फ़ॉलोअर

शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

मित्र - लघुकथा

मित्र - लघुकथा
सदन ने सूरज को कई बार कॉल लगाई पर वह उठा ही नहीं रहा था. तंग आकर सदन ने मैसेज किया कि - कल को डॉक्टर के यहां चलना है तबीयत खराब है मेरी. ' मैसेज का भी जवाब नहीं आया तब सदन को बड़ी निराशा हुई. आधे घंटे बाद उसके गेट पर एक कार आकर रूकी. सदन ने देखा उसमें से सूरज उतर कर आ रहा था. शाम के सात बजे सूरज को अपने घर पर आया हुआ देखकर सदन आश्चर्यचकित रह गया. सूरज ने तेजी के साथ आकर सदन को गले लगाते हुए कहा - क्या हुआ तेरी तबीयत को? चल अभी चल. ' सदन थोड़ा सकुचाये हुए स्वर में बोला - पर यह समय तो तेरे ऑफिस से घर लौटने का है. पत्नी बच्चे इंतजार कर रहे होंगें. कल जल्दी निकल लेंगे. बस बैक में पेन हैं.' सूरज सदन की स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही से भलीभांति परिचित था. वह मुस्कुराता हुआ बोला - पत्नी बच्चों को बोल चुका हूं थोड़ी देर से पहुंच पाऊंगा, आखिर हर रिश्ते की तरह मित्र का रिश्ता भी कम महत्वपूर्ण नहीं होता और बहाने बनाना बंद करो.' सूरज के यह कहते ही सदन ने उसे कसकर गले से लगा लिया.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

कोई टिप्पणी नहीं: