फेकबुक का जाल ..जरा संभाल -लघु कथा |
''श्रुति कहाँ जा रही है इतना सज-संवर कर ? स्नेहा ने उतावली में घर से निकलती अपनी सोलह वर्षीय छोटी बहन को टोका .श्रुति मुंह बनाते हुए बोली -''दीदी ......टोका मत करो !....मैं अपनी एक सहेली के यहाँ जा रही हूँ .'' ''इतना सज-धजकर ?'' स्नेहा ने व्यंग्य की पिचकारी श्रुति के झूठे मुंह पर दे मारी .इस बार श्रुति ने सैंडिल पहना पैर पटका और घर से तेजी से निकल ली स्नेहा को आँख दिखाती हुई .स्कूटी से सागर होटल पहुंचकर श्रुति ने मोबाइल से एस.एम्.एस. किया -''मैं पहुँच गयी हूँ रोहित .'' दूसरी तरफ से एस.एम्.एस. आया -'' ठीक है दूसरी मंजिल पर बारह नंबर के रूम में पहुँच जाओ ....स्वीट हार्ट !'' फेसबुक पर दोस्त बने रोहित से श्रुति की बातचीत एस.एम्.एस. के जरिये ही होती थी . श्रुति ने मोबाइल पर्स में रखा और सीढियाँ चढ़ते हुए बारह नंबर के रूम की ओर चल दी .रूम पर पहुँचते ही श्रुति ने डोर खटखटाया तो डोर खुला हुआ ही था .श्रुति अन्दर घुस गयी तभी डोर जोर से बंद हुआ .श्रुति ने पीछे मुड़कर देखा अरे ये तो स्नेहा थी .स्नेहा ने आगे बढ़कर श्रुति के चेहरे पर जोरदार तमाचा जड़ दिया और बिफरते हुए बोली -''कितनी बार समझाया था तुझे फेसबुक पर फेक एकाउंट बनाकर लड़कियों को फंसाते हैं बदमाश .ये तो मैं तेरी हर गतिविधि पर नज़र रख रही थी इसलिए सबक सिखाने को रोहित नाम से फेक एकाउंट बनाया .नया सिम ख़रीदा और मीठी मीठी चैटिंग कर तुझे आसानी से फंसा लिया .सोच अगर आज कोई और रूम में घुसते ही ये डोर बंदकर तेरी इज्ज़त तार-तार कर देता तो तू क्या करती ?घबरायी श्रुति स्नेहा से लिपट गयी और उसकी आँखों से आंसुओं की धारा बह निकली .
शिखा कौशिक 'नूतन '
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