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रविवार, 23 फ़रवरी 2020

स्त्री - लघुकथा

स्त्री - लघुकथा
घर की सफाई, कपड़ों की सफाई, बर्तनों की सफाई निपटाकर सुनैना बराबर के घर में रहने वाले पंडित जी की हमउम्र बेटी साधना के पास नोट्स लेने पहुंची तो कानों में पंडित जी के उबलते तेल जैसे कटु वचन पड़े. पंडित जी साधना को लताड़ते हुए कह रहे थे - लक्ष्मी जी की कोठरी में क्यों घुसी तुम रजस्वला होते हुए? पहले से बताया है न तुम्हें मैंने और तुम्हारी मां ने कि स्त्री गंदी होती है इन दिनों में. अब गंगा जल से शुद्धि करनी होगी. ' सुनैना उल्टे पैर लौट आई और मन ही मन सोचने लगी ये पुरूष हमेशा पवित्र होते हैं और स्त्री गंदी फिर देवियों को क्यों पूजते हैं? वे भी तो स्त्री ही हैं.
-डॉ शिखा कौशिक नूतन

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