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शुक्रवार, 30 मई 2014

कहानी : पापा मैं फिर आ गया


'' पापा मैं फिर आ गया '-कहानी (शिखा कौशिक )


 कहानी : पापा मैं फिर आ गया

मीनाक्षी और मुकेश की आँखों से कोर्ट  का फैसला  सुनते  ही आंसुओं का सैलाब बह निकला .पिछले दो साल से अपने प्रियांशु के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए दोनों ने दिन रात एक कर दिए थे .आज जाकर दिल को ठंडक पहुंची तो आँखों से आंसू बह निकले .मीनाक्षी को धैर्य बंधाते हुए मुकेश बोला -''मैं न कहता था  मीना इस हत्यारे को फांसी की सजा जरूर मिलेगी !''मीनाक्षी ने मुकेश की ओर देखते हुए ''हाँ '' में गर्दन हिला दी .मुकेश का दिल चाह रहा था उस बत्तीस साल के नाटे व्यक्ति को जाकर पुलिस से छुड़ा इतना मारे कि वह खून से लथपथ हो जाये किन्तु मन ही मन उसने इस आक्रोश को दबाया और मीनाक्षी ,बाबू जी व् माँ के साथ कोर्ट से निकल अपनी कार की ओर कदम बढ़ा दिए .कार का गेट खोलकर मुकेश खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया .मीनाक्षी व् माँ पिछली सीट पर व् बाबू जी मुकेश के बराबर वाली सीट पर बैठ गए .सब के बैठ  जाने पर मुकेश ने कार स्टार्ट की और दाई ओर मोड़कर मेन  रोड पर कार को दौड़ा दिया .मुकेश की आँखों के सामने प्रियांशु का मुस्कुराता हुआ चेहरा  घूमने लगा ओर कानों में उसकी खिलखिलाहट गूंजने लगी .मुकेश ने एकाएक कार के ब्रेक लगाये क्योंकि कार एक घोड़ागाड़ी से टकराते टकराते बची . बाबू जी बोले -''मुकेश लाओ मैं ड्राइव करता हूँ ..लगता है तुम ड्राइविंग एकाग्रचित्त होकर नहीं कार  पा रहे हो .' मुकेश ने तुरंत ड्राइविंग सीट छोड़ दी .बाबू जी ड्राइविंग सीट पर आ गए ओर मुकेश उनके बराबर में बैठ गया .माँ बोली -' मुकेश पुरानी बातों को भुलाने की कोशिश करो .तुम ऐसे अनमने रहोगे तो मेरी बहू को कौन संभालेगा ...जानते हो ना ये फिर से माँ बनने वाली है .ऐसे में इसका ध्यान रखा करो .मैं ओर तुम्हारे बाबू जी मीना को खुश देखना चाहते हैं .भगवान ने चाहा तो फिर से हमारे घर में बच्चे की किलकारी गूंजेगी !'माँ की बातों ने मनोज व् मीनाक्षी के दुखी  ह्रदय को बहुत सांत्वना दी . घर पहुंचकर माँ व् मीनाक्षी रसोईघर में चली गयी और मुकेश व् बाबू जी लॉन में पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए .बाबू जी बोले -' मुकेश बेटा कहते हैं ना भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है .प्रियांशु के हत्यारे को मौत की सजा मिलना इसका प्रमाण है .चार साल के मासूम बच्चे को इतनी निर्ममता से मारने वाले के लिए  यदि फांसी से ज्यादा भी कोई सजा होती तो वह दी जानी चाहिए थी .''मुकेश की आँखे नम हो उठी .