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मंगलवार, 3 मार्च 2020

नदी - लघुकथा

नदी - लघुकथा
 जब भी उदास होता रघु नदी किनारे जाकर बैठ जाता. कभी मां की तरह उसकी शीतल जलधारा दुख के ताप हर लेती . कभी बड़ी बहन सी कलकल करती मीठी बोली में सांत्वना सी देती. कभी भाभी बनकर चंचल लहरों के रूप में रघु को देवर की तरह छेड़ते हुए उछलती बूंदें चेहरा भिगा जाती और जब भी आंखों से छिटककर आंसू नदी के जल में समा जाते तब रघु को नदी अपनी प्रेयसी प्रतीत होती जिसके नीले स्वच्छ जल रूपी दर्पण में अपना उदास चेहरा देखकर वह मुस्कुरा देता.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

3 टिप्‍पणियां:

ANIL DABRAL ने कहा…

वाह दी .......एक नदी कैसे सारे रिश्ते निभा रही है.

radha tiwari( radhegopal) ने कहा…

सुन्दर बिम्बों का प्रयोग किया है आपने

शिवम् ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लिखा है
आपके इस लेख में कुछ अलग सा है
जो लघुकथा होते हुए भी बेहद परिपूर्ण है