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रविवार, 22 सितंबर 2013

नेता vs बन्दर -लघु कथा


सुषमा अपने पति व् बेटे के साथ शहर घूमने निकली तो देखा सड़क के दोनों ओर शामियाने सजे हुए हैं . दाई ओर बन्दर का बेहतरीन सर्कस दिखाने वालों का तम्बू गड़ा था और बाई ओर किसी प्रदेश के राष्ट्रीय नेता की रैली की तैयारियां चल रही थी .सुषमा के पतिदेव रैली की जानकारी करने के लिए बायीं ओर चले गए और बेटा सर्कस की जानकारी के लिए दाई ओर .दोनों कुछ पता कर सुषमा के पास लौट आये .सुषमा के पतिदेव बोले -'' दस रूपये का टिकट है .भाषण भी जोरदार देता है ये नेता .कहो ले आऊं तीन टिकट ?'' सुषमा कुछ बोलती उससे पहले ही उसका बेटा गुस्सा होता हुआ बोला -'' क्या डैडी ! आप भी ना ...आपका कोई उल्लू बना लो .मेरे फ्रेंड्स ने बताया है कि नेता लोग तो जनता को पैसा देते हैं रैली में भाषण सुनने के लिए ....और आप पैसा खर्च करने की बात कर रहो हो .खैर छोडो ...जल्दी से तीस रूपये दो ममी ...मुझे सर्कस के तीन टिकट लाने हैं .रैली से तो सौ गुना अच्छा होता है सर्कस कम से कम उसमे बन्दर खुद ही उछल-कूद मचाता है और हम हँसते हैं .नेताओं के भाषण सुनकर तो रोना आता है '' सुषमा को भी बेटे की बात जँच गयी और उसने पर्स से दस दस के तीन नोट बेटे के हाथ में थमा दिए .
शिखा कौशिक 'नूतन '