बाबू जी ने उसके कंधे पर हाथ कसते हुए कहा '....लेकिन मुकेश मीना के सामने इन बातों को मत दोहराओ ...जरा सोचो उसकी ममता कितनी आहत हुई है और इस समय वह प्रेग्नेंट भी है .अपने पर संयम रखो ..'मुकेश ने सहमति में सिर हिला दिया .बाबू जी फ्रेश होने के लिए अन्दर चले गए तो मुकेश की आँखों के सामने उस मनहूस दिन की एक एक तस्वीर घूमने लगी .वो उस दिन अपने ऑफिस में लंच कर रहा था कि उसका मोबाइल बज उठा .कॉल रिसीव करते ही मीनाक्षी की घबराई हुई आवाज़ उसके कानों से टकराई .भोजन बीच में ही छोड़कर वह अपनी जगह पर खड़ा हो गया .उसके सहकर्मी शिरीष ,संगीता व् उत्तम भी भोजन छोड़कर उसकी ओर देखने लगे .मीनाक्षी घबराई हुई कह रही थी ''.....हेलो ...हेलो ...'' मुकेश ने खुद को सँभालते हुए मीनाक्षी से पूछा था -'...मीना ...मीना क्या बात है ?? इतनी घबराई हुई क्यों हो ?'' मीनाक्षी ने लगभग रोते हुए कहा था '...दीपक का फोन आया था उसने प्रियांशु का अपहरण कर लिया है और शाम तक पचास  लाख रूपये की डिमांड की है ...नहीं तो वो हमारे प्रियांशु को  .....!!!'इसके आगे मीनाक्षी बोल तक नहीं पायी थी ..उसका गला रूंध गया था .मुकेश ने मीनाक्षी को धैर्य बंधाते बस इतना कहा था -''....मीना चिंता मत करो ...मैं घर आ रहा हूँ .''यह कहकर फोन बंद कर मुकेश कुर्सी पर निढाल होकर बैठ गया था.  दोनों हाथों से सिर पकडे मुकेश की आँखों में आंसू  छलक आये थे .फोन पर उसकी बातों से सहज ही किसी अनिष्ट का अनुमान लगा संगीता बोली थी -'मुकेश क्या हुआ ?अनिथिंग सीरियस ?शिरीष व् उत्तम भी उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले थे -''मुकेश क्या बात है ?'' मुकेश ने रूंधे गले से किसी प्रकार बोलते हुए कहा था ''....मेरे नौकर ने मेरे बेटे का अपहरण कर लिया है और पचास  लाख रूपये देने पर छोड़ने की बात कही है पर मैं इतने पैसों का इंतजाम इतनी जल्दी कहाँ से करूंगा ..कैसे करूंगा ??''शिरीष बोला -''तुम पुलिस की मदद लो .ऐसा करो तुम घर जाओ और मैं व् उत्तम पुलिस से बात करते हैं ...चिंता मत करो ...सब ठीक हो जायेगा ..''मुकेश कार से घर के लिए रवाना हो गया .संगीता भी उसके साथ हो ली .लगभग सवा दो बजे दोपहर में वे घर पहुंचे .मीनाक्षी का रो-रोकर बुरा हाल था .मुकेश को देखते ही उसकी रही -सही शक्ति भी जवाब दे गयी . वो  मुकेश का हाथ पकड़ते हुए बोली  'मेरे प्रियांशु को बचा लो  ..वो  बहुत  खतरनाक है ..उसने फोन पर प्रियांशु के रोने की आवाज़ भी सुनाई है ..'  प्रियांशु का नाम आते ही मुकेश भी फिर से भावुक हो गया .संगीता ने दोनों को हिम्मत बंधाई .करीब पांच बजे फोन की घंटी फिर से बजते ही मीनाक्षी ; मुकेश और संगीता के दिलो की धड़कन बढ़ गयी .मुकेश ने घर के लैंड लाइन का रिसीवर कान से लगाया तो प्रियांशु की प्यारी सी आवाज़ कान से टकराई -''पापा..मम्मी ...मुझे बचा लो ..ये अंकल मुझे  मारते   हैं ...मुझे बचा लो ...' प्रियांशु रो रोकर बेहाल  हो रहा था .मुकेश ने रिसीवर कस कर पकड़ा ...तभी दूसरी ओर से एक कठोर स्वर कान से टकराया '...सुनते  हो मुकेश बाबू ..आज शाम छह बजकर पंद्रह मिनट पर शहर के बाहर सुखदेव सिंह के ईख के खेत में पचास लाख लेकर पहुँच जाना वरना .......' कहकर क्रूरतायुक्त ठहाका लगाया जिसे सुनकर मुकेश का रोम रोम सिहर उठा और नसों में ठंडी लहर दौड़ गयी .एक पल को लगा जैसे ह्रदय ने काम करना बंद कर दिया हो और मस्तिष्क  चेतनारहित सा अनुभव हुआ .संगीता ने पसीने से लथपथ मुकेश से रिसीवर अपने हाथ में लेकर कान से लगाया तो दूसरी ओर से कोई प्रतिक्रिया  न आती जानकर उसने फोन रख दिया .तभी संगीता के मोबाइल की रिंगटोन बज उठी .संगीता ने रिसीव किया तो वह शिरीष व् उत्तम का फोन था .उन्होंने संगीता को कुछ जानकारी दी व् उससे यहाँ की कुछ जानकारी लेनी चाही .संगीता ने मुकेश को अपना मोबाइल पकड़ा दिया क्योंकि वह स्वयं अब तक किडनैपर के फोन के बारे में मुकेश से बातचीत नहीं कर पाई थी .मीनाक्षी की आँखों से आंसुओं की अविरल  धारा  बहे जा रही थी .मुकेश ने उत्तम और शिरीष को  सब जानकारी दे दी और जेब से रुमाल निकाल कर चेहरे पर आये पसीने को पोंछा .संगीता को उसका मोबाइल पकड़ाते हुए उसके हाथ कांपते देख संगीता समझाते हुए बोली -'मुकेश डरो मत सब ठीक हो जायेगा .तुमने उत्तम और शिरीष को किडनैपर की एक एक बात अच्छी तरह बता दी है ना ....वो पुलिस के साथ प्लानिंग पर प्रियांशु को जरूर उसके चंगुल से छुड़ा लेंगें . अब देखो साढ़े पांच बज रहे हैं ...तुम्हे वहां पहुँचने में कम से कम पच्चीस मिनट लगेंगे .   तुम स्वयं को नियंत्रित करो .क्या उत्तम व् शिरीष तुम्हें  फिर से कौनटैक्ट   करेंगें ?'  मुकेश ने हडबडाते हुए  कहा -''...नहीं ..उन्होंने  कहा है मैं  अकेला  ही एक ब्रीफकेस के लेकर  वहां पहुँच जाऊं  ...आगे  पुलिस  के साथ  मिलकर  वे  दोनों  संभाल  लेंगें .'' इस वार्तालाप  के ठीक पांच मिनट बाद मुकेश एक कपड़ों  से भरा  ब्रीफकेस लेकर अपनी कार द्वारा गंतव्य की ओर रवाना  हो गया .मीनाक्षी भी साथ चलने की जिद कर रही थी पर संगीता  ने किसी प्रकार उसे समझा-बुझाकर रोक लिया .मुकेश ठीक छः बजे सुखदेव सिंह के खेत पर पहुँच गया .उसे पांच मिनट बाद सामने  की ओर से ईख हिलते नज़र आये और पीछे से भी कुछ कदमों की आहट सुनाई दी ..वह सावधान हो गया .उसने ब्रीफकेस को कस  कर पकड़ लिया .सामने से आते व्यक्ति को नकाब से मुंह छिपाए हुए देखकर भी मुकेश उसकी  चाल ढाल से उसे पहचान गया ...वह दीपक था .पीछे मुड़कर देखा तो दो और व्यक्ति नकाब से मुंह  छिपाए हुए रिवॉल्वर लिए उसके ठीक पीछे  खड़े थे   .उनमे  से एक ने रिवॉल्वर मुकेश  की  कांपती  से सटा  दिया  . दीपक  चलते  हुए  मुकेश  के  एकदम पास   पहुंचकर  बोला -''बाबू  ब्रीफकेस  मेरे  हवाले  कर  दो .''  मुकेश ने  दृढ़ता  के  साथ  कहा -''बिलकुल  नहीं !!पहले  मेरे  बेटे  को  मेरे  हवाले  करो   !''.....मुकेश के ये  कहते ही पीछे खड़े एक व्यक्ति ने उसके सिर पर जोरदार वार किया और मुकेश लगभग निढाल होकर गिर पड़ा .जब आँख खुली तब वह अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड के बैद  पर था .उसको होश  में आया  देख  नर्स ने तुरंत डॉक्टर को सूचना  दी .डॉक्टर के आते ही मुकेश के माँ -बाबूजी भी  उसके साथ उस वार्ड में अन्दर  आये .दोनों काफी थके हुए नज़र आ रहे थे .मुकेश ने उठना चाहा तो सिर में असहनीय दर्द से उसकी चीख निकल गयी .डॉक्टर ने एक इंजेक्शन लगाया और वह फिर से नींद की गहराइयों में चला गया . करीब एक माह में वह अस्पताल से घर पहुँच पाया .इस बीच जब भी वह मीनाक्षी और प्रियांशु के बारे में बाबूजी और माँ से पूछता तो वे कह देते कि-'' प्रियांशु के बुखार है और मीनाक्षी उसकी देखभाल में लगी रहती है ...फिर हम  दोनों तो हैं  तेरी  देखभाल को यहाँ .हमने   ही मीनाक्षी को प्रियांशु की देखभाल सही से करने  की हिदायत दे रखी  है इसीलिए उसे यहाँ नहीं आने देते और फिर तुम्हारी ऐसी हालत देखकर मीनाक्षी की हालत ख़राब हो सकती है .इसी कारण वो यहाँ नहीं आ पाती  .''माँ बाबूजी की बात पर मुकेश को कतई यकीन नहीं हुआ था पर और कोई रास्ता भी नहीं था .सबसे  ज्यादा आश्चर्य तो उसे शिरीष ,उत्तम और संगीता -किसी के भी अस्पताल में उससे न मिलने आने पर हुआ था .उसे अन्दर से ऐसा महसूस हो रहा था जैसे माँ-बाबू जी एक माह से उससे कुछ ऐसा छिपाना चाह रहे हैं जिसे छिपाना उनके भी बस की बात नहीं है .मुकेश तो पिछले दस दिन से अच्छा महसूस कर रहा था पर माँ बाबूजी ही डॉक्टर से बार  बार  उसके स्वस्थ  होने  के बारे में पूछकर  ''...घर जाने की क्या जल्दी है ?''कहकर उसे अस्पताल में ही रोके  हुए थे .आज  जाकर किसी तरह अस्पताल से छुट्टी मिली तो वह घर चलने के लिए जल्दी से तैयार हो गया .उसने देखा माँ बाबूजी के चेहरे  पर कोई खास चमक नहीं थी बल्कि वे काफी उलझे  हुए नज़र आ रहे थे .कार में बैठते ही उसने देखा माँ की आँखों से आंसू बह रहे थे .उसने माँ से इसका कारण पूछा तो बाबू जी बोले -''बेटा पूरे एक माह जिस माँ का बेटा मौत से जूझकर सकुशल अपने घर वापस लौट  रहा हो वह भला अपने आंसुओं को रोके तो ?'' यह  कहते कहते बाबूजी की आवाज़ भी भर्राई  हुई सी  महसूस हुई .ऐसी आवाज़ मुकेश ने बाबूजी जी की तब सुनी थी जब मुकेश की दादी जी का स्वर्गवास  हुआ था वरना मुकेश के बाबूजी जो सेना में रहे थे अपनी भावनाओं को काबू में करना बखूबी जानते थे .कार बाबूजी जी ड्राइव कर रहे थे .मुकेश मीनाक्षी से भी ज्यादा प्रियांशु से मिलने को उत्सुक था .एक तो वह अपहरण  की दुर्घटना से सहमा हुआ होगा  और ऊपर  से माँ बाबूजी के अनुसार पिछले इतने दिनों से बुखार से ग्रस्त है .मुकेश ने माँ से पूछा -''अच्छा माँ प्रियांशु अब तो आप दोनों से काफी घुलमिल गया होगा ?''मुस्कुराता  हुआ बोला -''माँ !ये क्या ....अब तो  मैं ठीक  हो गया  हूँ  ना  .....फिर क्यों आंसू बहा रही हो ?'' माँ ने ''हाँ'' में गर्दन हिला दी  पर इस  बात पर भी माँ के चेहरे पर सुकून की रत्ती भर  भी झलक नहीं दिखाई दी  .घर के सामने पहुँचते ही बाबूजी ने कार के ब्रेक लगा दिए और जैसी की मुकेश को उम्मीद थी -मिनाक्षी घर के बहार लॉन में इंतजार करती   दिखाई देगी   ...वैसा  कुछ नहीं हुआ क्योंकि मिनाक्षी उसे नहीं दिखाई दी .   मुकेश ने कार से  निकलकर  घर का गेट खोल  दिया  और  बाबूजी कार को अन्दर ले आये .लॉन काफी उजड़ा उजड़ा लग रहा था .मुकेश के ह्रदय  में  भी  एक   अजीब  सी उदासी   घर करती  जा  रही  थी  .लॉन इतना  सूखा  हुआ  क्यों  हैं  ? मीनाक्षी तो  हर पौधे  का कितना  ध्यान  रखती  है .वह  ये  सब  सोच  ही  रहा था की  बाबूजी ने उसके  पास  आकर  कहा  -''मुकेश चलो  अन्दर चलो . ज्यादा सोच विचार  मत  करो तुम्हारे स्वास्थ्य के लिए यह अच्छा नहीं है .''मुकेश बाबूजी ji  के यह कहते ही घर के भीतर की ओर चल दिया .ड्राइंग रूम  में प्रवेश करते ही सामने सोफे पर बैठी हुई मीनाक्षी एकाएक सिर पर साड़ी का पल्लू ढकते हुए खड़ी हो गयी .मुकेश एक नज़र में उसे पहचान भी न पाया और अनायास ही उसके होठों  से निकल  गया -''ये क्या हाल बना रखा है तुमने !प्रियांशु कहाँ है ?'' मुकेश के इस प्रश्न के उत्तर में मीनाक्षी का हाथ एकाएक दीवार की ओर उठा और वह फफक फफक कर रो  पड़ी .मुकेश की नज़र दीवार पर गयी तो वही टिक गयी .प्रियांशु का गुलाब सा मुस्कुराता हुआ चेहरा और उस फोटो पर फूलों की माला  !! वह ''नहीं ''कहकर लगभग चीखता हुआ दीवार के पास पहुँच गया .बाबूजी उसे संयमित कर सोफे तक लाये .वह निढाल होकर सोफे पर बैठ गया .उसके मस्तिष्क में हजारों सवाल दौड़ लगाने  लगे  .माँ बोली  -''मीना जरा  एक गिलास पानी ले आओ '' मीनाक्षी पानी ले आई .माँ ने मुकेश के पास बैठते हुए गिलास  पकड़ाते हुए कहा -''बेटा जो  दुर्घटना घटनी थी वह घट चुकी ...अब खुद  को संभालो .इस तरह तुम और मीना यहाँ दिल्ली में ऐसे दुखी रहोगे तो हम वहां कानपूर में कैसे चैन से रह पाएंगे ?बाबूजी बोले -''मुकेश तुम जो कुछ जानना चाहते  हो वो मैं  तुम्हे बताता हूँ .