसता हुआ कहता -'' मालूम है ना इंदिरा जी को उनके सुरक्षा कर्मियों ने ही भून डाला था ....चलो एक बात को लेकर तो मैं निश्चिन्त हूँ कि मेरे मरने पर दंगें न होंगें क्योंकि सियासत करने वाले दोनों हाथ मेरे खिलाफ हैं .''
उसके बेख़ौफ़पन से सियासत के बाजार में मंदी का माहौल हो गया .सियासी दुकानों के शटर धड़ाधड़ गिरने लगे .सियासी रोटी खाने वालो के बुरे दिन आ गए .दंगों के लिए तैयार माल गोदामों में सड़ने लगा .सियासतदारों ने अपने चमचों से उस पर जूते फिकवाए .उसने जूता हाथ में लेकर जनता से पूछा- ' बताओ ये जूता हिन्दू का है या मुसलमान का ?'' जनता ठहाका लगाने लगी .उसके घर पर पत्थरबाज़ी करवाई गयी , वो मुस्कुराते हुए बोला -'' चलो पत्थर दिलों से निकले इतने पत्थर , अब उनके दिल का बोझ कुछ तो कम होगा .'' उसके चरित्र पर भी हमला किया गया पर हर स्त्री में माता का रूप देखने वाले उस स्फटिक जीवनधारी को कौन लांछित कर सकता था !
वो हर हमले के बाद मज़बूत होता गया .जनता के दिल में उसके लिए जगह बढ़ती गयी .उसकी आवाज़ और बुलंद होती गयी .अब सियासतदारों के पास अंतिम उपाय यही रह गया था कि ''इस आवाज़ को हमेशा हमेशा के लिए खामोश कर दिया जाये !'' उन्होंने उसके नंगे सीने को गोलियों से छलनी कर डाला .कमर पर बंधी सफ़ेद धोती भी खून से सन गयी .उसके आखिरी शब्द थे-'' ये गोलियां न हिन्दू की हैं ..न मुसलमान की ...ये सियासत की गोलियां हैं ...इनसे बचकर रहना देशवासियों .'' उसकी शवयात्रा में हिन्दू-मुसलमान सभी थे और उनके कानों में गूँज रही थी ...उसकी ही बुलंद आवाज़ .सियासत करने वाले क्या जाने ये आवाज़ें तो सदियों तक ऐसे ही गूंजती रहेंगी ..इन्हें जूतों , पत्थरों और गोलियों से कभी खामोश नहीं किया जा सकता है ........आमीन ! ...तथास्तु !
शिखा कौशिक 'नूतन'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें