मीठी मुस्कान-कडवी आलोचना -एक राजनैतिक लघु कथा |
''भोजन लगा दूं राहुल बेटा ?'' बाबुभाई ने संसदीय क्षेत्र का दौरा करके लौटे राहुल से पूछा .'' नहीं काका ..मैं खाकर आया हूँ ..आपने खा लिया ?'' बाबू भाई इस प्रश्न के उत्तर में प्रश्न करते हुए बोले -'' कभी खाया है तुम्हे खिलाये बिना ? ..पर बेटा तुम कहाँ खाकर आये हो ?'' राहुल ने हाथ में पकडे हुए कागज टेबिल पर पेपर वैट से दबाकर रखते हुए कहा -'' काका क्षेत्र में दौरा करते हुए एक बच्चे ने पूछा -आप हमारे यहाँ चाय पियोगे ...हम छोटी जात के हैं राहुल भैया !'' मैंने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा -न केवल चाय पियूंगा बल्कि खाना भी खाऊंगा ..बस उन्ही के घर खाकर आ रहा हूँ .'' बाबूभाई कुछ चिंतित होते हुए बोले -''बेटा तेरे दिल की धडकन है भारतीय जनता पर कल को देखना अख़बार में तेरे बारे में अनर्गल छपेगा ....विरोधी हंसी उड़ायेगें ...सच कहूं आग लग जाती है इस सब से !''राहुल अपने खद्दर के कुरते की बांह चढाते हुए बोले - '' बाबूभाई उड़ाने दीजिये हंसी ...वो आलोचना कितनी भी कडवी क्यों न हो उस बच्चे के चेहरे पर आई मीठी मुस्कान को देखकर जो मुझे ख़ुशी हुई है उसे कडवा नहीं कर सकती !''
शिखा कौशिक 'नूतन '
5 टिप्पणियां:
किसी के खुशी बाटने के लिए आलोचनाओं से क्या डरना,,,
वाह !!! बहुत उम्दा प्रेरक कथा ,,,
RECENT POST: गुजारिश,
मैं आपकी भावनाओं का आदर करता हूं, लेकिन राहुल इसके काबिल नहीं है।
rahul ji ke man kee bhavanon ko sahi shabdon me abhivyakt kiya hai shikha ji aapne .thanks
दूसरों के चेहरे पर मुस्कान ला सके तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है
सुन्दर लघु कथा !
अगर कहानी तक रहे बहुत संवेदनशील ... पर राजनीति का रंग न ही चढ़े इस पर तो अच्छा ...
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