तुम्हे बेहोश कर वे तीनों बदमाश फिर से ईख के खेत में छिप गए लेकिन उस खेत को पुलिस ने उत्तम व् शिरीष की सूचनाओं द्वारा चारों ओर से घेर  लिया था .तुमको बेहोश पड़ा देखकर शिरीष व् उत्तम पुलिस की सहायता से तुम्हे तुम्हारी गाड़ी से लेकर  अस्पताल पहुँच  गए और उधर  ब्रीफकेस में कुछ ना पाकर तीनों बदमाश पुलिस के डर से ईख से बाहर निकल आये .पुलिस द्वारा प्रियांशु के बारे में पूछे जाने पर पता चला कि........उन्होंने उस नन्ही सी जान को पहले ही मार डाला था और फोन पर पैसा हड़पने के लिए जो प्रियांशु की आवाज़ वे सुना रहे थे वो रिकॉर्ड की हुई थी ..वे तो पैसा लेकर फरार  हो जाना चाहते थे .पुलिस की गहन पूछताछ  में पता चला कि-उन दरिंदों ने प्रियांशु कि डैड बॉडी शहर के बाहर एक बाग़ में दबा दी थी .उन हैवानों की दरिंदगी तो देखो  ....उन्होंने मरकर   भी उस नन्ही सी जान को सुकून न   लेने  दिया .प्रियांशु की शिनाख्त  छिपाने के लिए उसका चेहरा मरने के बाद तेजाब से झुलसा दिया ...'' ...''बाबूजी ...बस ...रहने दीजिये !!!...''मुकेश चीखता हुआ बोला और अपनी हथेलियों से अपना मुंह ढककर तड़पता हुआ रोने लगा .बाबूजी मुकेश के कंधे पर हाथ रखते   हुए उसके पास ही बैठ   गए .वे बोले -''बेटा तुम इस हालत में नहीं थे इसीलिए एक माह तक हमने तुमसे  ये बात छिपाई .मीनाक्षी तुम्हारे सामने इसीलिए नहीं आई क्योंकि वो तो खुद को ही नहीं संभाल पा रही थी .शिरीष ,उत्तम और संगीता अस्पताल लगभग रोज़ आते थे पर तुम्हारे सामने आने साहस न कर पाते कि कहीं उनके मुंह से ये बात न निकल जाये ...लेकिन हाँ  अब ध्यान से सुनों ...मैं और तुम्हारी माँ कल को कानपूर लौट जायेंगे ...तुम्हे और मीनाक्षी को मजबूत दिल का होकर प्रियांशु के हत्यारे को फांसी के तख्ते तक पहुँचाना है .'' बाबूजी की बातें कानों में गूँज रही थी कि मुकेश को लगा उसके कंधे कोई जोर  से हिला रहा है ...यह मीनाक्षी थी .मुकेश वर्तमान  में लौट आया  और प्रियांशु के हत्यारे  को फांसी की सजा दिलाने की याद आते ही एक लम्बी सुकून की सांस ली .
                             तीन माह पश्चात्  मीनाक्षी  ने घर के निकट के ही ''आशीर्वाद '' नर्सिंग होम में एक चाँद से बेटे  को जन्म दिया और जब नर्स गोद में लेकर उसे बाहर आई तो माँ बाबूजी के चेहरे  वैसे ही खिल गए जैसे प्रियांशु के जन्म के समय खिल उठे थे .और मुकेश ने उस नवजात शिशु को जैसे ही गोद में लिया वह अधखुली आँखों  से एकटक  उसे देखता  हुआ हल्का सा मुस्कुराया जैसे वो नन्हा  सा फ़रिश्ता कह रहा हो -''पापा लो मैं फिर आ गया '' मुकेश की आँखे ख़ुशी के आंसुओं  से छलछला उठी .

DR. SHIKHA KAUSHIK 'NUTAN'

1 टिप्पणी:

Shalini kaushik ने कहा…

samvedansheel kahani .very nice .