''ए ...अदिति ...कहाँ चली तू ? ढंग से चला -फिरा कर ...बारहवे साल में लग चुकी है तू ...ये ही ढंग रहे तो तुझे ब्याहना मुश्किल हो जायेगा .कूदने -फांदने की उम्र नहीं है तेरी !..अब बड़ी हो गई तू .'' दादी के टोकते ही अदिति उदास होकर वापस घर के अन्दर चली गई .तभी अदिति की मम्मी उसके भाई सोनू के साथ बाज़ार से शॉपिंग कर लौट आई . सोनू ने आते ही पानी पीने के लिए काँच का गिलास उठाया और हवा में उछालने लगा .ठीक से लपक न पाने के कारण गिलास फर्श पर गिरा और चकनाचूर हो गया .सोनू पर नाराज़ होती हुई उसकी मम्मी बोली -'' कितना बड़ा हो गया पर अक्ल नहीं आई !'' दादी बीच में ही टोकते हुए बोली -'' ...अरे चुप कर बहू ...एक ही तो बेटा जना है तूने ...उसकी कुछ कदर कर लिया कर ....अभी सत्रहवे में ही तो लगा है ...खेलने -कूदने के दिन है इसके ..अदिति को आवाज़ लगा दे झाड़ू से बुहारकर साफ कर देगी यहाँ से काँच .'' कमरे की चौखट पर खड़ी अदिति दादी की ये बात सुनकर बस इतना ही समझ पाई कि ''लडकियाँ लडको से पहले बड़ी हो जाती है .''
शिखा कौशिक 'नूतन'
6 टिप्पणियां:
satya ko bayan karti sundar laghu katha .
Yahi Sach hai...
दादी सच ही कह रही, लम्बी दुनिया देख |
मम्मी भी सच ही कहे, दीदी का सच लेख |
दीदी का सच लेख, बात है महिलाओं की |
सम्मुख पीढ़ी तीन, करें क्या टोका टोकी |
बाहर जोखिम देख, छीने बहना आजादी |
युग की टेढ़ी चाल, देख कर बोली दादी ||
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥
न जाने कब बदलेगी यह सोच...लेकिन यदि दूसरे भाव से देखा जाये तो भी यह बात सच है।
प्रकृति ने लड़की को जो विशेष भूमिकाएँ सौंपी हैं ,उनके निर्वाह के लिए एक गलत कदम भी संकट का कारण बन जाता है ,इसलिये विशेष सचेत और सावधान रहने की सीख स्वाभाविक और उचित भी !
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