जातिवाद का ढोंग -एक लघु कथा |
''शटअप ...अर्णव ...तुम ऐसा कैसे कर सकते हो .तुम जानते हो न हम ब्राह्मण हैं और ...विभा कास्ट से चमार है बेटा ....समझा करो ..'' अर्णव असहमति में सिर हिलाता हुआ बोला -''...पर डैडी .....आप जातिवाद के खिलाफ हैं ...माँ भी तो खटीक जाति से हैं ...आपने क्यूँ की थी माँ से शादी ?'' अर्णव के पिताजी अर्णव के कंधें पर हाथ रखते हुए बोले -'' बेटा वो और परिस्थिति थी ....मैं गरीब परिवार का मामूली सा क्लर्क और तुम्हारी माँ डी.एम्. की एकलौती बेटी ...तब कहाँ जातिवाद आड़े आता है ....समझा करो !'' आँखों से ज्यादा बहस न करने की धमकी देते हुए अर्णव के पिताजी वहां से चल दिए और अर्णव सोचने लगा काश विभा भी किसी अमीर घर की एकलौती बेटी होती !!
शिखा कौशिक 'नूतन'
5 टिप्पणियां:
.पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने .मन को छू गयी आपकी कहानी .आभार . छत्तीसगढ़ नक्सली हमला -एक तीर से कई निशाने
साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
ये क्या लिख दिया! कई बार पढ़ा,प्रतिक्रिया लिखने की सोची... दोबारा फिर पढ़ा!
इस पर तो प्रतिक्रिया ही इतनी लम्बी हो जायेगी जितनी बड़ी आपकी ये लघु कथा भी नहीं है!(केवल शब्दों के हिसाब से, अर्थ के मामले में तो ये एक विशाल रचना है ही!) सामाजिक सोच जो कि निरी अवसरवादी हो चुकी है, पर सीधी और जबरदस्त चोट है आपकी ये रचना!
कुँवर जी,
nice.
बेहतरीन लघु कथा
aap sabhi ka hardik aabhar
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