मैं तेजाब नहीं गुलाब लाया हूँ -SHORT STORY
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रानी देख सूरज हाथ पीछे बांधे हमारी ही ओर बढ़ा चला आ रहा है .तूने उसके साथ प्यार का नाटक कर उसकी भावनाओं का मजाक उड़ाया है .कहीं उसके हाथ में एसिड न हो .तुझे क्या जरूरत थी इस तरह पहले मीठी बातें कर उसके दिए उपहार स्वीकार करने की और फिर उससे ज्यादा अमीर वैभव के कारण उसे दुत्कारने की मैं तो जाती हूँ यहाँ से जो तूने किया है तू भुगत .' ये कहकर गुलिस्ता वहाँ से चली गयी .रानी के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी .सूरज के पास आते ही उसके पैरों में गिरकर गिडगिड़ाने लगी -'' सूरज ...मुझे माफ़ कर दो ...मैंने तुम्हारे प्यार का मजाक उड़ाया है ...पर ..पर मुझ पर एसिड डालकर मुझे झुलसाना नहीं .....प्लीज़ !!'' ये कहते कहते वो रोने लगी .सूरज ने अपने पैर पीछे हटाते हुए ठहाका लगाया .वो भावुक होता हुआ बोला -'' मिस रानी ऊपर देखिये ....मैं तेजाब नहीं गुलाब लाया हूँ ..आपको अंतिम भेंट देने के लिए और शुक्रिया ऊपर वाले का जिसने आप जैसी मक्कार लड़की से मुझे बचा लिया .यहाँ से जाकर मंदिर में प्रसाद भी चढ़ाना है ..लीजिये जल्दी से ये गुलाब थाम लीजिये .'' सूरज की बात सुनकर रानी के दम में दम आया और उसने शर्मिंदा होते हुए उठकर वो गुलाब थाम लिया .
शिखा कौशिक 'नूतन '
6 टिप्पणियां:
.आपकी कहानी मन को छू गयी .विचारणीय प्रस्तुति आभार . मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी . आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN "झुका दूं शीश अपना"
सही अंत
हार्दिक शुभकामनायें
आँखें खोलती है आपकी कहानी ...
काश यह बात हर उस लड़के के समझ में आ जाये जो बदले कि भावना रखते हुए ऐसे घिनौने काम करके किसी मासूम की ज़िंदगी हमेशा के लिए तबाह कर देते हैं।
हर दिन एक बेहतरीन लघु कथा क्यों कहूँ अच्छी लगी
बेहतरीन
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